Animal husbandry :- पशु परिचर पशुपालन का सामान्य ज्ञान

 Animal husbandry  :- पशु परिचर पशुपालन का सामान्य ज्ञान || animal husbandry :- general knowledge of animal husbandry




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पशु परिचर की प्रतियोगी परीक्षा के पार्ट बी एनिमल हसबेंड्री का  प्रथम पार्ट :- पशुपालन का सामान्य ज्ञान 


पशुपालन : - पशुपालन विज्ञान की वह शाखा है जिसमें पशु का प्रबंधन व पालन पोषण का अध्ययन किया जाता है इसका सीधे शब्दों में अर्थ है जिसमे पशुधन के रख रखाव और खाने पीने बीमारियों का ज्ञान होता हैं।


पशुधन ( livestock) :- वे पशु जैसे गाय, भैंस, भेड़, घोड़ा, ऊट , सुअर , गधा, कुत्ता आदि जिनसे मानव को किसी न किसी रूप से आर्थिक लाभ हो जैसे - उन उत्पादन, मांस, दुग्ध उत्पादन, भार ढोने आदि।


पशुधन प्रबंधन - इसके अंतर्गत प्रजनन, निष्कासन, खाना पीना तथा उन्नत विधियों द्वारा पशुधन उत्पाद प्राप्त करते हैं ।


पालतू जानवर :- जिनको मनोरंजन के लिए पाला जाता है जैसे - बिल्ली,कुत्ता, पक्षी, खरगोश, कछुआ।



National Bureau of Animal Genetic Resources :- NBAGR


भारत देश में पशुओं का पंजीकरण राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो ( National Bureau of Animal Genetic Resources :- NBAGR ) द्वारा किया जाता है।


मुख्यालय :- करनाल, हरियाणा 


वर्तमान में NBAGR द्वारा कुल पशुओं की नस्लें पंजीकृत हैं - 212

 पशुधन :  पंजीकृत नस्लें 

  गाय :- 53

  भैंस :- 20

  भेड़ :-  44

  बकरी :- 37

   ऊट  :- 09

 घोड़ा और खच्चर :- 07

मुर्गियां :- 19

सुअर :- 13

हंस /याक :- 01/01

बतख :- 02

कुत्ते :- 03

गधा :- 03


पशुपालन से संबंधित शब्दावली और महत्त्वपूर्ण रोग:- 

चयन :- शुद्ध गुणवत्ता वाले पशुओं का चयन करके संकरण द्वारा अच्छे गुणवत्ता वाले पशु प्राप्त करना। 

काफ रीरिंग :- नवजात पशुओं का लालन पोषण ।

आवास:- पशुओं के लिए समुचित आवास व्यवस्था करना। 

हाईजीन तथा साफ सफाई :- पशु आवास की साफ सफाई एवं नि:सक्रमण ।

यौवनारंभ:- जब पशु के जनन अंग क्रियात्मक रूप से विकसित हो जाएं व द्वितीयक लैंगिक परीक्षण प्रदर्शित करने लगे अथवा उनकी जान कोशिका अंडाणु या शुक्राणु का निर्माण शुरू हो जाते हैं, मद में यह अवस्था मत चक्र द्वारा तथा नर में यह अवस्था संभोग क्षमता द्वारा प्रदर्शित की जाती हैं।

गर्भकाल:- मादा पशु में गर्भधारण से लेकर प्रसव तक के बीच के समय अंतराल को गर्भकाल कहते हैं। 

बधियाकरण :- यह वह प्रक्रिया है जिसमें नर तथा मादा पशुओं को चंदन के लिए अयोग्य बना देना या उसके जनन अंगों को बाहर निकाल देना।

कलिका रोधन :- छोटे पशुओं में सींग रोधन।

सींग रोधन :- बड़े पशुओं में सींग रोधन।

पोलीपैड :-  वे पशु जिनके खुर विभाजित होते हैं जैसे गाय, भैंस, भेड़, बकरी।

सोलीपैड :- वे पशु जिनकी खुद विभाजित नहीं होते , जैसे घोड़ा खच्चर गधा आदि।

केथीटर :- पशुओं में पेसाब को बाहर निकालने का यंत्र।

प्रीमी पेरस :- वह मादा पशु जिसने पहली बार गर्भित होकर बच्चा दिया हो ।

डाउन कल्चर :-  वह मादा पशु जो बच्चे के जन्म के लिए तैयार हो ।

फ्री मार्टिन :- पशुओं में जुड़वा बच्चा होने की स्तिथि । में नर सामान्य हो लेकिन मादा बंध्या होती है ।

फ्ल्शिंग :- मादा पशु को प्रजनन काल के 2 से 3 सप्ताह पहले अतिरिक्त दाना खिलाना, जिससे स्वच्छ अंडे का उत्पादन कर सके ( यह प्रक्रिया सामान्यतः भेड़ में करते हैं ।)

स्ट्रीमिंग अप :- गयाभिन मादा पशु के अंतिम ट्राइमेस्टर में अतिरिक्त दाना खिलाना जिससे मादा तथा फिटस का विकास पर्नरूप से हो सके।

कास्टिंग :- विभिन्न क्रियाओं जैसे - दवाई देना , इंजेक्शन देना , सींग रोधन आदि हेतु पशुओं का जमीन के दांई तरफ़ गिराना ।

डबिंग :- मुर्गियों में कलंगी को काटना (सामान्य रूप से नवजात चूजों में 3 दिन में करते हैं )।

ब्रोइलर :- 8 सप्ताह की मुर्गी जिसको मांस हेतु पाला जाता हैं।

लेयर :- अंडे के लिए पाली गई मुर्गी।

फ्रायर/रोस्टर :- 5 से 9 माह की मुर्गी, जिनको मांस हेतु पाला जाता हैं।

डिवॉर्मिंग :- मुर्गियों को उनके पेट व आंतों में पाए जानें वाले कृमियों से मुक्त कराना 

प्रथम डीवर्मिंग :- 4.5 माह की उम्र पर ।

सेकंड डी वर्मिंग :- 6 माह की उम्र पर ।

केनाबोलिज्म :- मुर्गियों में Nacl की कमी के कारण एक दुसरे को चोंच मारकर घायल करना।

क्वारंटाइन :- किसी पशु को विदेश से अपने देश में लाने पर 30 से 40 दिनों तक संक्रमित रोगों की जांच के लिए अलग रखते हैं।

शुष्क काल :- प्रसव से पूर्व गयाभिन मादा में दूध को सुखाना जिससे अगली बार अच्छा दूध उत्पादन हो सके ( सामान्यत: यह 60 दिन का होता है )।

लेक्टेशन पीरियड :- पशु में ब्याने से दूध सोकन तक का समय।

विनिंग :- नवजात बच्चे को मां से अलग करके पालना ।

कोलेस्ट्रम (खींस)  :- प्रथम दूध ( प्रसव के बाद प्रथम तीन दिनों का दूध , इस दूध को बछड़े को उसके वजन के ⅒ भाग पिलाना चाहिए, यह दूध नवजात को प्रतिरक्षा एंटीबॉडी देता हैं।

कोप्रोफैगिया :- जानवर द्वारा अपने गोबर या मल को खाना यह सामान्यत: खरगोश में देखने को मिलता हैं।

जियोफेगिया :- जानवर द्वारा मिट्टी को खाना ।

एलोट्रियोफेगिया :- जानवरों द्वारा अखाद्य पदार्थों को।खाना यह रोग फास्फोरस की कमी के कारण होता है।

इन्फेंटोफेगिया :- मां के द्वारा अपने नवजात बच्चों को खाना जैसे कुत्तिया।

पिलोफेगिया :- जानवरों द्वारा बालों को खाना ।


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