मेवाड़ राजवंश : राणा कुम्भा , राणा रायमल , पृथ्वीराज सिसोदिया का इतिहास
पिछले ब्लॉग्स में हमने मेवाड़ के वंश के संस्थापक राजा गुहिल से राणा मोकल तक के शासनकाल के बारे में एग्जाम से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी दी गई एवं इस ब्लॉक के माध्यम से हम मेवाड़ के अगले शासक राणा कुंभा एवं अन्य शासको के बारे में ऐतिहासिक जानकारी तथा एग्जाम की दृष्टि से महत्वपूर्ण बिंदुओं को कराया जाएगा ।
महाराणा कुम्भा ( 1433-1 468 ई ०)
पिता :- मोकल
माता :- सौभाग्यवती परमार
संरक्षक :- राव रणमल
- राणा मोकल की हत्या के दौरान राणा कुम्भा भी मोकल के साथ थे , उन्हें जैसे ही राणा मोकल की हत्या का पता चला राणा कुम्भा वापिस मेवाड़ लौट आए ।
- राव रणमल ने राणा मोकल के हत्यारे चाचा और मेरा की हत्या कर दी व राणा कुम्भा के संरक्षक बने ।
राणा कुम्भा के प्रमुख सैन्य अभियान
सारंगपुर का युद्ध - 1437 ईस्वी
- सारंगपुर का युद्ध राणा कुम्भा और मालवा के शासक महमूद खिलजी प्रथम के मध्य हुआ ।
- इस युद्ध में राणा कुम्भा की विजय हुई ।
- सारंगपुर के युद्ध के विजय की स्मृति में महाराणा कुम्भा ने विजयस्थम्भ का निर्माण करवाया ।
राव रणमल की हत्या
- सिसोदिया सरदार राव रणमल के हस्तक्षेप के कारण परेशान थे ।
- राव रणमल ने राघवदेव सिसोदिया ( चूड़ा सिसोदिया के भाई ) की हत्या कर दी ।
- मेवाड़ की दासी भारमली से राव रणमल का प्रेम प्रसंग था ।
- चूड़ा सिसोदिया और हंसाबाई के कहने पर भारमली की साहयता से राव रणमल की चित्तौड़गढ़ दुर्ग के अंदर ही हत्या कर दी गई ।
- 1438 ईस्वी में राव रणमल की हत्या हुई ।
- राव रणमल की हत्या के बाद राव जोधा ( रणमल का पुत्र ) ने मंडोर छोड़कर बीकानेर के कुहनी नामक स्थान पर शरण ली ।
- चूड़ा सिसोदिया ने मंडोर पर आक्रमण करके मंडोर पर अधिकार कर लिया ।
- राव जोधा ने 15 वर्ष संघर्ष करके 1453 ईस्वी में मंडोर पर अधिकार किया ।
आवल - बावल की संधि - 1453 ईस्वी
- मेवाड़ महाराणा कुम्भा और मारवाड़ के शासक राव जोधा के मध्य सीमा निर्धारण को लेकर आवल - बावल की संधि हुई ।
- राव जोधा ने पुत्री श्रृंगार कंवर का विवाह राणा कुम्भा के पुत्र रायमल के साथ किया ।
- मेवाड़ - मारवाड़ का सीमा निर्धारण सोजत,पाली से किया गया ।
नागौर का उत्तराधिकार संघर्ष
- नागौर शासक फिरोज़ खां की मौत के बाद फिरोज़ खां के भाई मुजहिद खा ( नसरुद्दीन खां) और फिरोज खान के बेटे शम्स खां के बीच उत्तराधिकार संघर्ष किया गया ।
- शम्स खां ने राजा बनने के लिए महाराणा कुम्भा से मदद मांगी।
- कुम्भा ने नसरुद्दीन खां ( मुजाहिद खां) को हराकर शम्स खां को राजा बनाया ।
महाराणा कुम्भा और शम्स खां के मध्य एक संधि हुई जिसमे दो शर्त रखी गई ।
- शम्स खां महाराणा कुम्भा को कर प्रदान करेंगे।
- नागौर दुर्ग का पुननिर्माण नहीं करवाएंगे।
- कुछ समय पश्चात शम्स खां ने संधि की शर्तों को मानने से इन्कार कर दिया , तत्पश्चात राणा कुम्भा ने नागौर पर आक्रमण करके नागौर पर अधिकार कर लिया ।
- शम्स खां गुजरात के शासक कुतुबुद्दीन शाह के पास चले गए ।
महाराणा कुम्भा और गुजरात विजय
- शम्स खां और गुजरात शासक कुतुबुद्दीन शाह ने मिलकर संयुक्त आक्रमण किया ।
- राणा कुम्भा ने शम्स खां की हत्या कर दी और इस युद्ध में राणा कुम्भा की विजय हुई ।
- कुतुबुद्दीन शाह वापिस गुजरात चला गया ।
चंपानेर की संधि 1456 ईस्वी
- मालवा के शासक महमूद खिलजी प्रथम और गुजरात शासक कुतुबुद्दीन शाह ने मेवाड़ विजय के लिए 1456 ईस्वी में संधि की गई ।
बदनौर का युद्ध 1457 ईस्वी
- गुजरात के शासक कुतुबद्दीन शाह और मालवा के शासक महमूद खिलजी प्रथम ने मेवाड़ के महाराणा कुम्भा पर संयुक्त आक्रमण कर दिया ।
- इस युद्ध में महाराणा कुभा की विजय हुई ।
- इस विजय के उपलक्ष में राणा कुम्भा ने बदनौर नामक स्थान पर कुशाला माता का मंदिर एवम बिजनौर दुर्ग का निर्माण करवाया ।
मेवाड़ और सिरोही ( आबू) संघर्ष
- राणा कुम्भा ने अपने सेनापति नरसिंह डोडिया के नेतृत्व में अपनी सेना सिरोही भेजी ।
- नरसिंह डोडिया के नेतृत्व में सिरोही शासक सहसमल देवड़ा को हराया ।
महाराणा कुम्भा की सांस्कृतिक उपलब्धियां
महाराणा कुम्भा को स्थापत्य कला का जनक माना जाता है।
- कविराज शायमलदास द्वारा रचित ग्रंथ वीर विनोद में कहा है की मेवाड़ के 84 दुर्गों में से 32 दुर्गों का निर्माण महाराणा कुम्भा ने करवाया है ।
महाराणा कुम्भा द्वारा करवाए गए दुर्ग निर्माण
- कुंभलगढ़ दुर्ग ( राजसमंद)
- भोमट दुर्ग ( उदयपुर )
- मचान दुर्ग ( सिरोही)
- बैराठ दुर्ग ( भीलवाडा)
दुर्ग पुनर्निर्माण
- अचलगढ दुर्ग ( सिरोही )
- बसंती/ बसंतगढ़ दुर्ग ( सिरोही )
- चित्तौड़गढ़ दुर्ग
महाराणा कुम्भा द्वारा मन्दिर निर्माण
- राणा कुम्भा ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग , कुंभलगढ़ दुर्ग और अचलगढ दुर्ग में कुम्भ स्वामी / कुम्भ श्याम मंदिर का निर्माण करवाया ।
- एकलिंगनाथ मंदिर ( चित्तौड़गढ़ )
- विष्णु मंदिर ( इसे मीरा मंदिर भी कहते हैं )
- कुशाला माता का मंदिर ( बदनौर, भीलवाडा)
- श्रृंगार चंवर/ शांतिनाथ जैन मंदिर ( इस मंदिर के शिल्पी वेलाक भंडारी थे )
- रणकपुर जैन मंदिर ( पाली ) के लिए महाराणा कुम्भा ने जगह दी थी , इनके मंत्री धरनकशाह ने शिल्पी देपाक से इन मंदिरों का निर्माण करवाया ।
महाराणा कुम्भा के दरबारी विद्वान और उनकी रचनाएं
- कान्हा व्यास - एकलिंग महामत्य
- मेहा जी - तीर्थ माल
- मंडन ( कुंभलगढ़ दुर्ग के वास्तुकार )-
- नाथा ( मंडन के भाई ) - वास्तुमंजरी
- गोविंद ( मंडन का पुत्र) - द्वार दीपिका, उद्धार धोरिणी, कलानिधि, सार समुच्चय।
अन्य विद्वान
- तिला भट्ट
- सोमेश्वर
- हीरानंद जैन मुनि ( कुम्भा के गुरु )
- सारंगधर ( कुम्भा के संगीत गुरू)
- रमा बाई ( महाराणा कुम्भा की पुत्री )
- इनको बाघीस्वरी की उपाधि दी गई।
महाराणा कुम्भा की रचनाएं
- संगीतराज - इसके पांच भाग हैं
पाठ्य रत्न कोष
गीत रत्न कोष
नृत्य रत्न कोष
वाद्य रत्न कोष
रस रत्न कोष
- कामराज रतिसार- इसके 7 भाग हैं ।
- संगीत मीमांसा
- संगीत सुधा
- सुधा प्रबंध / सूंड प्रबंध
- रसिक प्रिया टीका (जयदेव की गीत गोविंद का संक्षिप्त रूप)
महाराणा कुम्भा की उपाधियां
1.हिन्दू सूरतान 2. अभिनव भारताचार्ये 3. नव्य भरत 4. दान गुरू 5. हाल गुरु 6. चाप गुरु 7. राणा रासो 8. परम भागवत
- राणा कुम्भा की हत्या इनके पुत्र उदा ने की , उदा को इसलिए मेवाड़ का पितृहांता कहा जाता है
- राणा कुम्भा अपने अंतिम समय में उन्माद नामक रोग से ग्रस्त थे।
राणा रायमल ( 1473-1509 ई ०)
- दाडीमपुर के युद्ध में उदा को हराया और राजा बने
- राजा रायमल ने अपनी पुत्री " आनंदबाई " का विवाह सिरोही शासक जगमाल देवडा के साथ किया।
रायमल के निर्माण कार्य
- नागदा में एकलिंगनाथ महादेव मंदिर को वर्तमान स्वरूप दिया।
- अदबद जी का मंदिर बनवाया ।
- इनकी बहिन रमाबाई के लिए जावर में रमा स्वामी मंदिर बनवाया।
- इनकी रानी शृंगार कंवर ने घोसुंडी बवडी का निर्माण करवाया।
राणा रायमल के तीन पुत्र थे ÷ पृथ्वीराज सिसोदिया
जयमल सिसोदिया
राणा सांगा / संग्राम सिंह
पृथ्वीराज सिसोदिया
- उड़ना राजकुमार के नाम से जाने जाते हैं
- इनकी मृत्यु जगमाल देवडा के जहर देने के कारण हुई।
- छतरी - कुम्भलगढ दुर्ग ( 12 खम्भों की)
- इनकी पत्नी ताराबाई आजीवन अजमेर दुर्ग में रही , इसलिए अजमेर दुर्ग को तारागढ दुर्ग कहते हैं।
जयमल सिसोदिया
- सोलंकीयों के खिलाफ लडते हुए मारे गये ।
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