चौहान वंश :- रणथंभौर के चौहान और जालौर के सोनगरा चौहान

चौहान वंश :- रणथंभौर के चौहान और जालौर के सोनगरा चौहान || Chauhan dynasty: - Chauhan of Ranthambore and Sonagara Chauhan of Jalore





 राजस्थान के इतिहास में जब कभी किसी भी राजवंश से प्रश्न एग्जाम में आते हैं तो उसमे चौहान वंश को महत्ता अधिक मिलती है क्योंकि चौहान वंश अलग अलग क्षेत्र के आधार पर राजपुताने पर शासन किया ।


चौहान वंश की जारी इस ब्लॉग सीरीज में अभी तक हमने चौहान वंश के संस्थापक और शाकंभरी व अजमेर के चौहान के बारे में एग्जाम से संबंधित सभी महत्त्वपूर्ण जानकारी दे चुके हैं , अगर आप हमारे इस ब्लॉग नए यूजर हैं और राजस्थान की सरकारी एग्जाम्स की तैयारी में लगे हुए हैं तो हमारे ब्लॉग के माध्यम से आप अपना समय बचाकर अच्छे से तैयारी कर सकते हैं ।


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राजस्थान का इतिहास : पाठ्यक्रम और सरकारी नौकरी के लिए आवश्यक पढ़ने योग्य इतिहास के टॉपिक


चौहान वंश : चौहान वंश के संस्थापक और उनकी उत्पत्ति के प्रमुख मत और समर्थक


चौहान वंश :- शाकंभरी और अजमेर के चौहान ||Chauhan Dynasty: - Chauhan of Shakambhari and Ajmer


आज के इस ब्लॉग में हम आपको रणथंभौर और जालौर के सोनगरा चौहान के बारे में जानकारी देंगे ।


चौहान वंश :- रणथंभौर के चौहान 


प्रिय मित्रो जैसे की आप सभी को पता हैं रणथंभौर दुर्ग राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में स्तिथ है , यह दूर रण और थंब पहाड़ी पर बना हुआ हैं ।


रणथंभौर का प्राचीन नाम :- रणथंभपूर या रणस्तम्भपूर 

रणथंभौर दुर्ग का निर्माण :- रणथान देव चौहान ने करवाया।

सवाईमाधोपुर की स्थापना :- 1763 ईस्वी में सवाई माधोसिंह प्रथम ने की ।

रणथंभौर दुर्ग के उपनाम :- चित्तौड़गढ़ दुर्ग का छोटा भाई  व चित्तौड़गढ़ दुर्ग का लाडला ।

रणथंभौर दुर्ग की कुंजी :- झाईंन दुर्ग (सवाईमाधोपुर)

रणथंभौर दुर्ग को " हम्मीर देव चौहान" की आन बान शान का प्रतीक माना जाता हैं।


रणथंभौर के चौहानों की वंशावली 


गोविंदराज चौहान 

वल्हन देव 

प्रहलाद 

वीरनारायण 

बागभट्ट 

जैत्रसिंह ( जयसिम्हा)

हम्मीर देव चौहान 


गोविंदराज चौहान

अजमेर से चौहान वंश की सत्ता खत्म होने के बाद पृथ्वीराज चौहान तृतीय के पुत्र गोविंदराज चौहान ने 1194 ईस्वी में रणथंभोर में चौहान वंश की नीव रखी ।

रणथंभोर के चौहान वंश के संस्थापक " गोविंदराज चौहान "को माना जाता हैं।


वल्हन देव 

1126 ईस्वी में इनके समय में इल्तुतमिश ने आक्रमण किया और रणथंभौर पर अधिकार कर लिया 


प्रहलाद 

वल्हन देव के बाद प्रहलाद चौहान राजा बने , इनके कार्यकाल कोई भी ऐसा याद रखने योग्य कार्य नहीं हुआ ।


वीरनारायण चौहान 

इनके समय में भी इल्तुतमिश द्वारा रणथंभौर पर आक्रमण किया लेकिन वीरनारायण ने इस आक्रमण को असफल कर दिया ।

इल्तुतमिश ने वीरनारायण की दिल्ली बुलाकर धोखे से उनकी हत्या कर दी ।


बागभट्ट

रजिया सुल्ताना ने रणथंभौर पर आक्रमण किया लेकिन बागभट्ट ने इसे असफल कर दिया ।

1248 ईस्वी में " नसीरुद्दीन महमूद" ने रणथंभौर पर बलबन के नेतृत्व में आक्रमण किया इसे भी बागभट्ट ने असफल कर दिया ।


जैत्रसिंह ( जयसिम्हा)

कार्यकाल :- 1250 से 1282 तक 

32 वर्षों तक शासन किया ।

नसीरुद्दीन  व वलवन के समकालीन था ।


हम्मीर देव चौहान 

रणथंभौर के चौहान में जब कभी बात की जाती हैं तो राजा हम्मीर देव चौहान का नाम सबसे पहले आता हैं और एग्जाम की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण भी है। 


पिता :- जैत्रसिंह 

माता :- हीरा देवी 

रानी :-  रंगदेवी 

पुत्री :- पद्मला या देवल दे 

घोड़ा :- बादल/ फरोरी 

गुरू  :- राघवदेव 

दरबारी विद्वान :- बीजादित्य

रचना :- श्रृंगारहार 

सेनापति :- धर्मसिंह व भीमसिंह 

                 रणमल व रतिपाल 

उपनाम :- 

तलवार का धनी

हट्टी शासक 

शरणागत का रक्षक 

16 युद्धों का विजेता 

रणथंभौर का प्रथम और अंतिम प्रतापी शासक 


हम्मीर देव चौहान ने कुल 17 युद्ध लड़े।

हम्मीर देव चौहान ने कोटियजन यज्ञ करवाया जिसके राजपुरोहित पंडित विश्वरूप थे ।


हम्मीर देव को लेकर एक दोहा सबसे ज्यादा प्रचलित था 

" सिंह सुवन सत्पुरुष वचन, कदली फलत एक बार ।

  तिरिया तेल हम्मीर हठ, चढ़े ना दूजी बार ।।"


हम्मीर देव चौहान के प्रमुख युद्ध 


हम्मीर देव चौहान और जलाल्लुदीन खिलजी 


  • 1290 - 91 में दिल्ली सल्तनत के शासक जलाल्लुद्दीन खिलजी  ने रणथंभौर पर आक्रमण किया ।

  • 1290 ईस्वी में जलालुद्दीन खिलजी ने अपने सलाहकार सेनापति अहमद चाप के साथ मिलकर रणथंभौर पर आक्रमण किया ।
  • रणथंभौर दुर्ग पर विजय प्राप्त करने के लिए पहले झाईंन दुर्ग की जितना जरूरी था ।
  • इस आक्रमण में झाईंन दुर्ग का प्रशासक " गुरुदास सैनी " मारा गया ।
  • इस आक्रमण में खिलजी को सफलता नहीं मिल सकी तो जलालुद्दीन खिलजी ने अपने सलाहकार अहमद चाप से कहा की " मैं रणथंबोर जैसे 10 दुर्गों को मुसलमान की दाढ़ी के एक बाल के बराबर भी नहीं समझता"।
  • 1292 में एक बार फिर जलालुद्दीन खिलजी ने रणथंभौर पर आक्रमण किया और असफल रहा ।


अलाउद्दीन खिलजी और हम्मीर देव चौहान 

1299 ईस्वी में अलाउद्दीन ख़िलजी ने रणथंबोर पर आक्रमण किया , इस युद्ध को हिंदूवाट घाटी का युद्ध कहा गया ।


हिंदूवाट घाटी का युद्ध :- 


हम्मीर देव चौहान                     अलाउद्दीन खिलजी

सेनापति                

धर्मसिंह                                      उलुग खां 

भीमसिंह                                     नुसरत खां 


हिंदूवाट घाटी के युद्ध का कारण :- 

हम्मीर हठ के अनुसार हम्मीर देव चौहान और अलाउद्दीन ख़िलजी के बीच अनबन का कारण खिलजी की मराठा बेगम चिमना व मंगोल नेता मुहम्मद शाह के बीच प्रेम संबंध देव, हम्मीर देव चौहान ने मुहम्मद शाह और उसके दोस्त केहब्रू को रणथंभौर में शरण देना था ।


हिंदूवाट घाटी के युद्ध का परिणाम 

  • इस युद्ध में हम्मीर देव चौहान ने अलाउद्दीन खिलजी को पराजित कर दिया ।
  • इस युद्ध में हम्मीर देव चौहान के सेनापति भीमसिंह की मृत्यु हो गई जिसका दोषी धर्मसिंह को मानकर हम्मीर देव ने धर्मसिंह की आंखे फुड़वा दी थी ।
  • इस युद्ध में अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुसरत खां की भी मृत्यु हो गई ।


रणथंभौर का साका (1301 की घटना )


रणथंभौर का युद्ध - 


हम्मीर देव चौहान                     अलाउद्दीन खिलजी

सेनापति 

रणमल                                    उलूग खां 

रतिपाल                                   अल्प खां 

खाद्य मंत्री :- सर्जनसाह 


  • 11 जुलाई 1301 में राजस्थान का प्रथम साका रणथंभौर का हुआ ।
  • हम्मीर देव चौहान ने "केसरिया किया" और रानी रंगदेवी ने नेतृत्व में "जल जौहर" हुआ ।
  • हम्मीर देव चौहान की पुत्री पद्मला ने भी जल जोहर किया ।
  • हम्मीर देव चौहान के सेनापति रणमल और रतीपाल ने धोखा दिया और खिलजी से जा मिले ।
  • हम्मीर देव के खाद्य मंत्री सर्जनसाह ने दुर्ग के खाद्यान्न में हड्डियों का चूर्ण मिला दिया ।
  • अलाउद्दीन ख़िलजी ने मुहम्मद शाह को हाथी के पैरों से कुचलवा दिया ।

  • अलाउद्दीन खिलजी ने रणथंभोर विजय के बाद उलूग खां को प्रशासक नियुक्त किया 


इस युद्ध को लेकर प्रसिद्ध इतिहासकार अमीर खुसरो ने कहा की 


आज कुफ्र का गढ़ इस्लाम का घर हो गया ।

दो सोने के दानों के बराबर एक अनाज का दाना भी नसीब नहीं हुआ ।


हम्मीर देव चौहान के निर्माण कार्य 

  • हम्मीर महल
  • जौरा भौरा महल 
  • हम्मीर की छतरी :- 32 खंभों की , इसे न्याय की छतरी भी कहा जाता है , हम्मीर देव चौहान ने अपने पिता जैत्रसिंह याद में निर्माण करवाया।
  • पद्मला तालाब का निर्माण ,जिसमे रानी रंगदेवी के नेतृत्व में जल जौहर किया गया ।


हम्मीर देव चौहान की जानकारी के सूत्र:- 

 नयनचद्र सुरी :- हम्मीर महाकाव्य 

 जोधराज़      :-  हम्मीर रासो ( 18 वीं सदी )

 सारंगधर       :- हम्मीर रासो  (13 वीं सदी )

 हम्मीर बन्धन :- कैलाश अमृत 

 हम्मीर हठ     :-  चंद्रशेखर

 हम्मीर रासन  :-  भाड़ऊ व्यास 

 खजाईंन उल फतुह :- अमीर खुसरो 


जालौर के सोनगरा चौहान 


  • जालौर के सोनगरा चौहाणों की कुलदेवी :-  आशापुरा माता ( मोदरा गांव जालौर)
  • जालौर का प्राचीन नाम :- जबालीपुर ( महर्षि जवाली की तपोस्थली)
  • जालौर में जाल वृक्ष की अधिकता पाई जाती है ।

  • जालौर दुर्ग का निर्माण :- परमार शासकों ने करवाया 


  • जालौर दुर्ग के उपनाम :- 

जबालीपुर दुर्ग 

कंकांचल दुर्ग 

सोनगढ़ 

सुवर्णगिरी 


  • जालौर दुर्ग की कुंजी :- सिवाना दुर्ग ( जो पहले बाड़मेर में था लेकिन नए जिलों के अनुसार वर्तमान में बालोतरा जिले में है )।


जालौर के सोनगरा चौहानों की जानकारी के स्रोत :- 

  •  कन्हाड़े प्रबंध :- पद्मनाभ 
  •  विरमदेव सोनगरा री बात  :- पद्मनाभ
  •  जालौर प्रशस्ति :- जालौर दुर्ग
  •  मकराना शिलालेख :- नागौर 


जालौर सोनगरा चौहानों की वंशावली :- 

 कीर्तिपाल :- (1181 - 82 )

 समरसिंह  :- ( 1182 - 1205)

 उदयसिंह   :- (1205 - 1257)

 चाचिंग देव :- ( 1257 - 1282)

 सामंत सिंह :- (1282 - 1305 )

कान्हड देव    :- ( 1385 - 1311 )


कीर्तिपाल चौहान 

  •  कीर्तिपाल चौहान का शासन काल 1181 ई से 1182 ई था। 
  • नाडोल के राजा अल्हण के पुत्र ।
  • 1181 ईस्वी में परमार शासक कृतपाल परमार को हराकर जालौर पर अधिकार किया।
  • जालौर के चौहानों के संस्थापक।
  • कीर्तिपाल चौहान को राजेश्वर की उपाधि दी गई थी जिसका उल्लेख सुंधा माता अभिलेख में मिलता है।
  • राजस्थान के अबुल फजल कहे जाने वाले मुंहनोत नैनसी ने "कीतू एक महान राजा " की संज्ञा दी ।
  • कीर्तिपाल ने मेवाड़ शासक सामंत सिंह पर आक्रमण करके मेवाड़ पर अधिकार कर लिया इसके बाद सामंत सिंह के भाई कुमार सिंह ने इनको वापिस जाने के लिए मजबूर कर दिया ।


समरसिंह

  • शासनकाल   - 1182 से 1205 
  • राज्याभिषेक  - 1182 ईस्वी में जालौर दुर्ग में हुआ ।
  • इन्होंने जालौर दुर्ग के चारों ओर परकोटे का निर्माण करवाया ।
  • भीमदेव चालुक्य ने समरसिंह पर आक्रमण करके इनको हरा दिया , समरसिंह ने संधि हेतु अपनी पुत्री लीलादेवी का विवाह भीमदेव चालुक्य के साथ कर दिया ।


उदयसिंह 

  • शासनकाल :- 1205  से 1257 
  •  52 वर्ष तक शासन किया ।
  • जालौर का प्रथम प्रतापी शासक।
  • इनके समय में इल्तुतमिश ने जालौर पर आक्रमण किया लेकिन उदयसिंह ने असफल कर दिया और इल्तुतमिश को संधि करने पर मजबूर कर दिया ।
  • 1254 में नसीरुद्दीन महमूद के आक्रमण को भी उदयसिंह ने असफल कर दिया ।
  • मेवाड शासक जैत्रसिंह ने अपने पूर्वजों का बदला लेने के लिए उदयसिंह पर आक्रमण किया जिसमे उदयसिंह की हार हुई।
  • उदयसिंह ने अपनी पोत्री रूपा देवी ( चाचिंग देव की पुत्री) का विवाह मेवाड के राजा जैत्रसिंह के पुत्र तेजसिंह के साथ कर दिया ।


  • उदयसिंह चौहान की छतरी :- भीनमाल जालौर में बनी हुई हैं।


चाचिंग देव 

  • शासन काल :- 1257 से 1282 
  • इनके समय कोई मुगल आक्रमण नहीं हुआ ।


सामंतसिंह चौहान 

  • शासनकाल - 1282 से 1305
  • जलालुद्दीन खिलजी के आक्रमण को असफल किया 
  • अपने जीते जी अपनी सत्ता अपने पुत्र कान्हड देव चौहान को सौप दी।


कान्हड देव चौहान 

शासनकाल - 1305 से 1311

पिता :- सामंतसिंह

रानी :- जैतल दे 

पुत्र  :- वीरमदेव 

सेनापति :- दहिया बीका

मंत्री       :- जैता देवड़ा 


कान्हड देव  चौहान की जानकारी के स्रोत 

  • कान्हड देव प्रबंध :- पद्मनाभ 
  • वीरमदेव सोनगरा री बात :- पद्मनाभ 
  • खजाईंन उल फतुह :- अमीर खुसरो 
  • नैनसी री ख्यात :- मुहनोत नैन्सी 


कान्हड देव  चौहान के जीवन की प्रमुख घटनाएं 


1305 की घटना 


अलाउद्दीन खिलजी ने अपने सेनापति एन उल मुल्क मुल्तानी को जालौर आक्रमण के लिए भेजा , लेकिन मुल्तानी असफल रहा ।


अलाउद्दीन खिलजी और कान्हड देव  चौहान के बीच अनबन के कारण 

  • अलाउद्दीन खिलजी की महत्वकांक्षा 
  • अलाउद्दीन खिलजी की सामाज्यवाद नीति 
  • जालौर दुर्ग का सामरिक महत्व 
  • कान्हड देव  प्रबंध के अनुसार जब अलाउद्दीन खिलजी की सेना गुजरात विजय करके दिल्ली लौट रही थी तब कान्हड देव चौहान ने अपने मंत्री जैता देवड़ा के कहने पर उनसे धन लूटा ।


1305 ईस्वी घटना के परिणाम 

अलाऊद्दीन खिलजी के सेनापति द्वारा जालौर दुर्ग का घेरा डाले रखने के बाद भी असफल होने पर खिलजी के सेनापति एन उल मुल्क मुल्तानी ने कान्हड देव  चौहान के साथ संधि की जिसके तहत कान्हड देव  चौहान ने अपने पुत्र " वीरामदेव " को खिलजी के दिल्ली दरबार में भेजा ।


1308 ईस्वी की घटना

सिवाना दुर्ग का साका 

  •  1308 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी ने जालौर दुर्ग की कुंजी कहे जाने वाले सिवाना दुर्ग पर आक्रमण करने अपने सेनापति कमालुद्दीन गुर्ग को भेजा ।
  • कमालुद्दीन गुर्ग ने सातलदेव ( सिवाना दुर्ग का प्रशासक) के सेनापति भावला पंवार को दुर्ग का लालच देकर अपने साथ मिला लिया ।

  • भावला पंवार ने दुर्ग के जल स्रोत " मामदेव/ भंडेराय" कुंड में " गौरक्त" मिला दिया और सातालदेव के साथ धोखा किया ।
  • सातलदेव चौहान ने केसरिया किया और रानी मैनादे के नेतृत्व में अग्नि जौहर हुआ ।
  • 1308 ईस्वी में सिवाना का साका हुआ ।
  • अलाउद्दीन खिलजी ने सिवाना दुर्ग का नाम बदलकर " खैराबाद" कर दिया ।
  • खैराबाद का प्रशासक कमालुद्दीन गुर्ग को नियुक्त किया ।


1311 ईस्वी की घटना 

जालौर का साका 

  • 1311 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी ने जालौर दुर्ग पर आक्रमण करने अपने सेनापति कमालुद्दीन गुर्ग को भेजा ।
  • कमालुद्दीन गुर्ग ने कान्हड देव चौहान के सेनापति " दहिया बीका " को दुर्ग का लालच देकर अपने साथ मिला लिया ।
  • दहिया बीका ने जालौर दुर्ग का राज " जिसके एक बुर्ज मिट्टी की और कमजोर थी " को कमालुद्दीन गुर्ग को बताकर कान्हड देव  चौहान के साथ धोखा किया 
  • दहिया बीका की पत्नी को इसकी जानकारी मिलते अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए कटार से दहिया बीका का गला काटकर हत्या कर दी ।
  • कमालुद्दीन गुर्ग ने जालौर दुर्ग की कच्ची बुर्ज का पता करने के लिए रातों रात राई खरीदी ( यह कहावत राई के दाम रातों रात गए ) और जालौर दुर्ग की चारों बुर्जों पर पानी छिड़कर राई छिड़की।

  • कान्हड देव  चौहान ने केसरिया किया और रानी जैतल दे ने अग्नि जौहर किया और पुत्र वीरमदेव ने कुलदेवी के मंदिर ( आशापुरा माता ) में गला काटकर आत्महत्या कर ली ।
  • खिलजी की पुत्री फिरोजा वीरमदेव से प्रेम करती थी , लेकिन वीरमदेव और कान्हड देव  चौहान ने अलाऊद्दीन खिलजी को रिश्ते के लिए  इनकार कर दिया , अपने अपमान का बदला लेने के लिए अलाउद्दीन खिलजी ने जालोर दुर्ग पर आक्रमण।  किया ।
  • ख़िलजी की पुत्री फिरोजा ने वीरमदेव के शीश को मंगवाकर पूरे राजपूत विधि विधान से उसका दाह संस्कार किया और स्वयं ने यमुना नदी  में कूदकर आत्महत्या कर ली ।
  • अलाउद्दीन खिलजी ने कमालुद्दीन गुर्ग को जालौर का प्रशासक नियुक्त किया ।
  • जालौर दुर्ग का नाम बदलकर " जलालाबाद" कर दिया ।
  • अलाउद्दीन खिलजी ने जालौर दुर्ग में फिरोजा का मकबरा और तोप मस्जिद का निर्माण। करवाया।

कान्हड देव  चौहान जालौर का अंतिम प्रतापी शासक था ।

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2 टिप्पणियाँ

  1. बेनामी8/11/24 18:02

    धामसीन गाँव, जालौर का चौहान का इतिहास भी बताए

    जवाब देंहटाएं
  2. बेनामी19/11/24 20:29

    वीर वीरमदेव जी ने आत्महत्या नही की थी आपको एक बार इसे फिर से देखना चाहिए ,आत्महत्या करने वालो को नही पूजा जाता ।

    जवाब देंहटाएं

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