राजस्थान की मृदा और जलवायु: परीक्षा तैयारी के लिए संपूर्ण गाइड
मृदा (मिट्टी) के प्रकार, उनके वितरण और विशेषताओं का राजस्थान में विशेष महत्व है। राज्य में विभिन्न प्रकार की मृदा पाई जाती है, जिनका वर्गीकरण वैज्ञानिक आधार पर किया गया है।
एरिडीसोल्स (शुष्क मृदा) - यह मृदा मरुस्थलीय क्षेत्रों में पाई जाती है और विशेष रूप से शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में व्यापक है।
एन्टीसोल्स (रेतीली/बलुई मृदा) - राजस्थान की यह सबसे विस्तारित मृदा है और पश्चिमी राजस्थान के अनेक भागों में पाई जाती है। इसकी विशेषता इसका पीला-भूरा रंग है।
इन्सेप्टीसोल्स (लाल मृदा) - यह अर्द्ध-शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों, विशेषकर अरावली पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती है।
एल्फीसोल्स (जलोढ़ मृदा) - पूर्वी राजस्थान में पाई जाती है और इसमें नाइट्रोजन का स्थिरीकरण तीव्र होता है, जो इसे कृषि के लिए उपयुक्त बनाता है।
वर्टिसोल्स (काली मिट्टी) - हाड़ौती के पठार में पाई जाती है। इस मिट्टी में अधिक क्ले (मिट्टी) होने के कारण इसमें नमी को धारण करने की क्षमता अधिक होती है, इसलिए यह कपास की खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
मृदा के रंग, उपजाऊपन और विशेषताओं के आधार पर प्रकार
मरुस्थलीय मृदा - पश्चिमी राजस्थान के बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर, बीकानेर आदि जिलों में पाई जाती है।
लैटेराइट मृदा - दक्षिणी राजसमंद, उदयपुर और डूंगरपुर में पाई जाती है, और मक्का, चावल, गन्ना की खेती के लिए उपयुक्त होती है।
लाल-पीली मृदा - राजसमंद, उदयपुर, सिरोही आदि जिलों में पाई जाती है।
काली मिट्टी - दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में कोटा, बारां, बूंदी और झालावाड़ जिलों में पाई जाती है और कपास की खेती के लिए उपयुक्त होती है।
मिश्रित लाल व काली मिट्टी - बाँसवाड़ा, उदयपुर और चित्तौड़गढ़ में पाई जाती है।
कछारी मिट्टी - उत्तरी-पूर्वी जिलों जैसे हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर, भरतपुर आदि में पाई जाती है।
मृदा संरक्षण
राजस्थान में मृदा अपरदन के मुख्य कारण वायु और जल अपरदन तथा वनों का कटाव है। मृदा की उर्वरता पश्चिम से पूर्व की ओर बढ़ती है। मृदा संरक्षण के लिए प्रमुख उपायों में मेड़बंदी, समोच्च कृषि और नियंत्रित पशुचारण शामिल हैं।
राजस्थान के कृषि विभाग द्वारा राज्य की मृदा का वर्गीकरण विभिन्न प्रकारों में किया गया है, जो क्षेत्रीय विशेषताओं, रंग और संरचना पर आधारित हैं। यह वर्गीकरण फसलों के लिए मृदा की उपयुक्तता को समझने में सहायक है:
- साई रोजेक्स - श्रीगंगानगर में पाई जाती है।
- रेवेरिना - श्रीगंगानगर में पाई जाती है।
- मरुस्थली मृदा - जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, जोधपुर, सीकर, नागौर, चूरू, झुंझुनूं, श्रीगंगानगर में मिलती है।
- जिप्सीफेरस - बीकानेर में पाई जाती है।
- धूसर भूरी जलोढ़ मृदा - नागौर, पाली, सिरोही, जालोर, अजमेर में पाई जाती है।
- गैर चूना युक्त भूरी मृदा - नागौर, सीकर, झुंझुनूं, जयपुर, अजमेर, अलवर में पाई जाती है।
- नवीन जलोढ़ मृदा - जयपुर, सवाई माधोपुर, भरतपुर, अलवर में पाई जाती है।
- पीली भूरी मृदा - भीलवाड़ा, उदयपुर, चित्तौड़गढ़, टोंक, जयपुर, सवाई माधोपुर में मिलती है।
- नवीन भूरी मृदा - अजमेर और भीलवाड़ा में पाई जाती है।
- पर्वतीय मृदा - कोटा और उदयपुर के पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती है।
- लाल-लोमी मृदा - बाँसवाड़ा और डूंगरपुर में पाई जाती है।
- काली गहरी मध्यम मृदा - भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, झालावाड़, कोटा, बूँदी, भरतपुर में पाई जाती है।
- केल्सी ब्राउन मरुस्थली मृदा - जैसलमेर और बीकानेर में पाई जाती है।
- मरुस्थल एवं बालुका स्तूप - बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर और बीकानेर में विस्तारित हैं।
यह वर्गीकरण विभिन्न फसलों की उपयुक्तता का निर्धारण करने के साथ-साथ मृदा संरक्षण और उर्वरक प्रबंधन में भी सहायक है।
नोट: राजस्थान सरकार ने मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना का शुभारंभ फरवरी 2015 में सूरतगढ़ (श्रीगंगानगर) से किया था ताकि किसानों को मृदा की उर्वरता के बारे में जानकारी मिल सके और वे बेहतर तरीके से फसलों की योजना बना सकें।
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