चौहान वंश :- शाकंभरी और अजमेर के चौहान

 चौहान वंश :- शाकंभरी और अजमेर के चौहान ||Chauhan Dynasty: - Chauhan of Shakambhari and Ajmer



राजस्थान के इतिहास में हमारे ब्लॉग पर चौहान वंश के संथापक और उनकी उत्त्पति के प्रमुख मत और समर्थक के बारे में जानकारी दी गई थी ।


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राजस्थान इतिहास :- चौहान वंश के संस्थापक और उनकी उत्त्पति के मत  


राजस्थान का इतिहास :- शाकम्बरी और अजमेर के चौहान 


चौहान से संबंधित वर्तमान स्थान और उनके प्राचीन नाम 


 वर्तमान नाम                            प्राचीन नाम

 बिजौलिया                                विजयवली 

 नागौर                                      अहिछत्रपुर 

 मंडोर                                       मांडव्यपुर 

 सांभर                                      शाकंभरी 

 मेड़ता                                      मेडन्तकपुर 

 जालौर                                     जबालिपुर 

 नाडोल                                     नडडूल

 दिल्ली                                     ढील्लिका 

 रणथंभौर                                 रणस्तंभपुर 


शाकम्भरी और अजमेर के चौहान 


वासुदेव चौहान 

चौहान वंश के संस्थापक "वासुदेव चौहान " थे , इन्होने 551 ईस्वी में शाकम्भरी वर्तमान में सांभर में चौहान वंश की नींव रखी।


यहां से प्राप्त " बिजौलिया शिलालेख" में वर्णित है 

551 ईस्वी मे वासुदेव चौहान ने चौहान वंश की नींव रखी 

इस लेख के अनुसार 551 ईस्वी में वासुदेव चौहान ने शाकमभरी माता का मंदिर और सांभर झील का निर्माण करवाया ।

वासुदेव चौहान ने प्रारंभिक राजधानी अहिछत्रपुर वर्तमान में नागौर को और उसके बाद शाकमभरी को अपनी राजधानी बनाया।


दुर्लभराज प्रथम :

गुर्जर प्रतिहार शासक वत्सराज का सामंत था ।


गुवक प्रथम 

गुर्जर प्रतिहार शासक नागभट्ट २ का सामंत था ।

नागभट्ट २ ने गुवक प्रथम को " वीर राजा " की उपाधि दी ।

हर्षनाथ मंदिर का निर्माण प्रारंभ करवाया।


चंदनराज 

चंदनराज की रानी आत्मप्रभा ( रूद्राणी) कालसर्पदोष से ग्रसित थी ।

इसकी रानी आत्मप्रभा 1000 दीपक पुष्कर झील में प्रज्वलित करती थी ।

राजस्थान की प्रथम रानी थी , जो क्रियायोग में निपुण थी ।


नोट:- राजस्थान में दो झीलों में दीपदान की अनोखी परंपरा है , इन झीलों में कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीपदान किया जाता है ।

पुष्कर झील - अजमेर 

कोलायत झील - बीकानेर 


सिंहराज चौहान :- 

प्रथम शासक जिसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की ।

हर्षनाथ मंदिर का निर्माण पूर्ण करवाया ।


विग्रहराज द्वितीय 

चौहान वंश का प्रथम प्रतापी शासक ।

गुजरात के मूलराज चालुक्य को हराया ।

भड़ौच (गुजरात) में आशापुरा माता मंदिर का निर्माण करवाया।


नोट :- राजस्थान में दो जगह आशापुरा माता का मंदिर हैं 

नाडोल - पाली 

मोदरा गांव - जालौर 


दुर्लभराज द्वितीय 

दुर्लभमेरु की उपाधि प्राप्त थी ।


गोविंदराज तृतीय 

फरिस्ता की ग्रंथ " तारिक - ए - फरिश्ता" के अनुसार अरब शासकों को मारवाड़ में रोका ।

इनको वेरीघट्ट ( अर्थ - शत्रु संहारक) की उपाधि प्राप्त थी ।


पृथ्वीराज प्रथम 

तर्क विजेता कहा जाता हैं।

इस शासक ने 700 चालुक्यों को मौत के घाट उतारा था ।


अजयराज चौहान 

अजमेर में चौहान वंश का संस्थापक 

1113 ईस्वी में अजयराज चौहान ने अजयमेरू शहर वर्तमान अजमेर शहर की स्थापना की ।

1113 ईस्वी में गठबीठली पहाड़ी पर अजयमेरू दुर्ग का निर्माण करवाया ।

1113 ईस्वी में अजमेर को अपनी राजधानी बनाया।

प्रथम चौहान शासक जिसने अजमेर में सिक्के ढालने की टकसाल की स्थापना की ।

अजयदेव , अजयप्रिय देव अपने नाम के सिक्के चलाए।

अजयराज ने अपनी पत्नी सोमेलेखा का नाम सिक्कों पर अंकित करवाया।

शैव धर्म का अनुयायी 

दिगंबर - स्वेताम्बर सम्मेलन की अध्यक्षता की ।

अजयराज नरवर्मन पंवार के सेनापति सुलहाना को अपने घोड़े की पीठ पर बैठाकर अजमेर के आया था।

अजयराज की मृत्यु 1133 में पुष्कर में हुई ।


अर्णोराज चौहान 

 पिता - अजयराज चौहान 

 माता - सोमलेखा 

 उपनाम - आना जी 

दरबारी विद्वान - देवबोध 

                      धर्मघोष 

पुष्कर में वराह मंदिर का निर्माण करवाया ।

1137 ईस्वी में चंद्रा नदी के पानी को रोककर तुर्कीसेना के रक्तपात को साफ करने के लिए आनासागर झील का निर्माण करवाया ।

अर्णोराज चौहान ने गुजरात चालुक्य शासक जयसिंह सिद्धराज के बीच सीमा विवाद को लेकर सिद्धराज पर 1134 ईस्वी पर आक्रमण कर दिया ।


जयसिंह सिद्धराज ने अपनी पुत्री कांचन देवी का विवाह अर्णोराज के साथ कर दिया ।

1145 ईस्वी में चालुक्य शासक कुमारपाल चालुक्य और अर्णोराज के मध्य " आबू का युद्ध" इसमें संधि हेतु अर्णोराज ने अपनी पुत्री जल्हण का विवाह कुमारपाल चालुक्य के साथ किया ।


अर्णोराज के 4 पुत्र थे 

जगदेव 

सोमेश्वर चौहान 

विग्रह्राज चतुर्थ 

अपरगंगाय 


अर्णोराज के पुत्र " जगदेव चौहान" ने राजा बनने की लालसा के चलते अपने पिता अर्णोराज की हत्या कर दी , इस कारण जगदेव चौहान को "पितृहंता" के नाम से जाना जाता हैं ।


विग्रहराज चतुर्थ/ बिसलदेव चौहान 

विग्रह राज चतुर्थ को "बिसलदेव" के नाम से जाना जाता हैं ।

किलहोर्न ने कहा की " विग्रहराज चतुर्थ" कवि कालिदास और कवि कविभूति की होड़ कर सकता है ।

जयानक ने अपनी रचना " पृथ्वीराज विजय" में विग्रहराज 4 को कटिबंधु की उपाधि दी हैं।

कटिबंधु या कटिबंधव ( विद्वानों का आश्रयदाता)की उपाधि ।

विग्रह राज चतुर्थ द्वारा संस्कृत भाषा में रचित एक नाटक  :- हरिकेली नाटक।

इस नाटक की दो पंक्तियां दो जगह लिखित हैं 

अढ़ाई दिन का झोपड़ा - अजमेर 

राजा राममोहन राय स्मारक - ब्रिस्टल ( इंग्लैंड)

विग्रहराज चतुर्थ के काल को चौहानों का स्वर्णकाल कहा जाता हैं।


विग्रहराज चतुर्थ के दरबारी विद्वान और उनकी रचना 

नरपति नाल्ह :- बीसलदेव रासौ 

सोमदेव :- ललित विग्रहराज 

धर्मघोष :- विग्रहराज चतुर्थ ने इनके आग्रह पर एकादशी के दिन पशु हत्या पर प्रतिबंध लगाया।


विग्रहराज चतुर्थ की स्थापत्य कला 

 इन्होने सरस्वती कंठाभरण संस्कृत पाठशाला का निर्माण करवाया जिसको कुतुबुद्दीन ऐबक ने तुड़वाकर अढ़ाई दिन का झोपड़ा का निर्माण करवा दिया - अढ़ाई दिन के झोपड़ा के वास्तुकार अबु वक्र थे ।

बीसलपुर कसवां बसाया।

बिसल्या / बीसलपुर बांध का निर्माण ।

गोकर्णेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण करवाया ।

दिल्ली शिवालिक स्तंभ लेख उत्कीर्ण करवाया ।


अन्य उपलब्धियां 

दिल्ली के तोमर शासकों को पराजित किया ।

दिल्ली पर अधिकार करने वाला प्रथम चौहान शासक।

गजनी के खुसरवशाह को पराजित किया ।


इनकी मृत्यु 1163 ईस्वी में हुई ।


अपरगांगेय 

1163 से 1164 ईस्वी इनका कार्यकाल है ।


अपरगांगेय को मारकर पृथ्वीराज द्वितीय ने 1164 से 1169 तक अजमेर पर शासन किया ।


सोमेश्वर चौहान 

कार्यकाल :- 1167 से 1177 ईस्वी 

पिता :- अर्णोराज 

माता :- कांचण देवी - गुजरात शासक जयसिंह सिद्धराज की पुत्री।

रानी  :- कर्पूरी देवी ( दिल्ली के अनंगपाल तोमर की पुत्री) ।

पुत्र   :- पृथ्वीराज तृतीय और हरिराज 

पुत्री  :- प्रथा देवी 

उपाधि :- प्रतापलंकेश्वर 

इनका एक महत्त्वपूर्ण कार्य था , जिसमे इन्होने अपने पिता अर्णोराज और स्वयं की मूर्ति बनवाकर नवीन मूर्तिकला को प्रोत्साहन दिया ।

1177 ईस्वी में गुजरात के शासक भीमदेव चालुक्य द्वितीय ने सोमेश्वर की हत्या कर दी।



पृथ्वीराज तृतीय 

कार्यकाल :- 1177 से 1192 ईस्वी 

पिता का नाम :- सोमेश्वर चौहान 

माता का नाम :- कर्पूरी देवी

बहन का नाम :- प्रथा बाई 

भाई का नाम :- हरीराज 

नाना का नाम :- अनगपाल तोमर 

जन्म  :- आंहिलवाड़ा गुजरात 1166 ईस्वी 

रानियां :- इच्छिनी देवी

              संयोगिता 

पुत्र :- गोविंदराज चौहान 

घोड़ा:- 

सेनापति :- भुवनमल 

मंत्री :- कैमास/ कदमबास 


पृथ्वीराज चौहान की उपाधियां 

पृथ्वीराज चौहान चौहान वंश का अंतिम प्रतापी शासक था ।

रायपिथौरा 

दलपुंगल ( इसका अर्थ होता हैं विश्व विजेता )

सपादलक्षेश्वर 

भारतेश्वर 


पृथ्वीराज चौहान का राज्याभिषेक 1177 ईस्वी में मात्र 11 साल की आयु में किया गया ।

राज्याभिषेक होते ही पृथ्वीराज चौहान को दो समस्याएं आयी 

नागार्जुन ( पृथ्वीराज चौहान का चचेरा भाई जो अजमेर पर अधिकार करना चाहता था ।)

भनडानक जाति ( जो सतुलज प्रदेश पर अधिकार कर चुकी थी )



पृथ्वीराज चौहान तृतीय के दरबारी विद्वान:- 


याद रखने के लिए एक छोटी सी ट्रिक :- " चंदबरदाई ने आवाज विशव को लगायी , विद्या भागी आई"


चंदबरदाई 

आ :- आशाधार

वा :- बागीश्वर 

ज :- जनार्दन व जायनक 

विश्व :- विश्वरूप 

विद्या :- विद्यापति गौड़ 


 

पृथ्वीराज चौहान के युद्ध 


1178 ईस्वी में पृथ्वीराज चौहान ने अपने सेनापति भुवानमल और मंत्री कदमवास की सहायता से गुड़गांव के युद्ध में नागार्जुन का दमन किया ।


1182 ईस्वी में पृथ्वीराज चौहान के सेनापति भुवनमल के नेतृत्व में भंडानक जाती का दमन करके पुनः सतुलज प्रदेश को अपने अधिकार में ले लिया ।


तुमुल का युद्ध :- 1182 ईस्वी 


जब पृथ्वीराज की सेना और उनके घायल सिपाही भंडानक जाती का दमन करके वापिस अजमेर लौट रहे थे , तो महोबा के चंदेल शासक ने उन्हें बंदी बना लिया ।

इस कारण पृथ्वीराज चौहान ने पंजुनराय को सेनापति नियुक्त करके चंदेल शासक परमर्दीदेव चंदेल से युद्ध करने भेजा।

इस तुमूल के युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की विजय हुई और चंदेल शासक परमर्दीदेव की हार हुई और चंदेल शासक के सेनापति आल्हा और ऊदल वीरगति को प्राप्त हुए ।

पृथ्वीराज चौहान ने पंजुनराय को महोबा का प्रशासक नियुक्त किया ।


नागौर का युद्ध 

1184 ईस्वी में गुजरात शासक भीमदेव चालुक्य द्वितीय ने सिरोही के राजा सलख की पुत्री के लिए पृथ्वीराज पर आक्रमण किया।

 इस युद्ध को नागौर का युद्ध कहा जाता हैं।


इस युद्ध का परिणाम अनिर्णायक रहा , बाद में मंत्री जगदेव प्रतिहार के कहने पर दोनों पक्षों के मध्य 1187 ईस्वी में संधि हुई।


पृथ्वीराज चौहान और गेहडवाल संघर्ष 


पृथ्वीराज चौहान ने संयोगिता के लिए सेनापति पंजुनराय के साथ मिलकर कन्नौज शासक जयचंद गेहडवाल पर आक्रमण कर दिया और कन्नौज पर अधिकार कर लिया ।

पृथ्वीराज चौहान ने संयोगिता के साथ गंधर्व विवाह कर लिया ।

संयोगिता जयचंद गेहडवाल की पुत्री थी। 


पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी 

पृथ्वीराज चौहान और मौहम्मद गौरी के बीच हुए युद्धों को लेकर विद्वानों ने अलग अलग  युद्धों की संख्या बताई हैं


नयनचंद्र सूरी ने के अनुसार :- 7 बार युद्ध ( हम्मीर महाकाव्य)

चंदबरदाई के अनुसार :- 21  बार युद्ध ( पृथ्वीराज रासो) 

चंद्रशेखर के अनुसार :- 21 बार युद्ध ( सुरजन क्षेत्र)

मेरुतुग के अनुसार  :- 23 बार युद्ध ( प्रबंध चिंतामणि )

पृथ्वीराज प्रबंध के अनुसार :- 20 बार युद्ध 


वास्तविक रूप से मौहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के मध्य 2 बार युद्ध हुए ।


युद्ध का कारण 

मौहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान के क्षेत्र " तवर - ए - हिंद" पर अधिकार कर लिया था ।


तराइन का प्रथम युद्ध 

1191 ईस्वी में पृथ्वीराज चौहान और मौहम्मद गौरी के बीच तराइन का प्रथम युद्ध लडा गया जिसमें पृथ्वीराज चौहान के साथ उनके तीन सेनापति गोविंदराय तोमर , खांडेराय, चामुण्डराय  और मोहम्मद गौरी के साथ उनके सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक था ।


इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की विजय हुई और मौहम्मद गौरी वापस भागना पड़ा।

गोविंद राय तोमर ने भाला से वार करके मोहम्मद गौरी को घायल कर दिया था ।


तराइन का द्वितीय युद्ध 

 तराइन का द्वितीय युद्ध 1192 में करनाल हरियाणा में मौहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के मध्य हुआ ।


पृथ्वीराज तृतीय                       मौहम्मद गौरी 

गोविंद राय तोमर                      कुतुबुद्दीन ऐबक 

खांडेराय                                 किवाम- उल-मुल्क 

मेवाड़ शासक सामंतसिंह            रुकनुद्दीन हमजा 

मंत्री उदयराज

प्रतापसिंह

सोमेश्वर 



युद्ध के कारण 

 मोहम्मद गौरी ने पहले युद्ध में मिली हार का बदला लेने के लिए यह युद्ध लडा 

इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हार हुई और गौरी की विजय हुई ।


पृथ्वीराज चौहान की हार के मुख्य कारण 

पृथ्वीराज चौहान का घोड़ा बदल दिया गया जो युद्ध कला की जगह नृत्य कला में निपुण था ।

घोड़ा से बदलकर हाथी पर युद्ध किया ।

इस युद्ध में पृथ्वीराज के सेनापति " प्रताप सिंह और सोमेश्वर " ने धोखा दिया और मंत्री उदयराज समय पर सेना लेकर नहीं आ पाया।


युद्ध के परिणाम 

 युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हार हुई और गौरी की विजय हुई ।

इस युद्ध में मेवाड़ के शासक सामंत सिंह वीरगति को प्राप्त हुए ।

इस युद्ध के बाद गौरी द्वारा पृथ्वीराज चौहान को बंदी बनाकर गजनी ले जाया गया और वहां पृथ्वीराज चौहान की आंखे फोड़ दी ।

पृथ्वीराज रासो के अनुसार पृथ्वीराज तृतीय ने शब्दभेदी बाण चलाकर मोहम्मद गौरी को घायल किया ।

इसके बाद चंदबरदाई ने अपनी कटार से पृथ्वीराज चौहान की हत्या कर दी और स्वयं का भी गला कटकर आत्महत्या कर ली ।

"आशीर्वाद लाल श्रीवास्तव" ने तराइन के द्वितीय युद्ध को भारतीय इतिहास की युग परिवर्तनकारी घटना या युग निर्माणकारी घटना बताया।

इस युद्ध के बाद राजपूत काल की समाप्ति हुई और भारत में मुस्लिम राज्य की स्थापना हुई ।

मोहम्मद गौरी ने कुतुबुद्दीन ऐबक को भारत के जीते हुए प्रदेशों का गवर्नर बनाया ।


नोट :- मोहम्मद गौरी के साथ " ख्वाजा मोइनुद्दीन चिस्ती" 1192 ईस्वी में पृथ्वीराज तृतीय के समय भारत आए और उन्होंने अजमेर को अपनी कर्मस्थली बनाया।


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