राजस्थान का इतिहास :- बीकानेर का राठौड़ वंश, संस्थापक, उत्त्पति और राव बीका से महाराजा कर्णसिंह के बारे में जानकारी || History of Rajasthan: - Information about the Rathore dynasty of Bikaner, founder, origin and from Rao Bika to Maharaja Karn Singh
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आज के इस ब्लॉग के माध्यम से हम आपको राजस्थान में राठौड़ वंश की सत्ता के दूसरे प्रमुख केंद्र बीकानेर के राठौड़ वंश के बारे में जानकारी देंगे
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बीकानेर का राठौर वंश
बीकानेर के प्राचीन नाम :-
- कुरू जांगला ( महाभारत काल में )
- जांगल प्रदेश
- रातीघाटी
नोट:- जांगल प्रदेश की राजधानी अहिछत्रपुर ( वर्तमान में नागौर जिसे धातु नगरी के नाम से भी जाना जाता हैं ) थी ।
बीकानेर में राठौड़ वंश की स्थापना :-
मारवाड़ के शासक राव जोधा के पुत्र राव बीका ने 1465 ईस्वी अपने चाचा कांधल के साथ जांगल प्रदेश में राठौर वंश की नीव रखी ।
नोट:- राव जोधा के दूसरे पुत्र राव दुदा ने मेड़ता में राठौड़ वंश की नीव रखी थी ।
राठौर वंश की कुल देवी :- नागणेची माता ( नागाणा गांव - वर्तमान बालोतरा जिला )
आराध्य देवी :- करणी माता ( देशनोक, बीकानेर )
बीकानेर के राठौर वंश की वंशावली :-
बीकानेर के शासक | कार्यकाल |
---|---|
राव बीका | 1465 - 1504 |
राव नरा | 1504 - 1505 |
राव लूनकरण | 1505 - 1526 |
राव जैतसी | 1526 - 1542 |
राव कल्याणमल | 1542 - 1574 |
रायसिंह | 1574 - 1612 |
दलपत सिंह | 1612 - 1613 |
सूरसिंह | 1613 - 1631 |
कर्णसिंह | 1631 - 1669 |
अनूपसिंह | 1669 - 1698 |
स्वरूपसिंह | 1698 - 1700 |
सुजानसिंह | 1700 - 1734 |
जोरावर सिंह | 1734 - 1746 |
गजसिंह | 1746 - 1786 |
सूरतसिंह | 1786 - 1828 |
रतनसिंह | 1828 - 1851 |
सरदारसिंह | 1851 - 1872 |
डुंगरसिंह | 1872 - 1887 |
गंगासिंह | 1887 - 1943 |
राव बीका
- सन 1465 ईस्वी में जंगल प्रदेश के अंदर राठौड़ वंश की नींव रखी
- बीकानेर राठौर वंश का संस्थापक
- करणी माता के मंदिर ( देशनोक,बीकानेर) का निर्माण करवाया।
- राव बीका ने आखातीज के दिन 1488 में करणी माता के आशीर्वाद से बीकानेर की स्थापना की ।
नोट :- करणी माता का बचपन का नाम रिद्धि या रिद्धू बाई था ।
- करणी माता ने राव बीका और शेखा भाटी के मध्य समझौता करवाया।
- शेखाभाटी ने अपनी पुत्री रंगकंवर का विवाह राव बीका के साथ किया ।
- राव बीका ने सर्वप्रथम " कोडमदेसर" को अपनी राजधानी बनाया
- 1488 ईस्वी में रानी घाटी क्षेत्र में बीकानेर की स्थापना के बाद बीकानेर को अपनी दूसरी राजधानी बनाया ।
- राव बीका ने अपने भाई राव सूजा ( मारवाड़ शासक) पर राज्य चिन्हों के लिए आक्रमण किया ।
- इस युद्ध में राव जोधा की पत्नी जस्मादे हाड़ी ने दोनों के मध्य समझौता करवाया ।
- राव बीका 3 राज्य चिन्ह मारवाड़ से लेकर आए
नागणेची माता की मूर्ति
लक्ष्मीनाथ जी की मूर्ति
लोकदेवता हड़बू जी की कटार।
निर्माण कार्य
- कोडमदेसर में भैरव मंदिर का निर्माण
- बीकानेर की स्थापना
- देशनोक बीकानेर ने करणी माता का मंदिर बनवाया ।
राव नरा
इनके शासनकाल में कोई महतवपूर्ण कार्य नहीं हुए ।
राव लूनकरण
- जसनाथ जी के आशीर्वाद से राजा बने ।
- जैसलमेर के शासक जैतसी को हराया ।
- राव जैतसी से दरबारी कवि बिठू सूजा ने अपने ग्रंथ " राव जैतसी रो छंद" में इनको " कलयुग का कर्ण " कहा हैं।
- राव लूनकरण की मृत्यु ढोसी के युद्ध 1526 में नारनौल के अविमीरा से लड़ते हुए मृत्यु हो जाती है ।
निर्माण कार्य
- लूनकरण झील का निर्माण करवाया।
- लक्ष्मीनाथ जी का मन्दिर बनवाया।
लूनकरण कसवा बसाया।
नोट :- लूनकरण कस्बे को राजस्थान का राजकोट कहा जाता है ।
यह राजस्थान में मूंगफली के लिए प्रसिद्ध स्थान है ।
सबसे बडी मूंगफली मंडी भी यही है ।
राव जैतसी
- राव जैतसी ने खानवां के युद्ध में राणा सांगा की सहायता हेतु अपने पुत्र " कल्याणमल " को भेजा ।
- 1534 ईस्वी में रतिघाटी के युद्ध में मुगल बादशाह हुमायूं के भाई कामरान को हराया ।
- 1541 - 42 में पहेबा साहेबा के युद्ध में राव मालदेव के सेनापति "कुपा" ने राव जैतसी की हत्या कर दी।
- राव मालदेव ने कूप़ा को बीकानेर का प्रशासक नियुक्त किया ।
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राव कल्याणमल
- राव जैतसी के पुत्र
- दिल्ली शासक इल्तुतमिस की सहायता से पुनः राजा बने।
- ठाकुरियासर गांव में राज्याभिषेक
- 1570 ईस्वी में नागौर दरबार में भाग लिया ।
- नागौर दरबार में अपने पुत्र रायसिंह और पृथ्वीराज राठौड़ के साथ भाग लिया ।
- मुगल अधीनता स्वीकार करने वाले प्रथम राठौड़ शासक।
- इन्होंने मुगल राजपुत वैवाहिक संबंध स्थापित किए ( अपने पुत्र रायसिंह की पुत्री का विवाह अकबर के साथ करवाया ।
पृथ्वीराज राठौड़
- राव कल्याणमल के पुत्र
- अकबर के दरबारी विद्वान
उपनाम :-
- कलम का धनी
- डिंगल का हैरोस ( एल. पी. टेसिटोरी ने कहा )
- साहित्यिक भाषा में पिथल
- ये पीथल नाम से कविताएं लिखते थे ।
- पृथ्वीराज राठौड़ ने गागरोन के दुर्ग में रहते हुए डिंगल भाषा में "वेली कृष्ण रुक्मणि री वचनिका
- ग्रंथ लिखा ।
- इस ग्रंथ को 5 वा वेद व 19 वा पुराण कहते हैं ।
- अकबर ने इन्हें गागरोन की जागीर दी ।
अन्य रचनाएं:-
दशम भागवत रा दुहा
गंगालहरी/ राउतलहरी
- इनकी मृत्यु आगरा में हुई
Lp टेसिटोरी
- उदेनिगाव, इटली के रहने वाले
- महाराजा गंगासिंह ने संरक्षण दिया ।
- इनकी छतरी बीकानेर में स्तिथ है ।
- इनकी कर्मस्थली बीकानेर है ।
- पृथ्वीराज राठौड़ के ग्रंथ वेली कृष्ण रुक्मणि री वचनिका को प्रकाश में लाने का श्रेय इनको ही दिया जाता है ।
रायसिंह
- रायसिंह मुगल बादशाह अकबर और जहांगीर के समकालीन थे ।
- जहांगीर का प्रथम विश्वासपात्र
- अकबर का दूसरा विश्वासपात्र
- अकबर ने 1576 में इन्हें 4000 का मनसब और 51 परगने दिए ।
- जहांगीर ने इनकी मनसबदारी में 1000 मनसब बड़ा कर 5000 कर दिया ।
उपाधियां
- अकबर ने इन्हें " राय " की उपाधि दी ।
- जायसोम ने अपने ग्रंथ कर्मचंद्रवंशोकीर्तनम काव्यम में इन्हें " राजेन्द्र" की उपाधि दी ।
- मुंशी देवीप्रसाद ने इन्हे " राजपुताने का कर्ण " कहा।
- महाराजाधीराज
- 1572 ईस्वी में अकबर ने इन्हे जोधपुर का प्रशासक नियुक्त किया , 1574 तक जोधपुर के प्रशासक के तौर पर कार्य किया।
- 1573 ईस्वी में कठोली के युद्ध ( डीडवाना - परवतसर) के युद्ध में रायसिंह ने गुजरात इब्राहिम मिर्जा पर आक्रमण किया , इस युद्ध में रायसिंह की जीत हुई और इब्राहिम मिर्जा पंजाब भाग गया ।
- सौराष्ट्र जाते समय सिरोही शासक " सुरतान" तथा जालौर के शासक "ताज खां " की अकबर से संधि करवाई।
- 1574 ईस्वी में मारवाड़ के शासक राव चंद्रसेन की तलाश में इन्होंने सोजत पर आक्रमण किया और कल्ला राठौर को हराया ।
निर्माण कार्य
- जूनागढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया
- जयमल व फत्ता सिसोदिया की मूर्तियां लगवाई।
- ये मूर्तियां जूनागढ़ दुर्ग के सुरजपोल के बाहर, पाषाण गजारूढ़ मूर्तियां हैं ।
- मंत्री कर्मचंद की देखरेख में
दुर्ग के उपनाम
जमीन का जेवर
रातीघाटी दुर्ग
चिंतामणि दुर्ग
- इनके शासनकाल में जेड़ता मुनि ने जूनागढ़ दुर्ग में रायसिंह प्रसस्ति लिखी।
- रायसिंहनगर कसवा बसाया
- इन्हीं के शासनकाल में बीकानेर चित्रशैली की शुरूआत की गई।
रायसिंह की रचनाएं
रायसिंह महोत्सव
वैधक वंशावली
ज्योतिष रत्नमाला
बाल बोधिनी
- 1612 ईस्वी में अहमद नगर अभियान के दौरान बुरहानपुर (mp) में मृत्यु हो गई ।
दलपत सिंह
इनकी 6 रानियां सती हुई थी , इनकी रानियों की छतरी भटनेर दुर्ग घग्गर नदी के किनारे बनी हुई हैं।
सूरसिंह
इन्होंने 18 वर्ष तक शासन किया ।
महाराजा कर्णसिंह
- इन्हे मुगल बादशाह औरंगजेब ने कटक अभियान के दौरान औरंगजेब और राजपूत शासकों को बाहर निकाला था , राजपूत शासकों के द्वारा इन्हे " जय जांगलधर बादशाह" कहा गया ।
- मुगल बादशाह शाहजहां और औरंगजेब के समकालीन।
- 1644 ईस्वी में नागौर के प्रशासक अमरसिंह राठौड़ के साथ मतीरो की राड़ युद्ध लडा , इस युद्ध का निर्णय अनिर्णायक रहा।
- 1669 ईस्वी में कर्णपुरा गांव में इनकी मृत्यु हो गई ।
दरबारी विद्वान और इनकी रचनाएं
दरबारी विद्वान | रचनाएं |
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गंगाधर मैथिली | "कर्णभूषण व काव्यडाकिनी " |
होसिंग भट्ट | कर्णवत्स |
- कर्णसिंह ने "साहित्य कल्पद्रुम " की रचना की ।
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