राजस्थान के प्रमुख लोक देवता : पंच पीर || Major folk deities of Rajasthan : Panch Peer
राजस्थान की प्रतियोगी परीक्षाओं को लेकर हम हर दिन राजस्थान के इतिहास , भूगोल, कला और संस्कृति के प्रत्येक टॉपिक को अच्छे से कवर करते हुए ब्लॉग्स लेकर आ रहे हैं , आज के इस ब्लॉग्स के माध्यम से हम राजस्थान की कला और संस्कृति के थर्ड टॉपिक राजस्थान के लोक देवता को कवर करेंगे ।
राजस्थान के प्रमुख लोक देवता
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लोक देवता : - वे महापुरुष जिन्होंने समाज ( आम जन ) में रहते हुए अपने चमत्कारिक कार्यों से समाज को नई ऊर्जा व दिशा दी, उन्हें स्थानीय लोगों में लोक देवता के रूप में पूजा जाने लगा ।
देवता शब्द का अर्थ होता है - प्रकाश
पंचपीर राजस्थान के लोकदेवता में सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण और एक्जाम में सबसे अधिक प्रश्न इसी से आते हैं ।
पाबू, हड़बू, रामदेव, मांगलिया मेहा ।
पांचों पीर पधारो, गोगा जी जेहा।।
पंचपीर
ट्रिक :- गोपा मेरा है
गो - गोगा जी
पा - पाबू जी
मे - मेहा जी
रा - रामदेव जी
है - हड़बू जी
इन सभी पंचपीरों में सबसे प्राचीन गोगा जी हैं ।
प्रथम पूजनीय पाबू जी को माना जाता है।
इन्हें मारवाड़ के पंचपीर कहा जाता है ।
ये सभी राजपूत जाति से संबंधित हैं ।
गोगा जी
जन्म :- ददरेवा ( चूरू )
पिता का नाम :- जेवर सिंह
माता का नाम :- बाछन दे
गुरु का नाम :- गोरखनाथ जी
जाति :- चौहटन, राजपूत
पत्नी :- केलम दे ( कोलूमंड की राजकुमारी )
सवारी :- नीली घोड़ी
समकालीन :- गोरखनाथ जी एवम महमूद गजनवी
उपनाम :- गौरक्षक देवता
सांपों के देवता
जाहरपीर :- महमूद गजनवी ने दिया ।
गोगापीर
गोगा जी के बारे में कहा जाता है की गोगा जी अपने चचेरे भाइयों अर्जन और सर्जन से भूमि विवाद में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए और इनका सिर जहां गिरा उस स्थान को शीर्षमेडी एवम धड़ जिस स्थान पर गिरा उसे धुरमेडी कहा जाता है ।
शीर्षमेडी :- ददरेवा ( चूरू )
धुरमेडी :- गोगामेड़ी, नोहर ( हनुमानगढ़)
नृत्य :- सांकल
वाद्य यंत्र :- डेरू
ओल्डी :- खिलोरियों की ढाणी,सांचौर
भोग :- चूरमा , लापसी, खीर , गुलगुले
मुस्लिम पुजारी :- चायल
गोगा जी के मंदिर में 11 महीने मुस्लिम पुजारी और 1 महीने हिंदू पुजारी पूजा करते हैं ।
युद्ध :- महमूद गजनवी से गायों की रक्षा के लिए।
थान :- खेजड़ी वृक्ष के नीचे पत्थर पर सर्प की आकृति।
गोगामेड़ी ( ददरेवा, चूरू ) में दिल्ली के सुल्तान फिरोज़ शाह तुगलक ने गोगा जी का मकबरेनुमा मंदिर बनवाया, जिस पर अरबी भाषा में बिस्मिल्लाह शब्द अंकित है ।
इस मंदिर को वर्तमान स्वरूप बीकानेर महाराजा गंगासिंह ने दिया है ।
कायमखानी मुसलमान गोगा जी को अपना पूर्वज मानते है ।
किसान बरसात के बाद बुबाई के समय हल व हाली को 9 गांठों वाली गोगाराकड़ी बांधते हैं।
गोगा जी के जीवन पर मेह कवि ने गोगा जी का रसवाला ग्रंथ की रचना की है ।
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पाबू जी
जन्म :- कोलुमंड, फलौदी
पिता का नाम :- धाधल जी राठौड़
माता का नाम :- कमला दे
जाति :- राठौड़, राजपूत
सवारी :- केसर कालमी घोड़ी
अवतार :- लक्ष्मण जी
उपनाम :- ऊंटों के देवता
प्लेग रक्षक देवता
हाड़ फाड़ का देवता
आराध्य :- रायका/ रेवाड़ी जाति , भीलों
गीत :- पवाड़े ( थोरी जाति के लोग गायन करते हैं)
वाद्ययंत्र :- माठवाद्य
मन्दिर :- कोलुमंड, फलौदी
मूर्ति :- भालाधारी अश्वरोही योद्धा
पत्नी :- सुप्यार दे या फूलम दे
पाबू जी के अनुयायी २½ फेरे लेते है एवम थाली नृत्य करते हैं।
युद्ध :- 1276 ईस्वी देचू, जोधपुर
पाबू जी ने देवल चारणी की गायों की रक्षार्थ जायल के जिंदराव खींची से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए
सहयोगी :- चांदा, देमा, हरमल और इनके बड़े भाई बुढो जी , सलजी सोलंकी, सावंत जी ।
पाग :- इनकी पाग़ हमेशा बाईं ओर झुकी रहती है ।
मेला :- चैत्र अमावस्या
फड़ :- सबसे लोकप्रिय फड़ पाबू जी की है ।
इसका वाचन नायक भील जाति के भोपों द्वारा किया जाता है ।
फड़ वाचन के समय रावणहत्था वाद्ययंत्र का प्रयोग किया जाता है ।
ऊंट के स्वस्थ होने पर वाचन किया जाता है ।
प्रसिद्ध ग्रंथ :-
पाबू प्रकाश (आसियामोड जी लिखित )
पाबू जी की बात ( लक्ष्मीकुमारी चुंडावत)
चवरी ( मेघराज मुकुल)
पाबू जी रा छंद ( बिट्ठू मेहा जी )
पाबू जी रा दोहा ( रामनाथ)
पाबू जी रा सोरठा ( लक्षराज)
पाबू जी के गीत ( बाकीदास)
पाबू जी ने 7 थोरी जाति के भाइयों की शरण दी थी ।
मारवाड़ में ऊंट लाने का श्रेय पाबू जी को है ।
मेहर मुसलमान पाबू जी को पीर के रूप में पूजते हैं।
नोट :- पाबू जी के बड़े भाई बुढ़ो जी के पुत्र रुपनाथ ( झरड़ा जी ) ने जींदराव खिंची की हत्या की थी ।
इन्हे हिमाचल प्रदेश में बलकनाथ के रूप में पूजा जाता हैं ।
इनके मंदिर कोलूमंड, फलोदी और सिम्बूधड़ा, बीकानेर में हैं ।
रामदेव जी
जन्म :- उडूकासमेर, शिव तहसील, बाड़मेर
पिता का नाम :- अजमल जी
माता का नाम :- मैणा दे
पत्नी का नाम :- नैतल दे
गुरु का नाम :- बालीनाथ
जाति :- तंवर, राजपूत
सवारी :- लीला घोड़ा
अवतार :- भगवान कृष्ण के अवतार माने जाते हैं।
जागरण :- जम्भा
आंदोलन :- परावर्तन आंदोलन के प्रणेता
ध्वजा :- नेजा
पूजा :- पगलियों की ( पद चिन्हों)
उपनाम :- रूणेचा रा धनी
रामसापीर
पीरो का पीर
रचना :- 24 वाणियां
गीत :- बयाबले
पंथ :- कामडिया ( रामदेव जी के कामड़िया पंथ चलाया )
नृत्य :- तेरह ताली नृत्य ( कामड़ पंथ की महिलाएं रामदेव जी आराधना में तेरह ताली नृत्य करती हैं)
शिष्या :- डालीबाई ( रामदेव जी की धर्म बहन डालीबाई मेघवाल थी )
बहन :- शगुना, लाछा
चाकर :- हरजी भाटी
मंदिर :- रामदेवरा,रूणेचा ( जैसलमेर )
भक्त :- जातरु
वध :- भैरव राक्षस ( रामदेव जी ने जिस स्थान पर भैरव राक्षस का वध किया उस स्थान को भैरव बावड़ी कहते हैं)
मेला :- भाद्रपद शुल्क द्वितीय से भाद्रपद शुल्क एकादशी
मेघवाल भक्त :- रिखिया कहलाते हैं एवम मेघवाल भक्त आधा भोग रामदेव जी को और आधा भोग डालीबाई को चढ़ाते हैं ।
रामदेव जी को मक्का से आए पीरों ने पांच पीरो ने पीरों का पीर कहा है ।
रामदेव जी एक मात्र लोकदेवता जो कवि भी थे ।
इनको समाज सुधारक लोकदेवता के रूप में भी जाना जाता है ।
रामदेव जी मल्लीनाथ जी के समकालीन थे , मल्लीनाथ जी इन्हे पोकरण की जागीर दी ।
मेहा जी
जन्म :- बापणी, जोधपुर
पिता :- गोपालराज सांखला ( केलू जी )
जाति :- राजपूत
ननिहाल :- मांगलिया राजपूत ( मेहा जी का जन्म इनके ननिहाल में ही हुआ था )
सवारी :- किरड काबरा ( घोड़ा )
समकालीन :- मारवाड़ शासक राव चूड़ा राठौड
मंदिर :- बापणी, जोधपुर
मेहा जी के मंदिर के पुजारी की वंश वृद्धि नहीं होती है
मेला :- बापणी , भाद्रपद कृष्ण अष्टमी
युद्ध :- रानगदेव भाटी ( जैसेलमेर) से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे ।
हडबु जी
जन्म :- भुंडोल गांव, नागौर
पिता :- महाराज सांखला
जाति :- सांखला, राजपूत
गुरु :- बालीनाथ जी
सवारी :- सियार ( सिया)
उपनाम :- वचनसिद्ध पुरुष
शकुनशास्त्री
समकालीन :- राव जोधा ( हड़बू जी ने राव जोधा को मूंग और तलवार देकर राज्य प्राप्ति का आशीर्वाद दिया था )
मंदिर :- बैंगटी, फलोदी ।
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