राजस्थान का भूगोल:- अपवाह तंत्र ,नदियां और उन पर बने महत्वपूर्ण बांध , मीठे और खारे पानी की झीलें
राजस्थान के जलविज्ञान के संदर्भ में, यहाँ की नदियों को तीन प्रमुख समूहों में विभाजित किया गया है, जो उनके अपवाह क्षेत्र और जलागम के आधार पर हैं:
1. बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियाँ
- इन नदियों का अपवाह क्षेत्र राजस्थान के लगभग 23% हिस्से को कवर करता है। इस समूह में मुख्य नदियाँ हैं: चम्बल, बनास, कालीसिंध, पार्वती, परवन, बेड़ा, कोठारी और खारी।
- चम्बल नदी - यह प्रमुख नदी विंध्याचल पर्वत श्रेणी के जानापाव पहाड़ी से निकलती है और इसकी कुल लंबाई लगभग 965 किमी है, जिसमें से राजस्थान में इसकी लंबाई 135 किमी है। चम्बल की प्रमुख सहायक नदियाँ हैं: बनास, कालीसिंध, पार्वती, वापनी/ब्राह्मणी, और मेज।
- बनास नदी - इस नदी का उद्गम राजसमंद के खमनौर पहाड़ियों से होता है, और यह राजस्थान में विभिन्न त्रिवेणी संगम बनाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं: बेड़च, खारी, मेनाल, कोठारी, मानसी, बाण्डी, धुंध, और मोरेल।
- बाणगंगा नदी - बैराठ की पहाड़ियों से निकलकर, यह नदी जयपुर, दौसा और भरतपुर के क्षेत्रों से होकर बहती है और अंततः आगरा के फतेहाबाद के निकट यमुना में मिलती है।
2. अरब सागर में गिरने वाली नदियाँ
- इस समूह की नदियों का अपवाह क्षेत्र राजस्थान के लगभग 17% हिस्से को कवर करता है। मुख्य नदी लूणी है।
- लूणी नदी - इसका उद्गम पुष्कर के नाग पहाड़ से होता है। गोविन्दगढ़ के पास सरस्वती नदी से मिलने के बाद इसे लूणी कहा जाता है। इसकी कुल लंबाई 495 किमी है, जिसमें से 320 किमी राजस्थान में है।
- लूणी की प्रमुख सहायक नदियाँ हैं: लीलड़ी, मीठड़ी, बांड़ी, सूकडी, जवाई, सागी और जोजरी।
लूणी नदी पर बाँध और परियोजनाएँ:
- जसवंतसागर बाँध (पिचियाक बाँध) - यह बाँध जोधपुर के पास स्थित है।
- जवाई परियोजना - जवाई नदी पर, जो लूणी की सहायक नदी है। यह बाँध सुमेरपुर (पाली) में स्थित है।
- हेमावास बाँध - बाड़ी नदी पर बना यह बाँध पाली जिले के हेमावास में स्थित है।
- बाखली बाँध - सूकड़ी नदी पर बना यह बाँध जालोर जिले के बाखली में स्थित है।
माही नदी और उससे संबंधित बाँध एवं परियोजनाएँ:
माही नदी का उद्गम मध्य प्रदेश के विंध्याचल पर्वत श्रृंखला की मेहद झील से होता है और यह राजस्थान के बाँसवाड़ा जिले के खांदू ग्राम से प्रवेश करती है। माही नदी का अपवाह क्षेत्र दक्षिण राजस्थान के बाँसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़ और उदयपुर जिलों में फैला है। यह नदी कर्क रेखा को दो बार काटती है और अंत में गुजरात के खंभात की खाड़ी में मिलती है।
महत्त्वपूर्ण त्रिवेणी संगम - बेणेश्वर (डूंगरपुर) में माही नदी, सोम और जाखम नदियों के साथ मिलकर त्रिवेणी संगम बनाती है, जहाँ प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा पर आदिवासियों का कुंभ कहलाने वाला बेणेश्वर मेला लगता है।
माही नदी की सहायक नदियाँ - सोम, जाखम, अनास, पाप, भोरेन आदि।
माही नदी पर परियोजनाएँ:
- माही बजाज सागर परियोजना - पोरखेड़ा (बाँसवाड़ा) में स्थित।
- कागदी पिकअप बाँध - बाँसवाड़ा जिले में।
- भीखाभाई सागवाड़ा परियोजना - इंगरपुर में।
- कड़ाना बाँध - गुजरात में स्थित।
पश्चिमी बनास नदी:
- उद्गम - सिरोही जिले के नया सनबाड़ के निकट अरावली की पहाड़ियों से होता है।
- यह नदी सिरोही जिले से होते हुए गुजरात के बनासकांठा जिले में प्रवेश करती है और अंततः कच्छ की खाड़ी (गुजरात) में विलुप्त हो जाती है।
- सहायक नदी - सुकली (सीपू)।
साबरमती नदी:
कुल लम्बाई - 320 किमी, जिसमें से 44 किमी राजस्थान में है।
उद्गम - उदयपुर जिले के पदराला की पहाड़ियों से होता है और इसका समापन खंभात की खाड़ी (गुजरात) में होता है।
सहायक नदियाँ - मानसी वाकल, सेई, हथमती, मेश्र, पाजम, और वैतरक।
साबरमती नदी पर परियोजनाएँ:
- मानसी-वाकल परियोजना - यह राजस्थान सरकार और हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड की संयुक्त परियोजना है, जिसमें 20:30 की साझेदारी है और यह परियोजना राजस्थान की सबसे लम्बी जल सुरंग की सुविधा प्रदान करती है।
- सेई परियोजना - यह उदयपुर जिले में सेई नदी पर बनाई गई है और राजस्थान की पहली जल सुरंग यहीं स्थापित है। यह परियोजना जवाई बाँध में पानी की आवक बनाए रखने हेतु बनाई गई है।
1. आंतरिक अपवाह तंत्र की प्रमुख नदियाँ:
- घग्घर नदी - इसे शिवालिक नदी और इण्डो बाह्य नदी भी कहा जाता है। यह टिब्बी (हनुमानगढ़) से राजस्थान में प्रवेश करती है और इसका अपवाह क्षेत्र हनुमानगढ़ जिले तक सीमित है।
- कांतली नदी - इसका उद्गम सीकर जिले के खण्डेला की पहाड़ियों से होता है। यह सीकर और झुंझुनूं जिलों में बहती हुई चूरू जिले में प्रवेश करती है और वहाँ रेतीली भूमि में विलुप्त हो जाती है।
- काकने नदी - इसे मसूरदी नदी और काकनी भी कहा जाता है। इसका उद्गम जैसलमेर के कोटड़ी की पहाड़ियों से होता है। यह आंतरिक अपवाह की सबसे छोटी नदी है और जैसलमेर में मीठे पानी की एक झील का निर्माण करती है।
- साबी नदी - यह नदी जयपुर जिले की सेवर की पहाड़ियों से निकलती है और इसका अपवाह क्षेत्र जयपुर और अलवर जिलों में फैला हुआ है। इसके किनारे प्राचीन जोधपुरा सभ्यता (जयपुर) के अवशेष मिले हैं।
- रूपारेल नदी - इसे रूपनारायण नदी, वराह नदी, और लसावरी नदी के नाम से भी जाना जाता है। इसका उद्गम थानागाजी (अलवर) की उदयनाथ पहाड़ियों से होता है। यह अलवर से भरतपुर तक बहती है और भरतपुर में मोती झील बाँध का निर्माण करती है, जो भरतपुर की जीवन रेखा मानी जाती है। यहाँ नौह सभ्यता (लौह युगीन) के अवशेष भी मिले हैं।
- रूपनगढ़ नदी - यह अजमेर जिले के सलेमाबाद से निकलती है और जयपुर जिले में सांभर झील में गिरती है। सलेमाबाद में निम्बार्क संप्रदाय की प्रमुख पीठ स्थित है।
- मेन्था नदी - इसे मदा, मेढ़ा, और मधाई नदी के नाम से भी जाना जाता है। इसका उद्गम जयपुर जिले के मनोहरपुरा की पहाड़ियों से होता है और इसका अपवाह क्षेत्र जयपुर में है।
2. राजस्थान की मीठे पानी की प्राकृतिक झीलें:
- पुष्कर झील (अजमेर) - यह राजस्थान की सबसे बड़ी प्राकृतिक झील है। इसके पास ब्रह्माजी का मंदिर, सावित्री जी का मंदिर, रमा बैकुंठेश्वर मंदिर, भर्तृहरि की गुफा, और कण्व मुनि का आश्रम स्थित हैं।
- नक्की झील (माउंट आबू, सिरोही) - यह राजस्थान की सबसे ऊँची और गहरी झील है, जो ज्वालामुखीय क्रेटर झील का उदाहरण है। माउंट आबू राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन है।
- कोलायत झील (बीकानेर) - यह कपिलमुनि की तपोस्थली मानी जाती है और इसे मरुस्थल का सुंदर मरु उद्यान भी कहा जाता है।
- गजनेर झील (बीकानेर) - यह राजस्थान की एकमात्र झील है जो दर्पण की तरह प्रतीत होती है।
- तलवाड़ा झील (हनुमानगढ़)
- तालछापर झील (चूरू)
- नवलखा झील (बूंदी)
- दुगारी/कनक सागर (बूंदी)
- गैब सागर (डूंगरपुर)
- मानसरोवर (झालावाड़)
- कोहिला (झालावाड़)
- वीचमपुरी (सीकर)
राजस्थान की कृत्रिम झीलें:
जयसमंद झील (उदयपुर) - इसे वेबर झील भी कहते हैं। यह गोमती नदी पर स्थित है और राजस्थान की सबसे बड़ी मीठे पानी की कृत्रिम झील है। इसका निर्माण 1685-1691 ई. में मेवाड़ के महाराणा जयसिंह ने करवाया था। सिंचाई हेतु यहाँ से श्यामपुर और भाट नामक दो नहरें निकाली गई हैं।
राजसमंद झील (राजसमंद) - इसका निर्माण महाराणा राजसिंह ने 1662 ई. में कांवरी की (नाथद्वारा) में बाण, गामड़ी और केलवा नदियों के पानी को रोककर किया। यह भारत की पहली झील है जिसे अकाल राहत कार्य के लिए बनाया गया था।
पिछोला झील (उदयपुर) - इसका निर्माण राणा लाखा के समय पिच्छू बंजारा द्वारा पिछोला गाँव में किया गया। इस झील में सिसारमा और बड़ी नदी का पानी आता है।
फतेह सागर झील (उदयपुर) - इसका निर्माण महाराणा जयसिंह ने किया था और 1670 में महाराणा फतेहसिंह द्वारा पुनः विकसित किया गया। यहाँ पर एक बाँध है जिसे "कनॉट बाँध" कहा जाता है। इसे पिछोला झील से स्वरूप सागर नहर जोड़ती है।
उदय सागर झील (उदयपुर) - इसका निर्माण महाराणा उदयसिंह ने 1559 ई. में बेड़च नदी पर करवाया था।
आनासागर झील (अजमेर) - अजमेर के चौहान शासक अनाजी (आना) ने 1137 ई. में इस झील का निर्माण करवाया था।
फॉय सागर झील (अजमेर) - यह बाँदी नदी पर स्थित है और इसका निर्माण ब्रिटिश इंजीनियर मिस्टर फॉय ने अकाल राहत के उद्देश्य से करवाया था।
बालसमंद झील (जोधपुर) - गुर्जर प्रतिहार शासक बालक राय (बाऊका) ने इस झील का निर्माण करवाया था।
कायलाना झील (जोधपुर) - इसका निर्माण महाराजा प्रताप सिंह ने 1872 ई. में अकाल राहत कार्य के दौरान करवाया था।
सिलीसेढ़ झील (अलवर) - इसका निर्माण अलवर के महाराजा विनय सिंह ने करवाया था। यह झील प्रसिद्ध गोल्डन ट्रायंगल (दिल्ली-आगरा-जयपुर) के मार्ग पर स्थित है।
जैत सागर (बूंदी)
राम सागर (धौलपुर)
तालाब शाही (धौलपुर)
तेज सागर (प्रतापगढ़)
मूल सागर (जैसलमेर)
अमर सागर (जैसलमेर)
गजरूप सागर (जैसलमेर)
गढ़सीसर झील (जैसलमेर) - जैसलमेर में स्थित इस ऐतिहासिक झील का निर्माण राजा गड़सीसिंह ने करवाया था। यह आज भी जल संरक्षण का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
पटरा का तालाब (झुंझुनू)
राजस्थान में खारे पानी की प्रमुख झीलें निम्नलिखित हैं, जिनका अधिकांश हिस्सा पश्चिमी राजस्थान में है। ये झीलें टेथिस सागर के अवशेष मानी जाती हैं और नमक उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं:
सांभर झील (जयपुर, नागौर, अजमेर) - यह भारत की सबसे बड़ी आंतरिक नमक उत्पादक झील है। इसका निर्माण चौहान शासक करदेव चौहान ने 551 ई. में करवाया था। सांभर झील रामसर साइट (1990) की सूची में भी शामिल है।
डीडवाना झील (नागौर) - इस झील में सोडियम सल्फेट की अधिकता के कारण इसका नमक खाने योग्य नहीं होता है। 1964 में यहाँ राजस्थान स्टेट केमिकल्स एंड मिनरल्स की स्थापना की गई। इसका जल चमड़ा उद्योग में प्रयुक्त होता है।
पचपदरा झील (बाड़मेर) - यहाँ खारवाल जाति के लोग गोरड़ी झाड़ी का उपयोग करके नमक उत्पादन करते हैं। पचपदरा झील का नमक 90% NaCl और आयोडीन की अच्छी मात्रा के साथ सबसे ज्यादा खाने योग्य माना जाता है।
कावोद झील (जैसलमेर) - यह प्राचीन काल में सबसे प्रसिद्ध नमक उत्पादक झीलों में से एक रही है।
लूणकरणसर झील (बीकानेर) - यह उत्तरी राजस्थान की एकमात्र खारे पानी की झील है।
डेगाना झील (नागौर)
कुचामन झील (नागौर)
रेवासा झील (सीकर)
काछौर झील (बूंदी)
फलोदी झील (जोधपुर)
ये खारे पानी की झीलें न केवल नमक उत्पादन में सहायक हैं बल्कि इनके पानी का औद्योगिक उपयोग भी किया जाता है।
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