प्रमुख बांध और सिंचाई परियोजनाएँ - राजस्थान में सिंचाई का विकास
राजस्थान में सिंचाई का महत्व अत्यधिक है, क्योंकि राज्य का अधिकांश हिस्सा मरुस्थलीय और अर्द्ध मरुस्थलीय क्षेत्रों में आता है। राज्य की जलवायु में वर्षा का अनिश्चितता है, जिससे सूखा और अकाल जैसी समस्याएँ आम हैं। स्वतंत्रता के बाद, सिंचाई के क्षेत्र में विकास के लिए विभिन्न योजनाएँ बनाई गईं, जिससे कृषि उत्पादन में वृद्धि और जल संसाधनों का स्थायी प्रबंधन संभव हो सके।
राजस्थान में सिंचाई परियोजनाओं का प्रारंभ और विकास
14 सितंबर 1949 को लोक निर्माण विभाग से अलग होकर राजस्थान में सिंचाई विभाग की स्थापना की गई। इसके बाद, वर्ष 1950-51 में प्रथम पंचवर्षीय योजना के तहत सिंचाई के तीन प्रकार के प्रकल्प आरंभ किए गए:
- वृहद श्रेणी परियोजनाएँ
- मध्यम श्रेणी परियोजनाएँ
- लघु श्रेणी परियोजनाएँ
वर्तमान में राजस्थान में निम्नलिखित चार प्रकार की सिंचाई परियोजनाएँ कार्यरत हैं:
- बहुउद्देशीय सिंचाई परियोजना
- वृहद श्रेणी परियोजनाएँ
- मध्यम श्रेणी परियोजनाएँ
- लघु श्रेणी परियोजनाएँ
राजस्थान में सिंचाई के प्रमुख साधन
राजस्थान में सिंचाई के मुख्य स्रोत सीमित मात्रा में उपलब्ध सतही जल का उपयोग करते हैं। सिंचाई के प्रमुख साधन कुएँ, नलकूप, नहरें और तालाब हैं।
कुएँ और नलकूप:
- सिंचाई के प्रमुख साधन हैं। भरतपुर, अलवर, उदयपुर, और अजमेर जिलों में इनका प्रयोग अधिक है।
नहरें:
- राजस्थान में नहरों द्वारा सिंचाई की जाती है, विशेषकर श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, जैसलमेर, कोटा, बूँदी, डूंगरपुर और बाँसवाड़ा जिलों में।
तालाब:
- सिंचाई का एक प्राचीन साधन है। भीलवाड़ा, उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, बाँसवाड़ा, बूँदी, टोंक, अजमेर, जयपुर, कोटा, डूंगरपुर और सवाई माधोपुर जिलों में तालाबों का उपयोग किया जाता है।
राजस्थान की प्रमुख बहुउद्देशीय सिंचाई परियोजनाएँ
बहुउद्देशीय परियोजनाएँ जल आपूर्ति, सिंचाई, विद्युत उत्पादन, बाढ़ नियंत्रण, और जैव विविधता संरक्षण जैसे कई उद्देश्यों के लिए निर्मित की जाती हैं। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इन्हें "आधुनिक भारत के मंदिर" कहा था।
1. भाखड़ा नांगल परियोजना
- सतलज नदी पर स्थित भाखड़ा बाँध एशिया का सबसे ऊँचा गुरुत्वीय बाँध है।
- भाखड़ा बाँध का निर्माण 1948 में शुरू हुआ और 1963 में इसे राष्ट्र को समर्पित किया गया।
- नांगल बाँध का निर्माण 1952 में पूर्ण हुआ और इससे सिंचाई के लिए दो नहरें निकाली गईं: बिस्त दोआब नहर और भाखड़ा नहर।
- राजस्थान के श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिलों को इसका लाभ मिलता है।
भाखड़ा बाँध:
- स्थान: यह हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में सतलज नदी पर स्थित है।
- गोविंद सागर झील: बाँध के पीछे गोविंद सागर झील है, जो परियोजना का प्रमुख जलाशय है।
- ऊँचाई: भाखड़ा बाँध की ऊँचाई 741 फीट (226 मीटर) है, और यह एशिया का सबसे ऊँचा कंक्रीट का गुरुत्वीय बाँध है।
- निर्माण: इसकी योजना 1908 में पंजाब के गवर्नर लुइस डेन ने दी थी, और इसका निर्माण 1948 में शुरू हुआ। 1955 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की उपस्थिति में इसका निर्माण कार्य आगे बढ़ा। वर्ष 1963 में नेहरू जी ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया।
- विद्युत उत्पादन: इसकी कुल जल विद्युत उत्पादन क्षमता 1516 मेगावाट (MW) है।
नांगल बाँध:
- स्थान: यह भाखड़ा बाँध से 13 किलोमीटर नीचे की ओर पंजाब के रोपड़ जिले में स्थित है।
- निर्माण: इसका निर्माण 1952 में पूरा हुआ।
- सिंचाई नहरें:
- बिस्त दोआब नहर: दायीं ओर स्थित नहर, जो सिंचाई के लिए जल उपलब्ध कराती है।
- भाखड़ा नहर: बायीं ओर की नहर, जो राजस्थान में हनुमानगढ़ सहित अन्य क्षेत्रों में सिंचाई में सहायक है।
2.इंदिरा गांधी नहर परियोजना
इंदिरा गांधी नहर परियोजना को राजस्थान की जीवन रेखा के रूप में जाना जाता है। इसका उद्देश्य राजस्थान के सूखे और मरुस्थलीय इलाकों में सिंचाई के लिए पानी की आपूर्ति करना है, जिससे कृषि, पेयजल और औद्योगिक जल की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके। पहले इस परियोजना का नाम राजस्थान नहर था, लेकिन 2 नवंबर 1984 को इसका नाम बदलकर इंदिरा गांधी नहर परियोजना कर दिया गया।
परियोजना का इतिहास
- 1927: गंग नहर के निर्माण से इस परियोजना की प्रेरणा मिली।
- 1948: इंजीनियर कँवर सेन ने बीकानेर राज्य के लिए पानी की आवश्यकता पर एक रिपोर्ट दी।
- 1952: सतलज और व्यास नदी के संगम पर हरिके बैराज का निर्माण हुआ।
- 1958: तत्कालीन गृहमंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने इसका शिलान्यास किया।
- 1961: तत्कालीन उपराष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने राजस्थान नहर का उद्घाटन किया।
परियोजना का प्रारूप
इंदिरा गांधी नहर परियोजना को दो भागों में विभाजित किया गया है:
- राजस्थान फीडर: इसकी लंबाई 204 किमी है, जिसमें 170 किमी पंजाब और हरियाणा में तथा 34 किमी राजस्थान में है।
- राजस्थान नहर: इसकी लंबाई 445 किमी है, जो हनुमानगढ़ के मसीतावाली हैड से शुरू होती है और जैसलमेर के मोहनगढ़ तथा बाड़मेर के गडरा रोड तक जाती है। दोनों भागों को मिलाकर नहर की कुल लंबाई 649 किमी है।
लिफ्ट नहरें
इंदिरा गांधी नहर पर 7 प्रमुख लिफ्ट नहरें बनाई गई हैं, जो विभिन्न जिलों में जल की आपूर्ति करती हैं:
- चौधरी कुंभाराम लिफ्ट नहर: हनुमानगढ़, चूरू, बीकानेर, और झुंझुनूं जिलों के लिए।
- श्री कँवर सेन लिफ्ट नहर: बीकानेर और श्रीगंगानगर के लिए।
- पन्नालाल बारूपाल लिफ्ट नहर: बीकानेर और नागौर के लिए।
- वीर तेजाजी लिफ्ट नहर: बीकानेर के लिए।
- डॉ. कर्ण सिंह लिफ्ट नहर: बीकानेर और जोधपुर के लिए।
- गुरु जम्भेश्वर लिफ्ट नहर: बीकानेर, जैसलमेर, और जोधपुर के लिए।
- जयनारायण व्यास लिफ्ट नहर: जैसलमेर और जोधपुर के लिए।
लाभान्वित क्षेत्र और कमांड क्षेत्र
इस नहर परियोजना का कुल कृषि योग्य कमांड क्षेत्र 16.17 लाख हेक्टेयर है, जिसमें प्रस्तावित कमांड क्षेत्र 19.63 लाख हेक्टेयर है। इसका सर्वाधिक लाभ बीकानेर और जैसलमेर जिलों को मिला है।
शाखाएँ और उपशाखाएँ
इंदिरा गांधी नहर की 9 प्रमुख शाखाएँ हैं, जिनमें रावतसर, सूरतगढ़, अनूपगढ़, पूगल, दंतौर, बरसलपुर, चारणवाला, शहीद बीरबल, और सागरमल गोपा प्रमुख हैं।
परियोजना के लाभ
- सिंचाई क्षेत्र का विस्तार और कृषि उत्पादन में वृद्धि।
- पेयजल और उद्योगों हेतु जल आपूर्ति।
- पशुपालन और चारागाह विकास।
- वृक्षारोपण और हरित पट्टी का विकास, जिससे मरुस्थल का विस्तार रोका जा सके।
- रोजगार अवसरों में वृद्धि, परिवहन और पर्यटन का विकास।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
- स्कॉड़ा सिस्टम: नहर में पानी के प्रवाह का आकलन अल्ट्रासोनिक सेटेलाइट उपकरणों से किया जाता है।
- भूमि में सेम समस्या: नहर क्षेत्र में अत्यधिक जलप्लावन के कारण सेम की समस्या उत्पन्न हुई है, जिसका समाधान भूमि में जिप्सम का प्रयोग है।
- वनारोपण और चारागाह विकास: इस क्षेत्र में वनारोपण कार्यक्रम चलाया जा रहा है, जिसके लिए वन सेना का गठन किया गया है।
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