राजस्थान की सभ्यताएं:- आहड़ और गिलुण्ड सभ्यता का विस्तृत ज्ञान
आहड़ सभ्यता
आहड़ सभ्यता उदयपुर जिले की आयड़ या बेड़च नदी के किनारे स्थित एक पुरास्थल है, जिसकी समय-सीमा लगभग 4000 वर्ष पूर्व मानी जाती है। डॉ. गोपीनाथ शर्मा के अनुसार, इसका समृद्ध काल 1900 ई. पू. से 1200 ई. पू. तक रहा है।
उपनाम:-
1. आद्याटपुर या आघट दुर्ग
2. ताम्रवती नगरी
3. बनास घाटी सभ्यता
4. धूलकोट
उत्खनन:-
1. सर्वप्रथम उत्खनन 1953 में अक्षयकीर्ति व्यास द्वारा किया गया।
2. दूसरी बार आर. सी. अग्रवाल ने 1953-56 के दौरान उत्खनन किया।
3. तीसरी बार एच. डी. सांकलिया एवं वी. एत. मिश्र ने उत्खनन किया। डॉ. एच. डी. सांकलिया ने इसे 'ताम्रकाल' की संज्ञा दी। यहाँ बस्तियों के आठ स्तर मिले, जो इसे एक ग्रामीण सभ्यता का प्रमाणित करते हैं।
आवास:
- मकान पत्थरों की नींव पर बनाए जाते थे, और दीवारें मिट्टी की ईंटों से बनाई जाती थीं।
- छतों पर बांस बिछाकर मिट्टी का लेप किया जाता था।
- मकानों का फर्श काली मिट्टी और नदी की बालू मिलाकर बनाया जाता था।
- गंदे पानी की निकासी के लिए नालियाँ भी पाई गई हैं।
- एक घर में 4 से 6 बड़े चूल्हे होते थे, जो संयुक्त परिवार की व्यवस्था का प्रमाण हैं।
मृदभांड:-
- लाल, यूरी और काली मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग होता था। इनमें घरेलू बर्तन, कटोरियाँ, प्याले, मटके, कुंडे और भंडार के कलश शामिल हैं।
- मिट्टी के बर्तनों का प्रचुर मात्रा में मिलना इस क्षेत्र की प्रमुख बर्तन-संस्कृति को दर्शाता है।
- गोरे या कोठे - अनाज रखने के मृदभांडो का स्थानीय नाम ।
- पशुपालन और कृषि मुख्य आर्थिक गतिविधियाँ थीं।
मुद्राएं एवं मुहरें
- तृतीय ईसा पूर्व से प्रथम ईसा पूर्व की अवधि की तांबे की 6 मुद्राएँ और 3 मुहरें प्राप्त हुई हैं।
- मुद्राओं पर एक ओर त्रिशूल और दूसरी ओर तीर एवं तरकस के साथ अपोलो देवता अंकित हैं।
उद्योग:
- पत्थरों की उपलब्धता से अनुमानित होता है कि यहाँ पत्थरों के शस्त्र बनाने का बड़ा केंद्र था।
- मध्यपाषाणकालीन उपकरण के तुल्य रामसैकास्म और स्फटिक उपकरण मिले हैं।
- ताँबा गलाने और उससे उपकरण बनाने का प्रमुख उद्योग था।
- ताँबे की कुल्हाडियाँ, अंगूठियाँ, और न्यूडियाँ भी प्राप्त हुई हैं, साथ ही 79 लोहे के उपकरण भी मिले हैं।
- रंगाई-छपाई के उन्नत तकनीक का भी अनुमान है।
आभूषण और ताबीज :-
- गोमेद, स्फटिक जैसे कीमती पत्थरों का प्रयोग आभूषण और ताबीज के रूप में किया जाता था।
- मृतकों को गहनों और आभूषणों के साथ दफनाना, मृत्यु के बाद भी जीवन की अवधारणा की पुष्टि करता है।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य :-
- खुदाई में पूजा-पात्र और टेराकोटा वृषम आकृतियाँ प्राप्त हुईं, जिन्हें "बनासियत बुल" कहा गया।
- आहड़ के लोग मिट्टी के बर्तन बनाने की उल्टी तपाई विधि से परिचित थे।
गिलुण्ड सभ्यता
ताम्रयुगीन समता: बनास संस्कृति और गिलूण्ड
राजसमंद जिले में बनास नदी के तट पर स्थित ताम्रयुगीन सभ्यता को "बनास संस्कृति" के नाम से जाना जाता है। इस क्षेत्र के ऐतिहासिक महत्व को समझने के लिए हमें गिलूण्ड और आहड़ के उत्खननों पर ध्यान देना होगा।
गिलूण्ड की सभ्यता
गिलूण्ड में ताम्रयुगीन सभ्यता के अवशेष मिले हैं, जिसका उत्खनन प्रमुख रूप से 1957-58 में बी. वीलाल द्वारा और फिर 1998 से 2003 के बीच डॉ. बी. एस. शिंदे और प्रोफेसर ग्रेगरी पोराल के निर्देशन में हुआ। इस सभ्यता का समय लगभग 1900 से 1700 ईसा पूर्व तक माना गया है। यहाँ की सांस्कृतिक समृद्धि का परिचायक विभिन्न प्रकार के वस्त्र, बर्तन और अन्य अवशेष हैं।
प्रमुख विशेषताएँ:
- मिट्टी के खिलौने और अन्य अवशेष: यहां पर मिट्टी के खिलौने, पत्थर की गोलियां, और हड्डी की चूड़ियों के अवशेष मिले हैं।
- बर्तन: गिलूण्ड से प्राप्त बर्तनों में स्लेटरी रंग की तरतरियां और कटोरे शामिल हैं।
- ईंटों का प्रयोग: गिलूण्ड में पकड़ी ईटों का प्रयोग प्रचुरता में होता था, जबकि आहड़ में इस प्रकार की ईटों का प्रयोग नहीं हुआ।
आहड़ सभ्यता
आहड़ सभ्यता का प्रसार भी इस समय के दौरान देखा गया। यहां के उत्खननों से कई महत्वपूर्ण वस्तुएं प्राप्त हुई हैं:
प्रमुख विशेषताएँ:
- मृग्दांड और पशु आकृतियां: मिट्टी की पशु आकृतियां और मृग्दांड के चित्र मिले हैं।
- बर्तन: पांच प्रकार के मिट्टी के बर्तन - सफेद, काले, भूरे, लाल और चित्रित मृत्तक बर्तन प्राप्त हुए हैं।
गिलूण्ड और आहड़ की सभ्यताएँ ताम्रयुगीन भारत की सांस्कृतिक और तकनीकी उन्नति की महत्वपूर्ण कड़ी हैं। इन सभ्यताओं के अवशेष यह दर्शाते हैं कि उस समय के लोग अपनी जीवनशैली और दैनिक उपयोग की वस्तुओं के निर्माण में अत्यंत सक्षम और विचारशील थे।
संलग्न तालिका: गिलूण्ड और आहड़ की सभ्यता के अवशेष
श्रेणी | गिलूण्ड | आहड़ |
---|---|---|
समय | 1900-1700 ईसा पूर्व | लगभग 1000 ईसा पूर्व |
सामग्री | स्लेटरी रंग की तरतरियां, कटोरे | मिट्टी के बर्तन (सफेद, काले, भूरे, लाल, चित्रित) |
विशेषताएँ | पकड़ी ईटों का प्रयोग, मिट्टी के खिलौने | मृग्दांड, पशु आकृतियां |
उत्खनन | 1957-58 (बी. वीलाल), 1998-2003 (डॉ. बी. एस. शिंदे और प्रोफेसर ग्रेगरी पोराल) | विविध अवशेष |
यह तालिका दोनों सभ्यताओं के बीच महत्वपूर्ण अंतर और समानताएँ स्पष्ट करती है, जिससे उनके विकास और सांस्कृतिक विशेषताओं की बेहतर समझ प्राप्त होती है।
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