राजस्थान के प्रमुख मंदिर : कला व संस्कृति // Major temples of Rajasthan: Art and culture
भारत में अनेक देवी-देवताओं की पूजा प्राचीन काल से होती आ रही है। इनकी पूजा-अर्चना के लिए राजाओं, मंत्रियों, और व्यापारियों ने भव्य मंदिरों का निर्माण करवाया है। राजस्थान, जो अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है, यहाँ भी अनेक महत्वपूर्ण मंदिर स्थित हैं।
मंदिर निर्माण का कार्य मौर्य काल से शुरू हुआ और गुप्त काल के दौरान राजस्थान में अनेक भव्य मंदिरों का निर्माण हुआ। इस काल में भारतीय वास्तुकला में एक नई दिशा मिली, जो आज भी हमारे सामने मौजूद है।
मंदिर निर्माण की प्रमुख शैलियां
नागर शैली
नागर शैली की पहचान इसके समतल छत और ऊपर उठे हुए शिखरों से होती है। इसे आर्य शैली भी कहा जाता है और यह पंचायतन शैली से संबंधित है।
द्रविड़ शैली
द्रविड़ शैली का विकास दक्षिण भारत में हुआ है। इन मंदिरों में पिरामिड नुमा शिखर होते हैं, और इनकी विशेषता है कि शिखर की प्रधानता होती है।
बेसर शैली
बेसर शैली, नागर और द्रविड़ शैली का मिला-जुला रूप है, जिसे चालुक्य शैली भी कहा जाता है। इस शैली का शाब्दिक अर्थ "खच्चर" है, जो इसे एक अद्वितीय पहचान देता है।
भारत में सर्वाधिक मंदिर - काशी में बने हुए हैं , राजस्थान,जयपुर में सर्वाधिक मंदिर बने होने के कारण इसे ' राजस्थान की काशी ' कहा जाता है ।
बूंदी को छोटी काशी के नाम से जाना जाता है ।
राजस्थान में सर्वाधिक नागर शैली के मंदिर बने हुए हैं
राजस्थान के प्रमुख मंदिर
जयपुर के प्रमुख मंदिर: एक ऐतिहासिक और धार्मिक यात्रा
जयपुर, राजस्थान का एक ऐतिहासिक शहर है, जो न केवल अपनी वास्तुकला के लिए जाना जाता है, बल्कि यहां के धार्मिक स्थलों के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां हम तीन महत्वपूर्ण मंदिरों का वर्णन करेंगे, जो न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि उनकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भी अद्वितीय है।
1. शीला माता मंदिर
शीला माता मंदिर, आमेर के राजप्रसाद (दुर्ग) के जलेब चौक में स्थित है। यह मंदिर कच्छवाहा वंश की आराध्य देवी, शीला माता को समर्पित है। यह मूर्ति काले संगमरमर के पत्थर से बनी है, जिसे कच्छवाहा शासक मानसिंह प्रथम ने बंगाल के केदार से लाकर स्थापित किया था। वर्तमान स्वरूप में इस मंदिर का निर्माण मानसिंह द्वितीय ने करवाया। यह स्थान श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखता है।
2. गोविंद देव जी का मंदिर
जयपुर का गोविंद देव जी का मंदिर, 1669 ईस्वी में स्थापित किया गया था। इस मंदिर का इतिहास उस समय से जुड़ा है जब औरंगजेब ने मंदिरों को तोड़ने की घोषणा की थी। गौडीय संप्रदाय के पुजारी गोविंद देव जी को मूर्ति के साथ जयपुर लाए। कच्छवाह वंश के लोग गोविंद देव जी को अपना वास्तविक शासक मानते थे, और मंदिर उनकी आराधना का महत्वपूर्ण स्थल है।
3. जगत शिरोमणि मंदिर
जगत शिरोमणि मंदिर का निर्माण मानसिंह प्रथम की रानी कनकावती ने करवाया था। यह मंदिर श्री कृष्ण की प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध है, जो चित्तौड़ से लाई गई थी। इस मंदिर की पूजा मीराबाई द्वारा की जाती थी, जिसके कारण इसे मीरा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह स्थल भक्तों के लिए प्रेरणा और आस्था का केंद्र है।
4. कल्कि मन्दिर
कल्कि मन्दिर का निर्माण 1739,ईस्वी में सवाई जयसिंह द्वारा करवाया गया । कल्कि - कलयुग के विष्णु अवतार।
नोट :- इंदिरा गांधी का मंदिर अचरौल,जयपुर में बना हुआ है ।
5. लक्ष्मीनारायण जी का मंदिर
इस मंदिर का निर्माण कच्छवाह शासक पृथ्वीराज कच्छवाहा की रानी बालाबाई द्वारा करवाया गया ।
6. गलता मंदिर
जयपुर, गलता में बना हुआ है , गलता जी को गालव ऋषि की तपोस्थली इसे कहा जाता है । रामानुज संप्रदाय से संबद्ध और इसे जयपुर का बनारस कहा जाता है ।
7. वीर हनुमान मंदिर , सामोद
जयपुर में हनुमान जी वृद्ध प्रतिमा की पूजा अर्चना की जाती है ।
8. चरण मंदिर
इस मंदिर में श्री कृष्ण के चरणों की पूजा की जाती है।
9. बिड़ला मंदिर
यह मंदिर गंगाप्रसाद बिड़ला चेरिटेबल ट्रस्ट द्वारा संरक्षित है , इस मंदिर का निर्माण व इसमें लगी लक्ष्मीनारायण जी की मूर्ति भी सफेद संगमरमर की बनी हुई है ।
अजमेर के प्रमुख मंदिर
सोनी जी की नसिया: एक जैन तीर्थ स्थल
- स्थान: सोनी जी की नसिया, अजमेर
- निर्माता: सेठ मूलचंदस्वामी
- निर्माण सामग्री: लाल पत्थर
विशेषताएँ:
सोनी जी की नसिया, जिसे सिद्धकुट चैतन्य के नाम से भी जाना जाता है, अजमेर में स्थित एक अद्वितीय जैन मंदिर है। इसका निर्माण सेठ मूलचंदस्वामी द्वारा करवाया गया था। यह मंदिर जैन संप्रदाय के पहले तीर्थंकर, ऋषभदेव जी को समर्पित है।
मंदिर की विशेषताएँ:
वास्तुकला: यह मंदिर लाल पत्थर से बना है, जो इसकी सुंदरता को और बढ़ाता है। मंदिर का डिज़ाइन और निर्माण शैली जैन वास्तुकला की उत्कृष्टता को दर्शाती है।
आध्यात्मिक महत्व: सोनी जी की नसिया जैन समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। यहां श्रद्धालु ऋषभदेव जी की पूजा-अर्चना करते हैं और अपने आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा प्राप्त करते हैं।
दृश्यता: मंदिर की आंतरिक सजावट और नक्काशी भक्तों को आकर्षित करती है। यहां की शांति और सौंदर्य वातावरण में एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करते हैं।
ब्रह्मा मंदिर, पुष्कर: एक अद्वितीय तीर्थ स्थल
स्थान: पुष्कर, अजमेर
निर्माण: आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा
विशेषताएँ:
पुष्कर में स्थित ब्रह्मा मंदिर, विश्व का पहला ब्रह्मा मंदिर माना जाता है। यह मंदिर आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित किया गया था और इसे वर्तमान स्वरूप गोकुलचंद पारीक ने दिया। यह मंदिर हिंदू धर्म के चार प्रमुख तीर्थ स्थानों में से एक है।
मंदिर के प्रमुख आकर्षण:
कार्तिक पूर्णिमा मेला: हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां एक भव्य मेला लगता है, जिसे "रंगीन मेला" कहा जाता है। इस मेले में बड़ी संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक शामिल होते हैं, जहां विशेष रूप से ऊंटों की बिक्री होती है।
महात्मा गांधी की अस्थियाँ: यहां महात्मा गांधी की अस्थियाँ भी विसर्जित की गई थीं, जो इस स्थल के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को बढ़ाती हैं।
अन्य ब्रह्मा मंदिर
भारत में अन्य स्थानों पर भी ब्रह्मा मंदिर स्थित हैं, जैसे:
- छिंदवाड़ा
- बसवाड़ा
- आसोतरा
- बालोतरा
1. काचरिया मंदिर
स्थान: किशनगढ़, अजमेर
काचरिया मंदिर, किशनगढ़ में स्थित है, जहां निंबार्क पद्धति से राधा-कृष्ण की युगल रूप में पूजा की जाती है। यह मंदिर भक्तों के लिए एक विशेष आध्यात्मिक स्थल है, जो राधा-कृष्ण की प्रेम भक्ति का प्रतीक है।
2. रंगनाथ मंदिर
स्थान: पुष्कर
रंगनाथ मंदिर द्रविड़ शैली में बना एक भव्य मंदिर है, जिसका निर्माण सेठ पूरनमल द्वारा करवाया गया। इस मंदिर में लक्ष्मीनारायण जी की मूर्ति सिंह पर सवार है, जिसकी पूजा श्रद्धालुओं द्वारा की जाती है। यह स्थल भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है।
3. बराह मंदिर
स्थान: पुष्कर
बराह मंदिर विष्णु जी के वराह अवतार को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण अर्नोराज द्वारा किया गया था। यहां भगवान विष्णु के इस अवतार की पूजा करने के लिए भक्त दूर-दूर से आते हैं, जो इसे एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बनाता है।
4. राम बैकुंठ मंदिर
स्थान: पुष्कर
राम बैकुंठ मंदिर वैष्णव धर्म की रामानुज शाखा से संबंधित है। यह मंदिर भक्तों को राम की भक्ति में डुबो देता है और यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए एक शांति और आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है।
अलवर के प्रमुख मंदिर
अलवर, राजस्थान का एक ऐतिहासिक शहर है, जो न केवल अपनी संस्कृति के लिए जाना जाता है, बल्कि यहां के प्रमुख मंदिर भी श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। यहां हम अलवर के चार प्रमुख मंदिरों का वर्णन करेंगे।
1. नीलकंठ महादेव मंदिर
स्थान: राजगढ़ तहसील, सरिस्का अभयारण्य
नीलकंठ महादेव मंदिर, राजगढ़ तहसील में स्थित है और यह सरिस्का अभयारण्य के बीचों-बीच है। इस मंदिर में नृत्यरत गणेश जी की एक अद्भुत मूर्ति स्थापित की गई है। यह स्थल प्राकृतिक सुंदरता से घिरा हुआ है, जो भक्तों को एक शांति और आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है।
2. भर्तृहरि मंदिर
स्थान: सरिस्का अभयारण्य
भर्तृहरि मंदिर, अलवर जिले में स्थित है और इसे भर्तृहरि की तपोस्थली के रूप में जाना जाता है। भर्तृहरि, उज्जैन के राजा थे, जिन्होंने अपनी रानी पिंगला के धोखे के बाद सन्यास ग्रहण किया और यहां तप किया। इस मंदिर का विशेष महत्व है, और इसे कनफटे नाथों का कुंभ भी कहा जाता है, जहां श्रद्धालु नियमित रूप से आते हैं।
3. पांडुपोल हनुमान मंदिर
स्थान: पांडुपोल
पांडुपोल हनुमान मंदिर में लेटे हुए हनुमान जी की एक दिव्य प्रतिमा स्थापित है। यह मंदिर भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है, जहां श्रद्धालु हनुमान जी से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आते हैं। यहां की शांति और भक्ति का माहौल भक्तों को प्रेरित करता है।
डुंगरपुर के प्रमुख मंदिर
1. बेणेश्वर धाम
बेणेश्वर धाम डुंगरपुर जिले का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है, जिसे संत माव द्वारा प्रसिद्ध किया गया है। यह धाम विशेष रूप से अपनी आध्यात्मिक महत्व और प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है।
- संस्थान: यह धाम एक शांत और सुरम्य स्थान पर स्थित है, जहां पिंडवड़ क्षेत्र के तट पर गोमती और माही नदियों का संगम होता है।
- पूजा और अनुष्ठान: यहां भक्तजन विभिन्न अनुष्ठान और पूजा करते हैं, जिसमें विशेष रूप से संतान सुख और स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना की जाती है।
- आध्यात्मिक महत्व: बेणेश्वर धाम को विशेष रूप से ध्यान और साधना के लिए उपयुक्त माना जाता है। यह स्थान संतों और भक्तों के लिए एक प्रेरणादायक केंद्र है।
देव सोमनाथ मंदिर, डूंगरपुर
स्थान: डूंगरपुर जिला, राजस्थान
विशेषताएँ:
देव सोमनाथ मंदिर डूंगरपुर जिले का एक प्रमुख और ऐतिहासिक मंदिर है, जो भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर अपनी अद्वितीय वास्तुकला और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर का निर्माण 12 वी सदी में किया गया , ये गुर्जर प्रतिहार कालीन मंदिर है ।
वास्तुकला: इस मंदिर की स्थापत्य शैली राजस्थानी और मध्यकालीन भारतीय वास्तुकला का एक उत्तम उदाहरण है। मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग की पूजा की जाती है, जो भक्तों के लिए एक विशेष आकर्षण का केंद्र है।
धार्मिक महत्व: देव सोमनाथ मंदिर को श्रद्धालुओं द्वारा अत्यधिक मान्यता प्राप्त है। यहां विशेष रूप से महाशिवरात्रि जैसे त्यौहारों पर बड़ी संख्या में भक्त आते हैं, और यहां विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
पार्श्वभूमि: इस मंदिर का नाम "सोमनाथ" भगवान शिव के एक स्वरूप के नाम पर रखा गया है, जो इस स्थान की ऐतिहासिकता को दर्शाता है। यहां की मान्यता है कि जो लोग सच्चे मन से प्रार्थना करते हैं, उनकी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं।
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