राजस्थान का इतिहास :- गुहिल वंश के शासक और उनकी जीवन के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी
प्रिय विद्यार्थियों, पिछले ब्लॉग्स में हमने आपको मेवाड़ के गुहिल वंश की उत्त्पति और वंशावली के साथ साथ प्रमुख साकों के बारे जानकारी दी , अब हम पिछले ब्लॉग्स की सीरीज को जारी रखते हुए मेवाड़ के गौरवशाली इतिहास की जानकारी देंगे जो केवल और केवल आपकी परीक्षा की दृष्टि से अतिमहत्वपूर्ण हैं।
मेवाड़ का गुहिल राजवंश
- राजस्थान के सबसे प्रतापी राज्यों में मेवाड़ का नाम सबसे पहले आता हैं , मेवाड में गुहिल राजवंश का शासन था ।
- मेवाड़ में गुहिल राजवंश के संस्थापक राजा गुहिल या गुहादित्य थे , इन्होंने 566 ईस्वी में मेवाड़ में गुहिल वंश की नींव रखी ।
- मेवाड़ में गुहिल वंश के सबसे प्रथम प्रतापी शासक बप्पा रावल थे ।
बप्पा रावल
- वास्तविक नाम - कालभोज
- बचपन में कालभोज हरित ऋषि की गाय चराते थे ।
- बप्पा रावल ने सर्वप्रथम नागदा को अपनी राजधानी बनाया ।
- इन्होंने गजनी के शासक सलीम को हराया ।
- 734 ईस्वी में चितौड़गढ़ के मान मौर्य को हराया ।
बप्पा रावल को उपाधियां
- चक्क्वे
- राजगुरु
- हिंदुआ सूरज
बप्पा रावल के निर्माण कार्य
- नागदा में एकलिंगनाथ जी का मंदिर , कैलाशपुरी ( लकुलिश संप्रदाय) का निर्माण करवाया ।
- सहस्त्रबाहु का मंदिर ( वर्तमान में इसे सास बहू के मंदिर के नाम से जाना जाता है) ।
इतिहासकार चिंतामणि विनायकन वैध ( c.v. वैध) ने बप्पा रावल की तुलना चार्ल्स मार्टिल से की है।
राजा अल्लट
- इनको आलू रावल के नाम से जाना जाता था।
- इन्होंने आहड़ को अपनी उपराजधानी बनाया।
- मेवाड़ में नौकरशाही की शुरूआत करने वाले प्रथम शासक।
- प्रथम अंतरराष्ट्रीय वैवाहिक संबंध स्थापित करने वाले राजस्थान के प्रथम शासक।
- इन्होंने हूण राजकुमारी हरिया कुमारी से विवाह किया
- आहड़ में वराह मंदिर का निर्माण करवाया ।
शक्ति कुमार
- इनके समय में मालवा के मूंज परमार का आक्रमण हुआ , जिसने आहड़ को पूर्ण रूप से नष्ट कर दिया था ।
रणसिंह / कर्णसिंह
- इनके समय में रावल और राणा शाखा का विभाजन हुआ ।
- रावल शासक बने और राणा सामंत।
क्षेमसिंह
- प्रथम शासक जिन्होंने रावल को उपाधि धारण की ।
सामंत सिंह
- 1177 - 78 में जालौर के सोनगरा चौहान के संस्थापक कीर्तिपाल ने आक्रमण किया और मेवाड़ पर अधिकार कर लिया ।
- सामंत सिंह ने मेवाड़ छोड़कर ' बागड़ ' में गुहिल वंश की स्थापना की ।
कुमार सिंह
- सामंत सिंह का भाई
- कीर्तिपाल को हराकर पुनः मेवाड़ पर अधिकार किया
रावल जैत्रसिंह (1213 - 1253 )
- डॉक्टर दशरथ शर्मा ने रावल जैत्रसिंह के शासनकाल को मध्यकालीन मेवाड़ का स्वर्णकाल कहा है ।
- रावल जैत्रसिंह ने जालौर के उदयसिंह सोनगरा को हराया ।
- जालौर के शासक उदयसिंह ने संधि के रूप में अपनी पोत्री ( चाचिंग देव की पुत्री) रूपा दे का विवाह जैत्र सिंह के पुत्र तेजसिंह के साथ किया ।
1227 ईस्वी में भूताला के युद्ध
- इस युद्ध इल्तुतमिश को हराया , इल्तुतमिश की भागती हुई सेना ने नागदा को लूट लिया ।
- इसके बाद जैत्रसिंह ने चितौड़गढ़ को सर्वप्रथम मेवाड़ की राजधानी बनाया ।
- इस युद्ध की जानकारी जयसिंह सूरी की पुस्तक हम्मीर मर्दन में मिलती है ।
रावल तेजसिंह ( 1253 - 1273 )
उपाधियां :
- महाराजाधीराज
- परमेश्वर
- परम भट्टारक
- इन्हीं के शासन काल में प्रथम चित्रित ग्रंथ श्यावक प्रतिक्रमण सूत्र चूरणी का चित्रण किया गया ।
- इनकी रानी जैतल दे ने श्याम पार्श्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया ।
रावल समरसिंह ( 1273 - 1302 )
- 1299 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी के गुजरात अभियान के दौरान कर वसूला।
- रणथंभौर के शासक हम्मीर देव चौहान ने अपनी दिग्विजय नीति के तहत समरसिंह से कर वसूला ।
रावल रतनसिंह ( 1302 - 1303 )
रानी - पद्मिनी
सिंहलदीप की राजकुमारी
पिता - गंधर्वसेन
माता - चंपावती
- हीरामन तोता ने रानी पद्मिनी की सुंदरता का वर्णन रावल रतनसिंह के सामने किया ।
- रावल रतनसिंह के साथ चितौड़गढ़ दुर्ग के प्रथम साके के दौरान केसरिया करने वाले वीर सैनिक गौरा और बादल रानी पद्मिनी के साथ चित्तौड़गढ़ आए ।
अलाउद्दीन ख़िलजी का आक्रमण व चित्तौड़गढ़ दुर्ग का प्रथम साका ( 1303 ईस्वी )
- साका का अर्थ :- महिलाए जौहर करती हैं और पुरुष केसरिया करतें हैं ।
खिलजी के आक्रमण के कारण :
- अलाउद्दीन ख़िलजी की साम्राज्यवादी महत्त्वाकांक्षा
- चित्तौड़गढ़ दुर्ग का सामरिक, भौगोलिक और आर्थिक महत्व
- 1299 ईस्वी में समरसिंह ने कर वसूला।
- रानी पद्मिनी की सुंदरता ।
मेवाड़ के प्रमुख तीनों साके का विस्तृत वर्णन हमने पिछले ब्लॉग्स में किया हैं , नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।
मेवाड़ का इतिहास :-मेवाड़ के गूहिल वंश की स्थापना , गुहिल सिसोदिया वंश की महत्त्वपूर्ण जानकारी
- चित्तौड़गढ़ दुर्ग को 26 अगस्त 1303 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी द्वारा जीत लिया गया ।
- अलाउद्दीन खिलजी ने चितौड़गढ़ दुर्ग का नाम बदलकर अपने पुत्र खिज्र खां के नाम पर खिज्राबाद कर दिया ।
- खिज्र खां को चितौड़गढ़ दुर्ग का किलेदार नियुक्त किया ।
- 1311 ईस्वी में खिज्र खां चित्तौड़गढ़ दुर्ग की जिम्मेदारी मालदेव सोनगरा ( मुछाला सोनगरा) को देकर दिल्ली वापिस लौट गया ।
- रतन सिंह जी मेवाड़ के अंतिम रावल शासक थे ।
- रतनसिंह के भाई कुंभकरण ने नेपाल में राणा वंश की नींव रखी ।
- चित्तौड़गढ़ दुर्ग के प्रथम साके का वर्णन अमीर खुसरो के ग्रंथ खजाइन उल फतूह में मिलती हैं।
- मलिक मोहम्मद जायसी ने 1540 ईस्वी में रानी पद्मावत ग्रंथ लिखा ।
- हमरत्न सूरी ( महाराणा प्रताप का दरबारी कवि ) ने गौरा बादल री चौपाइयां की रचना की ।
महाराणा हम्मीर ( 1326 - 1364 )
- महाराणा हम्मीर ने 1326 ईस्वी मैं चितौड़गढ़ दुर्ग (बनबीर सोनगरा - जैसा)पर आक्रमण करके पुनः चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर अधिकार कर लिया ।
- राणा हम्मीर ने सिसोदिया वंश की नींव रखी ।
- राणा हम्मीर सिसोदा गांव के सामंत थे , इसलिए इन्हे सिसोदिया वंश के संस्थापक के माना जाता हैं।
- राणा हम्मीर मेवाड़ के प्रथम राणा बने ।
1336 ईस्वी सिंगोली का युद्ध
- हम्मीर और दिल्ली शासक मोहम्मद बिन तुगलक के मध्य हुआ ।
- राणा हम्मीर की इस युद्ध में विजय हुई।
- इस युद्ध की जीत की याद अन्नपूर्णा माता का मंदिर बनवाया, इसे वर्तमान में बरबड़ी माता का मंदिर कहते हैं ।
गुहिलों की इष्ट देवी - बरबड़ी माता
गुहिलों की कुल देवी - बाणमाता
- राणा कुम्भा ने हम्मीर को अपनी रचना रसिकप्रिया में वीर राजा और कुंभलगढ़ प्रशस्ति में विषम घाटी पंचानन की उपाधियां दी हैं।
- राणा हम्मीर को मेवाड़ के उद्धारक के रूप में जाना जाता हैं।
- कर्नल जेम्स टॉड ने राणा हम्मीर को अपने समय के महान हिन्दू शासक कहा है ।
राणा क्षेत्रसिंह / खेतसिंह ( 1364 - 1382 ईस्वी)
- मालवा के शासक दिलावर खां ( अमीशाह) को हराया।
- यहीं से मालवा और मेवाड़ संघर्ष की शुरूआत हुई ।
- राणा क्षेत्रसिंह की दासी खातीन के दो पुत्र थे - चाचा और मेरा ।
राणा लाखा/ लक्षसिंह (1382- 1421 )
- इन्हीं के शासनकाल में जावर ( उदयपुर) में चांदी का खनन प्रारंभ हुआ ।
- इन्हीं के शासनकाल में बंजारा बिच्छूमार चिड़ियामार ने अपने बैलों की स्मृति में पिछौला झील का निर्माण करवाया।
- पिछौला झील के किनारे राणा लाखा ने गलकी नामक नटनी का चबूतरा बनवाया।
- नकली बूंदी के लिए कुम्भा हाड़ा और राणा लाखा के मध्य युद्ध हुआ , जिसमें कुम्भा हाड़ा मारा गया ।
राणा लाखा और हंसाबाई का विवाह
- मारवाड़ के शासक राव चूड़ा की पुत्री हंसाबाई का विवाह राणा लाखा के साथ एक सशर्त हुआ " राणा लाखा और हंसाबाई का पुत्र मेवाड़ का अगला शासक बनेगा।
- राणा लाखा के बड़े पुत्र चूड़ा सिसोदिया ने वचन दिया इसलिए चूड़ा को मेवाड़ का भीष्म पितामह कहते हैं।
राणा लाखा के दरबारी विद्वान :-
- झोंटिंग भट्ट
- धनेश्वर भट्ट
राणा मोकल ( 1421 - 1433 )
- पिता - राणा लाखा
- माता - हंसा बाई
- संरक्षक - चूड़ा सिसोदिया व राव रणमल ( हंसा बाई का भाई एवम राव चूड़ा का पुत्र)
- कालांतर में चूड़ा सिसोदिया हंसाबाई के दुर्व्यवहार के कारण मालवा चले गए ।
- मालवा के शासक होसंगशाह के पास शरण ली ।
- राव रणमल ने मेवाड़ जी सैन्य सहायता से 1427 ईस्वी में मारवाड़ पर अधिकार कर लिया और मारवाड़ के राजा बने।
1428 ईस्वी रामपुरा का युद्ध
- राणा मोकल और नागौर के फिरोज़ खां के मध्य हुआ
- इस युद्ध में राणा मोकल की विजय हुई ।
राणा मोकल के निर्माण कार्य
- एकलिंग नाथ मंदिर का परकोटा बनवाया
- चित्तौड़गढ़ दुर्ग के अंदर द्वारिकाधीश मंदिर का निर्माण करवाया ।
- उदयपुर में इनकी रानी गौरंबिका ने गौरबिका बावड़ी बनवाई ।
- उदयपुर में भाई बाघसिंह की याद में बाघेला तालाब बनवाया।
- सम्धेश्वर मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया इसलिए इसे मोकल मंदिर भी कहा जाता हैं ।
सम्धेश्वर मंदिर के अन्य नाम
- मोकल मंदिर
- त्रिभुवन नारायण मंदिर
- अदबध जी का मंदिर
1433 ईस्वी में गुजरात शासक अहमद शाह के मेवाड़ आक्रमण के दौरान जिलवाड़ा, राजसमंद स्थान पर सैन्य ठहराव के दौरान महपा पंवार के खाने पर राणा क्षेत्रसिंह के दासी पूरा चाचा और मेरा ने मोकल की हत्या कर दी ।
तीनों मालवा भाग गए ।
इस ब्लॉक से संबंधित सभी वीडियो के लिए हमारे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करें एवं नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें
Telegram channel |
0 टिप्पणियाँ
कृपया सम्बन्धित पोस्ट को लेकर अपने सुझाव दें।