राजस्थान इतिहास : मारवाड़ राठौड़ वंश शासक अजीत सिंह , अभयसिंह, विजयसिंह, भीमसिंह, मानसिंह का इतिहास //Rajasthan History: History of Marwar Rathore dynasty rulers Ajit Singh, Abhay Singh, Vijay Singh, Bhim Singh, Man Singh
हमारे इस ब्लॉग पर अभी तक हमने मारवाड़ के राठौड़ वंश की उत्त्पति, और राठौड़ वंश के संस्थापक राव सीहा से लेकर राव जसवंत सिंह तक के मुख्य घटनाएं और उनके कार्यकाल की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों के बारे में बताया , आज के इस ब्लॉग में हम राव अजीत सिंह से लेकर राव मानसिंह के बारे में अच्छे से जानकारी लेंगे जो आपको कंपीटिशन एक्जाम में बहुत अधिक उपयोगी होगी।
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मारवाड़ के राठौड़ वंश के शासक राव जसवंत सिंह की जमरूद का थाना अफगानिस्तान में मृत्यु होने के बाद औरंगजेब ने जोधपुर को खालसा घोषित कर दिया और नागौर के राजा इंद्र सिंह राठौर को बेच दिया लेकिन जोधपुर की जनता ने इंद्रसिंह राठौड़ को स्वीकार नहीं किया ।
जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद उनके दो पुत्र हुए - अजीत सिंह और दलथम्भन
औरंगजेब ने दुर्गादास राठौड़ के साथ धोखा करके अजीतसिंह और दलथम्भन को बुलाकर कैद कर लिया ।
दुर्गादास राठौड़ को जैसे ही धोखे का आभास हुआ दुर्गादास राठौड़ ने गौरा धाय ( मारवाड़ की पन्ना धाय ) और मुकुंददास खिंची के साथ मिलकर अजीतसिंह, दलथम्भन और जसवंतसिंह की रानियों को औरंगजेब की कैद के आजाद करवा लिया ।
जोधपुर वापिस लौटते समय दलथम्भन की मृत्यु हो गई और रानियों ने आत्महत्या कर ली ।
अजीतसिंह को दुर्गादास राठौड़ ने कालिंद्री नामक स्थान पर जयदेव पुरोहित के यहां रखा।
दुर्गादास राठौड़
मारवाड़ में राठौड़ वंश के शासकों के ज्यादा दुर्गादास को सम्मान मिलता है क्यूंकि इनकी स्वामिभक्ति के चलते इन्होंने अजीतसिंह को राजा बनाने के लिए 30 साल संघर्ष किया ।
दुर्गादास राठौड़ का जीवन परिचय
पिता - आसकरण
माता - नेतकंवार
जन्म - 1630 में सालवा कल्ला
मृत्यु - 1718 में उज्जैन मध्य प्रदेश
छतरी - शिप्रा नदी के किनारे, उज्जैन ।
दुर्गादास राठौड़ की उपाधियां
राठौड़ो का युलीसेस
राजपुताने का गौरीबाल्डी
मारवाड़ का अनविदिया मोती
अजीत सिंह को राजा बनाने के लिए 30 साल संघर्ष किया ।
अजीतसिंह ने दुर्गादास राठौड़ को मारवाड़ से जाने के लिए कहा, दुर्गादास राठौड़ मारवाड़ से मेवाड़ चले गए , मेवाड़ के महाराणा अमरसिंह द्वितीय ने विजयपुरा और रामपुरा की जागीर दी और इन्हे हाकिम का पद दिया ।
कालांतर में दुर्गादास राठौड़ उज्जैन चले गए और यहीं पर इनकी मृत्यु हुई ।
राव अजीतसिंह ( 1679 - 1724 )
पिता - जसवंत सिंह
संगरक्षक - दुर्गादास राठौड़
1708 ईस्वी में अजीत सिंह देबारी समझोते के बाद मारवाड़ के शासक बने।
देबारी समझौता 1708
मुगल बादशाह बहादुर शाह प्रथम ने आमेर आक्रमण के बाद आमेर के राजा सवाई जयसिंह को हटाकर इनके छोटे भाई विजयसिंह को राजा बना दिया ।
सवाई जयसिंह , दुर्गादास राठौड़ और अजीत सिंह के पास गए और अजीतसिंह और सवाई जयसिंह ने मेवाड़ महाराणा अमरसिंह द्वितीय से मदद मांगी ।
इस समझौते के तहत अमरसिंह द्वितीय ने अजीतसिंह को मारवाड़ और सवाई जयसिंह को आमेर का राजा बनने में मदद की ।
अजीतसिंह ने अपनी पुत्री इंद्रकंवर की शादी मुगल बादशाह फरुखसियार से की , यह अंतिम राजपूत मुगल वैवाहिक संबंध था ।
अजीतसिंह की हत्या इनके पुत्र बख्तसिंह ने की ।
फरुखसियार ने अजीत सिंह को " राजेश्वर" की उपाधी दी ।
अजीतसिंह की चिता के साथ पशु पक्षी जल गए थे ।
अजीत सिंह की पुस्तकें
अजीत सिंह रा कवित
दुर्गा पाट भाषा
गुणसागर
निर्वाण रा दुहा
अभयसिंह ( 1724 -- 1749 )
मारवाड़ के शासक अभयसिंह ने हुरडा सम्मेलन - 1734 में भाग लिया ।
इनके जीवनकाल की एक प्रमुख घटना " खेजड़ली घटना - 1730 ईस्वी हैं।
जोधपुर महाराजा अभयसिंह ने अपने सेनापति गिरधारी लाल को दुर्ग पुनर्निर्माण के लिए चुना पत्थर बनाने के लिए लकड़ियों की व्यवस्था करने का आदेश दिया।
गिरधारी लाल ने खेजडली गांव में वृक्षों को काटने का विरोध करने पर अमृतादेवी विश्नोई के साथ उनकी 3 पुत्रियों और कुल 363 लोगों को पेड़ों के साथ काट डाला ।
अमृतादेवी विश्नोई ने वृक्षों की रक्षा करते हुए अपना बलदान दिया ।
12 सितम्बर स1730 में अमृता देवी बिश्नोई सहित चोरासी गांव के 363 बिश्नोई [69 महिलाएं और 294 पुरुष]खेजड़ी हरे वृक्षों को बचाने के लिए खेजड़ली में शहीद हुए थे।
अभयसिंह के दरबारी विद्वान और उनकी रचनाएं
करनीदास :- सुरजप्रकाश ( बीडदसिनगार)
वीरभान:- राजरूपक
इन पुस्तकों में अहमदाबाद के युद्ध का वर्णन मिलता है जिसमे अभयसिंह ने सर बुलंद खां को हराया था ।
रामसिंह ( 1749 - 1751)
अयोग्य होने के कारण जोधपुर की जानता ने नकार दिया ।
बगसिंह ( 1751 - 1752 )
एक साल के अंदर मृत्यु हो गई।
विजयसिंह ( 1752 - 1793 )
बगसिंह का पुत्र
विजयसिंह की एक प्रेमिका थीं, पासवान गुलाब राय - ( मारवाड़ की नूरजहां) इनका विजयसिंह के शासनकाल में हस्तछेप रहा ।
इन्होंने जोधपुर में गुलाब सागर बनवाया ।
भीमसिंह ( 1793 - 1803 )
मेवाड महाराणा भीमसिंह की पुत्री कृष्णा कुमारी के साथ सगाई।
अपने छोटे भाई मानसिंह के साथ उत्तराधिकार संघर्ष।
मानसिंह ( 1803 - 1843 )
आइस देवनाथ ही के आशीर्वाद से राजा बने ।
जोधपुर में नाथ संप्रदाय का महामंदिर का निर्माण करवाया ।
नाथ चरित नामक पुस्तक लिखी ।
जोधपुर में " मान प्रकाश पुस्तकालय " का निर्माण करवाया ।
इनको " संन्यासी राजा " कहा जाता है ।
1818 ईस्वी में अंग्रजों के साथ संधि कर ली ।
दरबारी विद्वान
बांकीदास
बांकीदास री ख्यात
कुकवी बत्तीसी
दातार बावनी
मान जसो मंडन
एक गीत लिखा - आयो अंग्रेज मुल्क रे ऊपर।
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