राजस्थान के प्रमुख दुर्ग - यूनेस्को की विश्व विरासत में शामिल राजस्थान के प्रमुख दुर्ग
राजस्थान वीरों की धरा है , कई वर्षों तक राजस्थान के शासकों ने विदेशी आक्रमणकारियों को घुसने तक नहीं दिया , इसका मुख्य कारण राजस्थान के दुर्ग जो सुरक्षा की दृष्टि से बहुत ही उत्कृष्ट तरीके से निर्मित हैं -
दुर्गों के प्रकार
कौटिल्य के अनुसार दुर्ग 4 प्रकार होते हैं
1.जल दुर्ग -इन्हें औद्रक दुर्ग भी कहा जाता है।
2. पर्वत दुर्ग -पार्वत /गिरी दुर्ग
3.धोरों पर - धान्वन दुर्ग
5. घने जंगल - वन दुर्ग
शुक्र नीति के अनुसार दुर्गों के 9 प्रकार होते हैं
1. औद्रक दुर्ग
2. पार्वत /गिरी दुर्ग
3.धान्वन दुर्ग
4.वन दुर्ग
5. एरन दुर्ग
6. पारिख दुर्ग
7. पारिध दुर्ग
8. सैन्य दुर्ग
9. सहाय दुर्ग
यूनेस्को की विश्व विरासत में शमिल होने वाले दुर्ग
ट्रिक -चीकू गाजर आम
ची-चित्तौड़गढ़
कु -कुंभलगढ़
गा- गागरोंन
ज -जैसेलमेर
र- रणथंभौर
आम -आमेर
चित्तौड़गढ़ दुर्ग
इस दुर्ग का निर्माण मौर्य शासक चित्रांग मौर्य/चित्रांगद मौर्य ने करवाया ।
यह दुर्ग "मेसा का पठार" - 616 मीटर ऊंचा पर बना हुआ है।
गंभीरी और बेड़च नदी के किनारे
उपनाम - राजस्थान का गौरव
दुर्गों का सिरमोर
मालवा का प्रवेश द्वार
चित्रकूट दुर्ग
इस दुर्ग के बारे में प्रसिद्ध कथन - गढ़ तो चित्तौड़गढ़, बाकी सब गढैया।
दुर्ग की विशेषता -
राजस्थान का सबसे बड़ा लिविंग फोर्ट
इसके अंदर 7 प्रवेश द्वार बने हुए हैं
- पाड़न पोल
- भैरव पोल
- हनुमान पोल
- गणेश पोल
- जोड़ला पोल
- लक्ष्मण पोल
- राम पोल
पाड़न पोल पर "बाघ सिंह की छतरी" बनी हुई है ।
कल्ला जी राठौड़ व जयमल की छतरी - भैरव पोल व हनुमान पोल के मध्य बनी हुई है।
इस दुर्ग का आकार "व्हेल मछली के समान" होता है ।
बप्पा रावल ने मान मौर्य को हराकर चित्तौड़गढ़ पर अधिकार कर लिया ।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग के प्रमुख साके
1303- राणा रत्न सिंह- अलाऊद्दीन खिलजी
1534-34- सामंत बाघ सिंह- बहादुर शाह
1567-68- जयमल और फत्ता - अकबर
विजय स्तम्भ
1437 ईस्वी में राणा कुम्भा ने सारंगपुर युद्ध में मालवा के महमूद ख़िलजी को हराकर ,इस युद्ध की जीत की याद में विजय स्तंभ का निर्माण करवाया।
निर्माण कार्य - 1437 ईस्वी में शुरू हुआ , 1448 ईस्वी में पूर्ण हुआ।
उपनाम - भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोश
विष्णुध्वजगढ़
विक्ट्री टॉवर
लोकजीवन का रंगमंच
इसकी ऊंचाई 120 फीट - 122 फीट के मध्य है।
यह 9 मंजिला बना हुआ है , इसकी तीसरी मंजिल पर 9 बार अल्लाह शब्द अंकित है।
विजय स्तम्भ के शिल्पकार जैता, नापा, पूंजा, पोमा के नाम इसकी 5वीं मंज़िल पर उत्कीर्ण हैं।
इसमें कुल 157 सीढ़ियां हैं।
कीर्ति स्तंभ
जैन व्यापारी जीजा शाह द्वारा निर्मित।
ऊंचाई - 75 फीट
मंजीत - 617
यह जैन तीर्थंकर आदिनाथ जी को समर्पित है।
शिल्पी - अत्री और महेश।
अन्य विशेषता -
दासी पुत्र बनबीर द्वारा तुलजा भवानी का मंदिर बनाया गया।
शतबीस मंदिर - यह एक जैन मंदिर है , जिसमें 27 देवरिया बनी हुई हैं।
समधेश्वर मंदिर - इसका निर्माण परमार राजा भोज ने करवाया ।
इसे त्रिभुवन नारायण मंदिर व मोकल मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
इसका पुनर्निर्माण राणा मोकल ने करवाया।
अन्य मंदिर - कुंभ श्याम मंदिर , मीरा मंदिर , शृंगार चवरी, बान माता मंदिर, कालिका माता मंदिर आदि ।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग में बने महल
नौलखा महल
गोरा बादल महल
लखोटा बारी
रानी पद्मिनी महल
पद्मिनी कुंड और रत्नेश्वर कुंड आदि प्रमुख है ।
कुंभलगढ़ दुर्ग
राजसमंद में स्थित
मौर्य शासक संप्रति द्वारा निर्मित।
महाराणा कुम्भा द्वारा अपनी पत्नी कुभल देवी के लिए पुनर्निर्माण करवाया गया।
इसके शिल्पी मंडन थे ।
उपनाम - हेमकूट दुर्ग
कुंभलनर
मेवाड़ की शरण स्थली
मच्छेंद्र/मत्स्येंद्र दुर्ग
मेवाड़ की संकट कालीन राजधानी।
इस दुर्ग की दीवार 36 किलोमीटर लंबी,7 मीटर चौड़ी है।
इस दुर्ग की तुलना कर्नल जेम्स टॉड ने यूनान के एस्ट्रन दुर्ग से की है।।
दुर्ग में अन्य निर्माण -
उड़ना राजकुमार पृथ्वीराज सिसोदिया की छतरी, इसके शिल्पी ध्वनपाना थे ।
झाली रानी का मालिया
कुंभ स्वामी मंदिर
मामादेव कुंड
विजय पोल , राम पोल, भैरव पोल, नींबू पोल, गणेश पोल ,ओरठ पोल ।
कटारगढ़ - इसे मेवाड़ की आंख कहा जाता है,इसके बादल महल में महाराणा प्रताप का जन्म हुआ। राणा कुम्भा की हत्या "उदा" ने यहीं की ।
अबुल फजल ने इस दुर्ग के बारे में कहा कि " यह इतनी बुलंदी पर बना हुआ कि इसे नीचे से ऊपर की ओर देखने पर पगड़ी गिर जाए।
गागरोंन दुर्ग
इस दुर्ग का निर्माण डोडा राजपूत ( परमार) ने करवाया।
उपनाम - डोडागढ़
धूलगढ़
गर्गरापुर
यह दुर्ग कालीसिंह व आहू नदी के संगम पर स्थित है।
राजस्थान का एक मात्र किला जो बिना किसी नींव के चट्टान पर निर्मित है।
इसमें मीठे शाह की दरगाह, संत पीपा की छतरी बनी हुई है।
खींची शासकों के अधीन रहा ।
यह एक जल दुर्ग है।
इसमें औरंगजेब द्वारा निर्मित बुलंद दरवाजा है
इस दुर्ग में परकोटे का निर्माण जालिम सिंह द्वारा करवाया गया ।
इसके पीछे स्थित पहाड़ी को गींध कराई कहते है।
साके
1423- अचलदास खींची
1444- पल्हनसी
जैसलमेर - सोनारगढ़ दुर्ग
इस दुर्ग का निर्माण राव जैसल भाटी द्वारा 1155 ईस्वी में करवाया गया।
यह दुर्ग गोरहडा़ पहाड़ी, त्रिकूट पहाड़ी पर बना हुआ है।
उपनाम - सोनारगढ़, स्वर्णगिरी दुर्ग, गोरहागढ़, रेगिस्तान का अंडमान।
यह दुर्ग बिना चूना पत्थरों को इंटरलॉक सिस्टम से जोड़कर बनाया हुआ है।
यह राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा लिविंग फोर्ट है।
इस दुर्ग के लिए अबुल फजल ने कहा है कि ऐसा दुर्ग जहां पहुचने के लिए पत्थर की टांगे होनी चाहिए।
प्रमुख द्वार - अक्षय पोल, सूरज पोल , भूत पोल , हवा पोल ।
दुर्ग में निर्माण -
जैसल कुआं - श्री कृष्णा के सुदर्शन चक्र से बना हुआ ।
कमरकोटा - इस दुर्ग का दोहरा परकोटा।
इस दुर्ग में 99 बुर्ज बने हुए हैं।
दुर्ग में बने महल
सर्वोत्तम विलास महल - इसका निर्माण महारावल अखैसिंह ने करवाया।
बादल विलास महल - 1884 ईस्वी में सिलवटों द्वारा करवाया गया ,इसे पंचमहल के नाम से भी जाना जाता है।
रंगमहल व मोतीमहल का निर्माण मूलराज द्वितीय ने करवाया।
जैसलमेर दुर्ग इतिहास में अपने 2½ साके के लिए प्रसिद्ध है
1311- मूलराज प्रथम
14 वी सदी- रावल दूदा
1550 अर्द्धसाका
दुर्ग में बने मंदिर
रत्नेश्वर महादेव मंदिर
सूर्य मंदिर
पार्श्वनाथ , कूंथूनाथ मंदिर , ऋषभदेव , संभवनाथ आदि जैन मंदिर ।
इस दुर्ग में जिनभद्रसूरी ग्रंथ भंडार (प्राचीन पांडुलिपियों का संग्रह) बना हुआ है।
रणथंभौर दुर्ग
सवाई माधोपुर में स्थित।
इस दुर्ग का निर्माण चौहान शासक रणथान देव द्वारा करवाया गया।
यह दुर्ग रण और थंभ नामक पहाड़ी पर बना हुआ है।
गिरी व वन दुर्ग की श्रेणी में आता है।
उपनाम - दुर्गोध राज, चित्तौड़गढ़ दुर्ग का छोटा भाई ।
अबुल फजल ने इस दुर्ग को लेकर कहा कि "बाकी दुर्ग तो नंगे हैं यह एक दुर्ग मात्र बख़तरबंद है "
जलालुद्दीन खिलजी ने इसे जीत नहीं पाने के कारण कहा कि ऐसे १० किलों को में मुसलमानों की दाढ़ी के बालों के बराबर भी नहीं समझता हूं ।
दुर्ग के प्रमुख द्वार -
सूरज पोल , गणेश पोल , हाथी पोल , नवलखा दरवाजा ,तोरण द्वार और अंधेरी द्वार
दुर्ग में निर्माण -
32 खंभों की चेहरे ,इसे न्याय की छतरी, जैत्रसिंह की छतरी व जयसिम्हा की छतरी भी कहते हैं।
त्रिनेत्र गणेश मंदिर
हम्मीर कचहरी
पीर सदरुद्दीन की दरगाह,इसका निर्माण अलाऊद्दीन खिलजी ने करवाया।
पद्मला तालाब
जौरा भौंरा महल - अनाज के बड़े बड़े कोठे
अधूरी स्वपन की छतरी ( हाड़ी रानी कर्मावती ने इसका निर्माण करवाया ।)
नवलखा दरवाजा का निर्माण जयपुर महाराजा जगत सिंह ने करवाया।
आमेर दुर्ग
इस दुर्ग का निर्माण मानसिंह द्वारा करवाया गया।
उपनाम - आम्बेर, अंबिकापुर , अम्बवती आदि ।
प्रमुख द्वार - सूरज पोल , चांद पोल , सिंह पोल और गणेश पोल आदि।
इसमें कदमी महल बना हुआ है जिसका निर्माण राजदेव द्वारा करवाया गया। इसमें कच्छवाहा शासकों का राजतिलक होता था।
राजस्थान में सर्वप्रथम "नाइट टूरिज्म" की सुविधा यहां से प्रारंभ हुई।
विशप हेवर ने कहा कि की "मैने क्रेमलिन में जो कुछ भी देखा ,अलब्राहमा के बारे में जो कुछ भी सुना उनसे कई गुना बढ़कर हैं यहां के महल ।
दुर्ग में अन्य निर्माण -
दीवान ए खास
दीवान ए आम
सुख मंदिर , सुहाग मंदिर , शीला देवी मंदिर, जगत शिरोमणि मंदिर , मावठ झील ।
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