मेवाड़ राजवंश : महाराणा उदयसिंह , राणा प्रताप, अमरसिंह प्रथम तक का इतिहास || Mewar Dynasty: History till Maharana Udai Singh, Rana Pratap, Amar Singh I
कवर करेंगे ।
मेवाड़ राजवंश : महाराणा उदयसिंह , राणा प्रताप और अमरसिंह प्रथम
महाराणा उदयसिंह ( 1536 - 1572)
- महाराणा उदयसिंह की रक्षा उनकी धाय मां पन्ना धाय ने अपने पुत्र के बलिदान से की ।
- बनवीर चित्तौरगढ़ दुर्ग में रह करके मेवाड़ का शासन चला रहा था ।
1540 ईस्वी मावली का युद्ध
- मावली का युद्ध राणा उदयसिंह और वनवीर के मध्य हुआ ।
- इस युद्ध महाराणा उदयसिंह की सहायता मारवाड़ के राव मालदेव ने की ।
- इस युद्ध में राणा उदयसिंह की जीत हुई ।
- राणा उदयसिंह ने राव मालदेव को बसंतराय नामक हाथी भेंट किया ।
1557 ईस्वी हरमाड़ा का युद्ध
- हरमाड़ा का युद्ध अजमेर के हाजी खान पठान और राणा उदयसिंह के मध्य हुआ ।
- इस युद्ध में हाजी खान पठान की सहायता राव मालदेव ने की ।
- परिणाम :- इस युद्ध में राणा उदयसिंह की हार हुई ।
- युद्ध का कारण :- रंगराय नामक महिला ( हाजी खां पठान की प्रेमिका )
राव मालदेव द्वारा हाजी खां पठान की मदद का कारण
- राव मालदेव खैरवा के सामंत जैतसिंह झाला का दामाद था , राव मालदेव की शादी जैतसिंह झाला की बड़ी पुत्री से हुई ।
- राव मालदेव उसकी छोटी पुत्री से विवाह करने के लिए जयसिंह पर दबाव बना रहा था ।
- जैतसिंह झाला ने अपनी छोटी पुत्री का विवाह राणा उदयसिंह के साथ कर दिया , इस कारण राव मालदेव और राणा उदयसिंह के मध्य अनबन हो गई ।
उदयपुर की स्थापना
- महाराणा उदयसिंह ने 1559 ईस्वी में उदयपुर शहर बसाया ।
1567 - 68 अकबर द्वारा मेवाड़ पर आक्रमण
- 1567 - 68 ईस्वी में अकबर ने मेवाड़ के चित्तौरगढ़ दुर्ग पर आक्रमण किया ।
- राणा उदयसिंह चित्तौड़गढ़ दुर्ग की जिम्मेदारी जयमल राठौड़ और फत्ता सिसोदिया को सौंपकर स्वयं गिरवा की पहाड़ियों में चले गए ।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग का तीसरा साका 1568 ईस्वी
- चित्तौड़गढ़ दुर्ग का तीसरा साके में जयमल ( मेड़ता के राजा ) व फत्ता सिसोदिया ( आमेट के सामंत) और कल्ला जी राठौड़ ( दो सिर और चार हाथों वाले देवता ) ने केसरिया किया ।
- फूलकंवर ( जयमल राठौड़ की बहन और फत्ता सिसोदिया की पत्नी ) के नेतृत्व में जौहर किया गया ।
- अकबर ने दुर्ग में 30 हजार लोगों को कत्लेआम करवाया ।
- चित्तौड़गढ़ में अकबर ने एलची नामक सिक्का चलाया ।
- अकबर ने आगरा के किले में जयमल और फत्ता की गजारूढ़ पाषाण मूर्तियां लगवाई जिसे कालांतर में औरंगजेब ने तुड़वा दिया था ।
- वर्तमान में जयमल और फत्ता की मूर्तियां बीकानेर के जूनागढ़ दुर्ग में लगी हुई हैं जिसे महाराजा रायसिंह ने लगवाया।
उदयसिंह की मृत्यु
- 28 फरबरी 1572 ईस्वी को होली के दिन महाराणा उदयसिंह की मृत्यु हुई ।
- उदयसिंह की छतरी गोगुंदा उदयपुर में बनी हुई है ।
- महाराणा उदयसिंह ने अपने बड़े पुत्र प्रताप को राजा न बनाकर अपनी दूसरी पत्नी धीर बाई भटियानी के पुत्र जगमाल को राजा बनाया ।
- मेवाड़ के सामंतों ने जगमाल को राजा स्वीकार करने से इन्कार कर दिया ।
महाराणा प्रताप ( 1572 - 1597 ईस्वी )
- पिता - राणा उदयसिंह
- माता - जयवंता बाई ( पाली के सामंत अखैराम सोनगरा की पुत्री)
- जन्म :- 9 मई 1540 ईस्वी कुंभलगढ़ दुर्ग के बादल महल की जूनी कचहरी में हुआ ।
- पत्नी - अजब दे पंवार
- बचपन का नाम - कीका
- राज्याभिषेक - गोगुंदा ( सलुंबर के सामंत कृष्णदास चुंडावत ने किया )
- विधिवत राज्याभिषेक - कुंभलगढ़ दुर्ग ( मारवाड़ के राव चंद्रसेन ने भाग लिया )
- घोड़ा - चेतक ( काठियावाड़ी नस्ल का )
- चेतक की छतरी - बलिचा गांव, राजसमंद
राणा प्रताप के राजा बनते ही अकबर ने प्रताप को मुगलों की अधीनता स्वीकार करने के लिए प्रताप के पास चार शिष्टमंडल भेजे ।
- प्रथम शिष्टमंडल - जलाल खां कोरची ,1572 ईस्वी
- दूसरा - मानसिंह कच्छवाहा, जून 1573
- तीसरा - भगवंतदास, सितंबर 1573
- चौथा. - टोडरमल , दिसंबर 1573
अकबर द्वारा कोई भी शिष्टमंडल द्वारा सफलता नहीं मिलने के बाद अकबर ने मानसिंह कच्छवाहा को सेनापति बनाकर प्रताप से युद्ध करने भेजा ।
हल्दीघाटी का युद्ध (18 जून 1576)
- हल्दीघाटी के युद्ध में कविराज श्यामल दास ने अपने ग्रंथ वीर विनोद में अकबर की सेना में 80 हजार सैनिक और प्रताप की सेना में 20 हजार सैनिकों की संख्या बताई है ।
- बदायुनी ( अकबर का दरबारी कवि जिसने हल्दीघाटी युद्ध में भाग लिया ) ने अपनी पुस्तक मुन्तखब - उल - तबारिख में हल्दीघाटी युद्ध का वर्णन किया ।
- इस पुस्तक के अनुसार अकबर की सेना में 5000 सैनिक तथा प्रताप की सेना में 3000 सैनिकों की संख्या बताई गई है ।
- अकबर की सेना का हल्दीघाटी युद्ध की योजना का निर्माण अकबर का किला अजमेर तथा प्रताप की सेना की युद्ध योजना का निर्माण कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ ।
सेनाओं का पड़ाव
- अकबर की सेना :- मोलेला गांव
- प्रताप की सेना :- लोसिंग
प्रताप की सेना के हरावल ( सेना का अग्र भाग ) में सम्मिलित योद्धा
- हाकिम खां सूरी ( मुस्लिम सेनापति )
- झाला मान / बीदा ( २nd नेतृत्व)
- कृष्णदास चुंडावत
- मनसिंह सोनगरा
- मेड़ता के रामसिंह राठौड़
- ग्वालियर के रामशाह तंवर
- शालीवाहन
- भवानी
- प्रताप
अकबर की सेना के हरावल ( सेना का अग्र भाग ) में सम्मिलित योद्धा
- आसफ खां
- सैय्यद हासिफ
- सैय्यद राजू
- जगन्नाथ कच्छवाहा
प्रताप व अकबर की सेना के दोलान ( सेना का मध्य ) भाग
- महाराणा प्रताप
- अकबर की तरफ से मानसिंह कच्छवाहा ने नेतृत्व किया
चंद्रावल ( सेना का अन्तिम भाग )
- प्रताप की ओर से राणा पूंजा भील ( इन्हे महाराणा प्रताप ने राणा की उपाधि दी थी ) ।
- अकबर की ओर से मिहत्तर खां (अकबर की भागती हुई सेना को पुनः संगठित किया ) व बदायुनी थे ।
युद्ध में भाग लेने वाले हाथी
- राणा प्रताप की सेना से लूना और रामप्रसाद हाथी शामिल थे ।
- अकबर की सेना से मरदाना ( मानसिंह का हाथी) , गजमुक्ता व रणमदार हाथी शामिल थे ।
- हल्दीघाटी के युद्ध में झाला मान वीरगति को प्राप्त हुए ।
- इस युद्ध में राणा प्रताप का घोड़ा चेतक घायल हो गया, बलीचा गांव , राजसमंद में चेतक की समाधि बनी हुई है ।
हल्दीघाटी युद्ध के अन्य नाम
- अबुल फजल ने इसे खमनौर का युद्ध कहा।
- बदायुनी ने इसे गोगुंदा का युद्ध कहा।
- कर्नल जेम्स टॉड ने इसे मेवाड़ का थर्मोपल्ली कहा ।
- आदर्शी लाल श्रीवास्तव ने इसे बादशाहबाग का युद्ध कहा ।
1576 ईस्वी अकबर का उदयपुर पर आक्रमण
- 1576 ईस्वी में अकबर ने उदयपुर पर आक्रमण करके , उदयपुर का नाम बदलकर मोहम्मदाबाद कर दिया ।
- जगन्नाथ कच्छवाहा को उदयपुर का प्रशासक नियुक्त किया ।
शाहबाज खां का कुंभलगढ़ अभियान
- मानसिंह , अकबर सभी के द्वारा विफल प्रयास करने के बाद अकबर ने अपने सेनापति शाहबाज खां को कुंभलगढ़ दुर्ग पर अधिकार करने भेजा ।
- शाहबाज खां ने कुल तीन आक्रमण किए
1577 - हार
1578 - जीत
1579 - हार
- 1578 ईस्वी में शाहबाज खां के कुंभलगढ़ अधिकार के बाद महाराणा प्रताप ने आवरगढ़ को अपनी अस्थाई राजधानी बनाया ।
- चुलिया ( चित्तोडगढ) नामक स्थान पर महाराणा प्रताप की मुलाकात भामाशाह और ताराचंद से हुई , इन्होंने राणा की आर्थिक सहायता की ।
- इसलिए भामाशाह को मेवाड़ का उद्धारक भी कहा जाता है ।
शेरपुर घटना 1580 ईस्वी
- अकबर द्वारा महाराणा प्रताप के खिलाफ मुगल सेनापति अब्दुल रहीम खान को भेजा ।
- राणा प्रताप के पुत्र अमरसिंह ने मुगल सेनापति अब्दुल रहीम खान के परिवार को बंदी बना लिया ।
- राणा प्रताप ने उन्हें सम्मान सहित वापसी लौटा दिया
महाराणा प्रताप और सुल्तान खान
- अकबर के इतने असफल प्रयासों के बाद मुगल बादशाह ने अपने चाचा सुल्तान खान को राणा प्रताप के खिलाफ भेजा ।
- सुल्तान खान ने प्रताप को मिलने वाली सहायता रोकने के लिए चार चौकियां बनाई
देवल
देसूरी
दिवेर
देवारी
दिवेर का युद्ध 1582 ईस्वी
- राणा प्रताप और सुल्तान खान के मध्य हुआ ।
- दिवेर के युद्ध में अमरसिंह जी ने अपना भाला सुल्तान खान के साथ उसके घोड़े के आर पार कर दिया ।
- इस युद्ध में राणा प्रताप की जीत हुई।
- कर्नल जेम्स टॉड ने इस युद्ध को मेवाड़ का मैराथन कहा।
- 1585 ईस्वी में अकबर ने जगन्नाथ कच्छवाहा को प्रताप के खिलाफ भेजा ।
- अकबर की तरफ से प्रताप के खिलाफ ये अंतिम सैन्य अभियान था ।
- महाराणा प्रताप ने मालपुरा , टोंक पर अधिकार किया तथा यहां पर नीलकंठ महादेव मन्दिर और झालरा तालाब का निर्माण करवाया ।
- राणा प्रताप ने अपनी मृत्यु से पूर्व मांडलगढ़ और चित्तौड़गढ़ दुर्ग को छोड़कर संपूर्ण मेवाड़ पर अधिकार कर लिया ।
- 1585 ईस्वी में राणा प्रताप ने चावंड को अपनी राजधानी बनाया ।
महाराणा प्रताप के दरबारी विद्वान
- चक्रपाणि मिश्र:-
विश्व वल्लभ
मुहूर्त माला
राज्याभिषेक पद्धति
- सदुलनाथ त्रिवेदी
प्रताप ने इन्हे मंडेर, उदयपुर की जागीर दी।
- रामा संदू
- माला संदु
- महाराणा प्रताप की मृत्यु 1597 ईस्वी में हुई ।
- राणा प्रताप की छतरी " बांडौली - 8 खम्भों" उदयपुर में बनी हुई है ।
अमरसिंह प्रथम ( 1597 - 1620 ईस्वी)
- पिता - महाराणा प्रताप
- माता - अजब दे पंवार
हरावल के लिए संघर्ष
- अमर सिंह के समय की सलूंबर सामंत जैत्रसिंह चुंडावत और बल्लू शक्तावत के मध्य हरावल के नेतृत्व को लेकर संघर्ष हुआ ।
- राणा अमरसिंह ने एक शर्त रखी जो भी उंटाना के किले में सर्वप्रथम प्रवेश करेगा वो हरावल का नेतृत्व करेगा।
- जैत्रसिंह ने अपनी गर्दन काटकर किले में फिकवा दी और बल्लू शक्तावत ने किले के दरवाजे के सामने खड़ा होकर हाथी से अपने शरीर पर टक्कर दिलवाई , किले के दरवाजे की सूले शक्तावत के शरीर के आर पार हो गई ।
- हरावल पर अधिकार चुंडावतों का रहा।
खुर्रम का वैश्षीपन
- मुगल बादशाह हर कीमत पर मेवाड़ को अपने अधीन करना चाहते थे , इसलिए मुगल बादशाह जहांगीर ने अपने बेटे खुर्रम को भेजा ।
- खुर्रम ने मेवाड़ में बच्चों के साथ , स्त्रियों के साथ बलात्कार और अन्य कई प्रकार से लोगों और सामंतों को परेशान किया ।
- इसे परेशान होके मेवाड़ सामंतों ने महाराणा अमरसिंह को मुगलों के साथ संधि करने के लिए बाध्य किया।
- महाराणा अमरसिंह नौ चौकी, राजसमंद चले गए ।
मुगल मेवाड़ संधि
- 5 फरवरी 1615 ईस्वी को मुगलों और मेवाड़ के मध्य संधि हुई ।
- जिसमें मुगल बादशाह जहांगीर की ओर से खुर्रम ने तथा अमरसिंह प्रथम की ओर से शुभकरण पंवार व हरिदास झाला ने भाग लिया ।
संधि की शर्त
- मेवाड़ का राजा कभी भी मुगल दरबार में नहीं
- आएगा ।
- मेवाड़ का राजकुमार ही मुगल दरबार का हिस्सा
- होगा ।
- मांडलगढ़ व चित्तौड़गढ़ मेवाड़ को वापिस दिया
- जाए ।
- मुगल मेवाड़ वैवाहिक संबंध नहीं बनेंगे।
- मेवाड़ का राजा किसी भी युद्ध का हिस्सा नहीं होगा ।
- मेवाड़ के राजकुमार को सबसे ज़्यादा मनसबदारी दी जायेगी।
अंग्रेज अधिकारी सर टामस रॉ ने अपनी पुस्तक में लिखा की "मुगलों ने मेवाड़ के साथ संधि बलपूर्वक न करके बुद्धिपूर्ण तरीके से की है ।
- महाराणा अमरसिंह प्रथम की छतरी महासतिया, आहड़ उदयपुर में बनी हुई है ।
नोट:- महाराणा अमरसिंह प्रथम के बाद से सभी मेवाड़ शासकों की छतरी महसतिया आहड़ में बनी हुई हैं।
दोस्तों आपकी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए हमारे ब्लॉग्स अगर आपको पसंद आ रहे हैं तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और अधिक से अधिक हमारे व्हाट्सएप चैनल तथा टेलीग्राम चैनल को जॉइन करें ।
हमसे जुड़ने के लिए हमें फेसबुक पेज पर मैसेज करें।
0 टिप्पणियाँ
कृपया सम्बन्धित पोस्ट को लेकर अपने सुझाव दें।