राजस्थान की बहुउद्देशीय सिंचाई परियोजनाएं:- चंबल, माही सागर बजाज और व्यास परियोजना
चम्बल परियोजना एक प्रमुख बहुउद्देशीय परियोजना है, जिसका उद्देश्य राजस्थान और मध्य प्रदेश राज्यों के लिए सिंचाई और विद्युत उत्पादन करना है। इस परियोजना में दोनों राज्यों की 50-50 प्रतिशत साझेदारी है। परियोजना के तहत चम्बल नदी पर तीन चरणों में चार बांध और तीन विद्युत गृहों का निर्माण किया गया है। इसका कुल विद्युत उत्पादन लक्ष्य 386 मेगावॉट (MW) है, जिसमें दोनों राज्यों की बराबर साझेदारी है।
चम्बल परियोजना के चरण और प्रमुख बाँध
प्रथम चरण:
- गांधी सागर बांध: इसका निर्माण मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में चौरासीगढ़ दुर्ग से 8 किमी नीचे किया गया। बांध की लंबाई 513 मीटर और ऊंचाई 62 मीटर है। इस बांध की विद्युत उत्पादन क्षमता 115 MW है और इसका निर्माण वर्ष 1959 में पूर्ण हुआ।
- कोटा बैराज: यह बांध चम्बल नदी पर राजस्थान के कोटा में 1954 में बनाया गया। इस पर विद्युत गृह नहीं है, लेकिन सिंचाई और पेयजल आपूर्ति के लिए चम्बल नहरें निकाली गई हैं।
द्वितीय चरण:
- राणा प्रताप सागर बांध: यह बांध राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के रावतभाटा में चम्बल नदी पर बनाया गया। इसकी विद्युत उत्पादन क्षमता 172 MW है।
तृतीय चरण:
- जवाहर सागर बांध: यह बांध कोटा जिले के बोरावास क्षेत्र में स्थित है, जिसकी विद्युत उत्पादन क्षमता 99 MW है।
चम्बल नदी पर स्थित बाँधों का क्रम (दक्षिण से उत्तर की ओर)
- गांधी सागर
- राणा प्रताप सागर
- जवाहर सागर
- कोटा बैराज
महत्वपूर्ण तथ्य:
- चम्बल नदी पर बना राजस्थान का प्रथम बांध कोटा बैराज है।
- इस परियोजना के सभी बांधों और विद्युत गृहों से कुल 386 MW विद्युत उत्पादन होता है, जिसमें राजस्थान और मध्य प्रदेश की बराबर हिस्सेदारी है।
- परियोजना ने राजस्थान और मध्य प्रदेश के सिंचित क्षेत्र में विस्तार करने और कृषि एवं पेयजल आपूर्ति में सुधार में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
माही सागर बजाज परियोजना
माही बजाज सागर परियोजना दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी बहुल क्षेत्रों के लिए एक महत्वपूर्ण बहुद्देशीय परियोजना है। इसका मुख्य उद्देश्य माही नदी के जल का उपयोग कर पेयजल, सिंचाई, और विद्युत उत्पादन करना है। यह परियोजना राजस्थान और गुजरात की संयुक्त परियोजना है और इसका नाम प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी जमनालाल बजाज के नाम पर रखा गया है।
परियोजना की प्रमुख विशेषताएँ
परियोजना का आरंभ: माही बजाज सागर परियोजना को वर्ष 1959-60 में शुरू किया गया।
बांध का स्थान: माही बजाज सागर बांध का निर्माण राजस्थान के बाँसवाड़ा जिले में बोरखेड़ा स्थान पर माही नदी पर किया गया। यह बांध राजस्थान का सबसे लंबा बांध है, जिसकी लंबाई 3109 मीटर है और इसका निर्माण वर्ष 1992-93 में पूरा हुआ।
विद्युत उत्पादन: इस परियोजना के तहत 140 मेगावॉट विद्युत उत्पादन क्षमता की इकाई स्थापित की गई है। वर्तमान में पूरी विद्युत उत्पादन क्षमता का लाभ राजस्थान को मिलता है।
सिंचाई: माही बजाज सागर परियोजना से 80,000 हेक्टेयर से अधिक भूमि पर सिंचाई की जा रही है, जिससे क्षेत्र के कृषि उत्पादन में सुधार हुआ है।
द्वितीय चरण: परियोजना के दूसरे चरण के अंतर्गत बाँसवाड़ा में कागदी पिकअप बांध का निर्माण किया गया, जो पानी के प्रबंधन में मदद करता है।
गुजरात में कड़ाना बांध: माही नदी पर गुजरात में कड़ाना बांध का निर्माण भी इस परियोजना का हिस्सा है।
माही बजाज सागर परियोजना से दक्षिणी राजस्थान के पेयजल, सिंचाई, और बिजली की आवश्यकताओं को पूरा करने में काफी सहायता मिल रही है और यह क्षेत्र के समग्र विकास में योगदान दे रही है।
व्यास परियोजना:-
व्यास परियोजना सतलज, रावी और व्यास नदियों के जल संसाधनों का उपयोग करने के उद्देश्य से बनाई गई एक महत्वपूर्ण संयुक्त परियोजना है, जिसमें पंजाब, हरियाणा और राजस्थान की साझेदारी है। इस परियोजना के अंतर्गत दो प्रमुख बांध बनाए गए हैं:
1. पंडोह बाँध (देहर बाँध)
- स्थान: हिमाचल प्रदेश
- लक्ष्य: व्यास नदी के जल को सतलज नदी में स्थानांतरित करने के लिए पंडोह बाँध से एक लिंक नहर का निर्माण किया गया, जिसे "व्यास-सतलज लिंक परियोजना" कहा जाता है।
- विद्युत उत्पादन: इस बाँध पर 990 मेगावॉट की विद्युत उत्पादन क्षमता स्थापित की गई है, जिसमें से 20 प्रतिशत विद्युत राजस्थान को मिलती है।
2. पोंग बाँध
- स्थान: हिमाचल प्रदेश
- महत्त्व: पोंग बाँध से राजस्थान को रावी और व्यास नदियों के पानी में सबसे अधिक हिस्सा प्राप्त होता है।
- विद्युत उत्पादन: इस बाँध पर स्थापित 396 मेगावॉट के विद्युत गृह से उत्पादित बिजली का 58.50 प्रतिशत हिस्सा राजस्थान को प्राप्त होता है।
- मुख्य उद्देश्य: पोंग बाँध का मुख्य उद्देश्य शीत ऋतु में इंदिरा गांधी नहर परियोजना के लिए आवश्यक जल उपलब्धता बनाए रखना है, जिससे राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों में पानी की निरंतर आपूर्ति बनी रहे।
व्यास परियोजना से न केवल इन राज्यों के सिंचाई और बिजली की जरूरतें पूरी होती हैं, बल्कि यह क्षेत्र के जल प्रबंधन में भी सहायक है, जिससे कृषि और उद्योगों को बढ़ावा मिलता है।
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