राजस्थान के इतिहास को लेकर जब भी कभी आपकी एक्जाम में सवाल पूछा जाता है तो उनमें से सबसे अधिक प्रश्न मेवाड़ के इतिहास के आते हैं , और सबसे बड़ा इतिहास भी मेवाड़ के गूहिल वंश का ही हैं।
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मेवाड़ का इतिहास :-
मेवाड़ क्षेत्र में उदयपुर, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, डूंगरपुर, बांसवाड़ा , सलूंबर, शाहपुरा और भीलवाड़ा जिले शामिल हैं।
मेवाड़ के ठिकाने
मेवाड़ में कुल तीन प्रकार के ठिकाने थे , यह ठिकाने आर्थिक दृष्टि से तीन श्रेणियों में विभाजित थे ।
प्रथम श्रेणी के ठिकाने - 16
द्वितीय श्रेणी के ठिकाने - 32
तृतीय श्रेणी के ठिकाने - 332
मेवाड़ का पुराना नाम :-
शिवी जनपद
प्रागवाट
मेदपाट
मेवाड के गुहिल वंश की उत्त्पति से संबंधित कथन:-
- अबुल फजल के अनुसार :- इनकी उत्त्पति के बारे में कहा की "ये ईरानी शासक नौशेखा आदिल की संतानें हैं! "।
- गोपीनाथ शर्मा , डी पी भंडारकर और दशरथ शर्मा के अनुसार :- मेवाड़ के गुहिलों की उत्त्पति ब्राह्मणों से हुई है ।
- कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार " गुहिल गुजरात के शासक शिलादित्य की संतानें हैं "
- गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार ये सूर्यवंशी हैं ।
गुहिलों के सूर्यवंशी होने के प्रमाण :-
- इनके राष्ट्रीय ध्वज में सूर्य की आकृति चित्रित है ।
- मेवाड़ शासक बप्पा रावल/ कालभोज के द्वारा प्रचलित सोने के सिक्कों में एक तरफ सूर्य का चित्रण।
- राजा टोडरमल के लिखाए गए लेख गुहिलों को " सूर्यवंशी क्षत्रिय" कहा गया।
- मेवाड़ के महाराणा स्वयं को"हिंदुआ सूरज"कहते थे ।
- मेवाड़ की रियासत सबसे प्राचीन रियासत के रूप में जानी जाती हैं ।
मेवाड़ के राष्ट्रीय ध्वज की विशेषता:-
- मेवाड़ के राष्ट्रीय ध्वज में बाई तरफ भील सेनापति राणा पूंजा की भाले के साथ आकृति बनी हुई है ।
- दाईं तरफ क्षत्रिय योद्धा तलवार के साथ चित्रित है ।
- मध्य में सूर्य की आकृति हैं।
- नीचे एक ध्येय वाक्य लिखा हुआ है " जो दृढ़ राखे धर्म को , ताहि राखे करतार "।
मेवाड़ में गुहिल वंश की स्थापना
मेवाड़ में 566 ईस्वी में राजा गुहिल ( गुहिलोत / गुहादत्त) ने गुहिल वंश की स्थापना की ।
इसलिए मेवाड़ शासकों को गुहिल/ गुहिलोत वंश के नाम से जाना जाता है ।
श्री राम के पुत्र कुश के 108 वें वंशज विजयभूप ( इन्होंने अयोध्या की छोड़कर गुजरात के वल्लभीनगर को राजधानी बनाया ) के 6 वें वंशज शिलादित्य थे ।
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राजा गुहिल
- पिता :- वल्लभीनगर नगर के राजा शिलादित्य
- माता :- पुष्पावति ( आबू की परमार राजकुमारी)
- लालन पोषण :- वीरनगर की ब्राह्मणी कमलावती ने ।
मेवाड़ के शासकों की वंशावली
- राजा गुहिल
- राजा नाग/ नागदित्य
- राजा भोज
- महेंद्र प्रथम
- अपराजित
- शिलादित्य
- महेंद्र द्वितीय ( भीलों द्वार हत्या )
- कलभोज/ बप्पा रावल :- 734 - 753 ईस्वी
- राजा अल्लट
- क्षेमसिंह
- सामंतसिंह
- कुमारसिंह
- जेत्र सिंह :- 1213-1253 ईस्वी
- तेज़ सिंह :- 1253-1273 ईस्वी
- समर सिंह :- 1273-1302 ईस्वी
- रतन सिंह :- 1302-1313 ईस्वी
- राणा हमीर :- 1326-1364 ईस्वी
- क्षेत्र सिंह :- 1364-1382 ईस्वी
- लाखा सिंह :- 1382-1421 ईस्वी
- मोकल सिंह :- 1421-1433 ईस्वी
- कुंभा सिंह :- 1433-1468 ईस्वी
- उदय सिंह :- 1468-1473 ईस्वी
- रायमल सिंह :- 1473 -1509 ईस्वी
- संग्राम सिंह प्रथम / सांगा :- 1509-1528 ईसवी
- रतन सिंह :- 1528-1531 ईस्वी
- विक्रमादित्य सिंह :- 1531-1536 ईस्वी
- बनवीर सिंह :- 1536-1537 ईस्वी
- उदय सिंह :- 1537-1572 ईस्वी
- महाराणा प्रताप :- 1572-1597 ईस्वी
- अमर सिंह प्रथम :- 1597-1620 ईस्वी
- करन सिंह :- 1620-1628 ईस्वी
- जगत सिंह प्रथम :- 1628-1652 ईस्वी
- राज सिंह प्रथम :- 1652-1680 ईस्वी
- जय सिंह :- 1680-1698 ईस्वी
- अमर सिंह द्वितीय :- 1698-1710 ईस्वी
- संग्राम सिंह द्वितीय :- 1710-1734 ईस्वी
- जगत सिंह द्वितीय:- 1734-1751 ईस्वी
मेवाड़ के प्रमुख साके
मेवाड़ के इतिहास में चित्तौड़गढ़ दुर्ग के तीन साके हुए, जो निम्नलिखित हैं
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साका :- इसमें पुरषों द्वारा केसरिया और महिलाओं द्वारा जौहर किया जाता है ।
- चित्तौड़ का पहला साका 1303 ईस्वी
- चित्तौड़ का दूसरा साका 1535 ईस्वी
- चित्तौड़ का तीसरा साका 1568 ईस्वी
चित्तौड़ का पहला साका,1303 ईस्वी
- चित्तौड़ का पहला साका रावल रतनसिंह के काल में हुआ , इसमें रावल रतनसिंह ने अलाउद्दीन ख़िलजी के खिलाफ केसरिया किया और रानी पद्मिनी ने अग्नि जौहर किया ।
- 26 अगस्त 1303 को अल्लाउद्दीन खिलजी चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर जीत दर्ज करके चित्तौड़गढ़ दुर्ग का नाम बदलकर "खिज्राबाद" रखा और अपने पुत्र खिज्र खां को प्रशासक नियुक्त किया ।
- अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग में 30000 लोगों को कत्लेआम कर दिया ।
चित्तौड़ का दूसरा साका,1535 ईस्वी
- 1535 ईस्वी में गुजरात के बहादुर शाह ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर आक्रमण किया ।
- इस आक्रमण के दौरान देवलिया के सामंत बाघसिंह ने केसरिया और हाड़ी रानी कर्मावती ने अग्नि जौहर किया ।
चित्तौड़ का तीसरा साका,1568 ईस्वी
- 1568 ईस्वी में अकबर के आक्रमण के पश्चात् राणा उदयसिंह चित्तौड़गढ़ दुर्ग की जिम्मेदारी जयमल और फत्ता सिसोदिया को देकर स्वयं गिरवा की पहाड़ियों में चले गए ।
- जयमल ( मेड़ता का राजा ) व फत्ता सिसोदिया ( आमेट का सामंत और कल्ला जी राठौड़ के नेतृत्व में केसरिया किया गया और फूलकंवर ( जयमल की बहन व फत्ता की पत्नी) के नेतृत्व में जौहर हुआ । यह घटना चित्तौड़ का तीसरा साका था ।
- अकबर ने भी 30 हजार लोगों का चित्तौड़गढ़ दुर्ग में कत्लेआम करवाया ।
- चित्तौड़ में अकबर ने "एलची " नामक सिक्का चलाया।
आज के ब्लॉग के माध्यम से हमने आपको मेवाड़ के ठिकाने , क्षेत्र, मेवाड़ में गुहिल वंश की स्थापना , व उनकी उत्त्पति , गुहिल वंशावली और चित्तौड़गढ़ के तीन साके के बारे में विस्तार पूर्वक बताया ।
अगले ब्लॉग्स में आपको हम गुहिल वंश के राजाओं और उनके महत्त्वपूर्ण निर्माण कार्य , उपाधियां और उनके सैन्य अभियानों के बारे मे विस्तार पूर्वक जानकारी देंगे।
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