राजस्थान में जल संरक्षण की विधियां और उनके स्रोत || Methods of water conservation in Rajasthan and their sources

राजस्थान में जल संरक्षण की विधियां और उनके स्रोत ||Methods of water conservation in Rajasthan and their sources

 

राजस्थान में जल संरक्षण की विधियां और उनके स्रोत || Methods of water conservation in Rajasthan and their sources


जल जीवन के लिए अत्यावश्यक है और इसका संरक्षण एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। जल का उपयोग कृषि, उद्योग, घरेलू कार्य, आदि में होता है। हालांकि, पानी की उपलब्धता सीमित है, और इसका संरक्षण आज के दौर में अनिवार्य है। इस ब्लॉग में हम जल संरक्षण के महत्व, परंपरागत और आधुनिक जल संरक्षण की विधियों पर चर्चा करेंगे।


जल संरक्षण का महत्व

  • पृथ्वी पर जीवन जल की उपलब्धता पर निर्भर है। जल के बिना जीवन संभव नहीं है।
  • जल का उपयोग सिंचाई, घरेलू कार्य, उद्योग, आदि में होता है।
  • प्राचीन समय से जल संरक्षण परंपरागत रहा है; भुवनदेव आचार्य की पुस्तक "अपराजित पृच्छा" में जल संरक्षण के प्रकारों का उल्लेख मिलता है। कौटिल्य के "अर्थशास्त्र" में जल प्रबंधन की चर्चा है।

पृथ्वी पर जल और स्थल क्षेत्र

  • पृथ्वी का कुल क्षेत्रफल 51 करोड़ वर्ग किलोमीटर है, जिसमें 70.08% जल मण्डल है।
  • उत्तरी गोलार्द्ध में 40% जल और 60% स्थल, जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में 81% जल और 19% स्थल है।

जल संरक्षण की पारंपरिक विधियाँ

  1. आगोर/पायतन: घरों में वर्षा जल संग्रहण हेतु बनाए गए आंगन को आगोर कहते हैं, जो पश्चिमी राजस्थान में देखने को मिलते हैं।

  2. खड़ीन: जैसलमेर में वर्षा जल संरक्षण के लिए बनाई गई तकनीक है, जिसमें एनीकट का निर्माण कर खेतों में जल को संग्रहीत किया जाता है।

  3. नेष्टा/नेहटा: जल स्रोतों से अन्य जल स्रोतों में वर्षा जल स्थानांतरित करने की तकनीक, खासकर पश्चिमी राजस्थान में।

  4. झालरा: उच्च भूमि क्षेत्र से रिसावित वर्षा जल को संग्रहीत करने के लिए बनाए गए कुंड।

  5. जोहड़: शेखावाटी क्षेत्र में वर्षा जल संग्रहण हेतु कच्चे कुएँ को जोहड़ कहते हैं।

  6. नाड़ी: छोटे तालाब जिन्हें जोधपुर क्षेत्र में नाही कहा जाता है।

  7. कुई/बेरी: तालाबों के समीप बनाए गए गर्त जहाँ तालाबों का जल रिसकर एकत्र होता है।

  8. टांका: घरेलू उपयोग के लिए जल संरक्षण हेतु बनाए गए कुंड।

  9. तालाब: राजस्थान में पारंपरिक समय से तालाबों का निर्माण जल संरक्षण के लिए होता आया है।

राजस्थान में प्रमुख तालाबों की सूची और उनके स्थान

  1. घड़सीसर तालाब - जैसलमेर
    यह जैसलमेर का ऐतिहासिक तालाब है, जिसे जल संरक्षण के लिए बनाया गया था। आज यह एक प्रमुख पर्यटन स्थल है।

  2. कौशिकराम कुण्ड - जैसलमेर
    यह भी एक प्रसिद्ध कुण्ड है, जो जैसलमेर में स्थित है।

  3. ब्रह्म सागर कुण्ड - जैसलमेर
    यह कुण्ड धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व का है।

  4. बारेठा तालाब - भरतपुर
    भरतपुर में स्थित इस तालाब का ऐतिहासिक और पारिस्थितिकीय महत्व है।

  5. एडवर्ड सागर - डूंगरपुर
    इसे एक महत्वपूर्ण जलाशय के रूप में जाना जाता है।

  6. गजरूप सागर - जैसलमेर
    जैसलमेर का एक और प्रसिद्ध तालाब, जिसका स्थानीय जीवन में विशेष महत्व है।

  7. हिण्डोली तालाब - बूंदी
    बूंदी के प्रमुख तालाबों में से एक, जिसे जल संरक्षण के उद्देश्य से बनाया गया था।

  8. तेजसागर तालाब - प्रतापगढ़
    यह प्रतापगढ़ का महत्वपूर्ण जलस्रोत है।

  9. सेनापानी तालाब - चित्तौड़गढ़
    चित्तौड़गढ़ में स्थित यह तालाब जल संरक्षण में सहायक है।

  10. वानकिया तालाब - चित्तौड़गढ़
    यह भी चित्तौड़गढ़ का प्रमुख तालाब है।

  11. पद्मिनी तालाब - चित्तौड़गढ़
    पद्मिनी के नाम पर बना यह तालाब ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

  12. सरेरी तालाब - भीलवाड़ा
    भीलवाड़ा का यह तालाब जल संरक्षण में सहायक है।

  13. पने लाल शाह का तालाब - झुंझुनू
    झुंझुनू जिले में स्थित यह तालाब भी जल संरक्षण का एक अच्छा उदाहरण है।

  14. तालाब शाही - धौलपुर
    धौलपुर का यह ऐतिहासिक तालाब अब भी स्थानीय लोगों के लिए महत्वपूर्ण जलस्रोत है।

  15. लाखोटिया तालाब - पाली
    पाली जिले का प्रसिद्ध तालाब, जो अब एक पर्यटन स्थल भी बन चुका है।

  16. रामेलाव तालाब - पाली
    यह भी पाली जिले का एक महत्वपूर्ण तालाब है।

  17. सुख सागर तालाब - सवाई माधोपुर
    सवाई माधोपुर में स्थित इस तालाब का जैव विविधता के संरक्षण में योगदान है।

  18. गुलाब सागर - जोधपुर
    जोधपुर का यह तालाब ऐतिहासिक धरोहर के रूप में जाना जाता है।

राजस्थान के इन तालाबों का मुख्य उद्देश्य जल संरक्षण और प्राचीन समय में जल संग्रहण रहा है। आज भी ये तालाब स्थानीय और पारिस्थितिकीय महत्व रखते हैं।

  1. बावड़ी: प्राचीन समय से जल संरक्षण हेतु सीढ़ीदार कुएँ (बावड़ियाँ) बनाए जाते थे, जिनका धार्मिक महत्व भी था।

राजस्थान में बावड़ियों का निर्माण प्राचीन काल से ही जल संरक्षण के लिए एक अद्वितीय तरीका रहा है। इन बावड़ियों की स्थापत्य कला और सांस्कृतिक महत्व ने उन्हें राजस्थान की धरोहरों में शामिल कर दिया है। यह सीढ़ीनुमा जलकुण्ड होते हैं, जिनमें जल तक पहुँचने के लिए सीढ़ियों का जाल बिछा होता है।

बावड़ियों के निर्माण का उद्देश्य

  • जल संरक्षण: राजस्थान के शुष्क और अर्ध-शुष्क जलवायु में बावड़ियों का निर्माण जल भंडारण और उपलब्धता बनाए रखने के लिए किया गया।
  • धार्मिक और पुण्य कार्य: बावड़ियों का निर्माण धार्मिक पुण्य प्राप्ति के लिए भी किया जाता था। लोग इसे शुभ कार्य मानते थे।
  • कलात्मक महत्व: अनेक राजाओं और धनाढ्य व्यक्तियों ने अपने महलों और सार्वजनिक स्थानों पर सुन्दर और कलात्मक बावड़ियों का निर्माण करवाया, जो स्थापत्य कला की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध थीं।

स्थापत्य कला में प्रमुख बावड़ियाँ

  • शेखावाटी और बूँदी की बावड़ियाँ: इन क्षेत्रों की बावड़ियाँ अपनी स्थापत्य शैली और कलात्मकता के लिए विख्यात हैं। बूँदी को 'बावड़ियों का शहर' या 'सिटी ऑफ स्टेप वेल्स' भी कहा जाता है।
  • आभानेरी की चाँद बावड़ी: यह अपनी जटिल स्थापत्य कला के कारण प्रसिद्ध है और राजस्थान के सबसे प्रमुख स्थलों में से एक है।

वास्तुशास्त्र आधारित वर्गीकरण

भुवनदेवाचार्य ने अपनी पुस्तक 'अपराजितपृच्छा' में बावड़ियों के चार प्रकारों का उल्लेख किया है:

  1. नंदा बावड़ी: यह एक द्वार और तीन कूट वाली बावड़ी होती है, जिसका निर्माण मनोकामना पूर्ण करने के लिए किया जाता था।
  2. भद्रा बावड़ी: यह सबसे सुंदर बावड़ी मानी जाती है। इसमें दो द्वार और छह कूट बने होते हैं।
  3. जया बावड़ी: इस बावड़ी में तीन द्वार और नौ कूट बने होते हैं।
  4. सर्वतोमुख बावड़ी: इसमें चार द्वार और बारह कूट होते हैं, जो इसे चारों ओर से सुगम बनाते हैं।

राजस्थान की प्रमुख बावड़ियाँ

राजस्थान में कई प्रसिद्ध बावड़ियाँ हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं:

  1. चाँद/तिलस्मा बावड़ी - आभानेरी (दौसा): 105 मीटर गहरी, वर्गाकार योजना में निर्मित, इस बावड़ी का प्रवेश द्वार उत्तर की ओर है। इसे गुर्जर प्रतिहार काल के राजा चाँद ने बनवाया था।
  2. भाण्डारेज बावड़ी - दौसा
  3. रानी जी की बावड़ी - बूंदी: यह अत्यंत सुंदर और स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
  4. काकी जी की बावड़ी - बूंदी
  5. मेड़तणीजी की बावड़ी - झुंझुनू
  6. विनाता बावड़ी - चित्तौड़गढ़
  7. त्रिमुखी बावड़ी - उदयपुर
  8. पन्ना मीणा बावड़ी - जयपुर: यह जयपुर में पर्यटकों के बीच एक प्रमुख आकर्षण है।
  9. तापी बावड़ी - जोधपुर
  10. जालप बावड़ी - जोधपुर
  11. कातना बावड़ी - ओसियां (जोधपुर)
  12. दूध बावड़ी - सिरोही

सांस्कृतिक धरोहर

इन बावड़ियों ने न केवल राजस्थान के जल संरक्षण में सहायक भूमिका निभाई, बल्कि स्थापत्य कला और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। राजस्थान में जल संचयन और वास्तुकला के संगम को ये बावड़ियाँ जीवंत रूप में प्रदर्शित करती हैं।


आधुनिक जल संरक्षण विधियाँ

  1. रेन वॉटर हार्वेस्टिंग: वर्षा जल संग्रहण की सबसे आधुनिक विधि, जिससे जल को संग्रहित कर भूमि में उतारा जाता है। सरकार ने भवनों में इस प्रणाली को अनिवार्य किया है।

  2. शुष्क कृषि पद्धति: गैर सिंचित शुष्क भूमि पर फव्वारा और बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति का उपयोग किया जाता है, जो वर्षा जल का सदुपयोग सुनिश्चित करता है।


राजस्थान में जल संरक्षण के सरकारी प्रयास

  1. राज्य जल नीति (1999): राजस्थान सरकार ने जल के सदुपयोग और संरक्षण के लिए जन जागृति अभियान चलाया है।

  2. जल शक्ति अभियान: जुलाई 2019 में केंद्रीय जल मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत द्वारा शुरू, इसका उद्देश्य जल सुरक्षा एवं संरक्षण है।

  3. मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान: जनवरी 2016 से शुरू, इस अभियान का उद्देश्य जल का सदुपयोग और संग्रहण करना है।

  4. अटल भू-जल योजना: अप्रैल 2020 में शुरू, भू-जल प्रबंधन और जल संरक्षण में विभिन्न विभागों की सहभागिता सुनिश्चित करता है।

  5. राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना: 100% वित्तीय सहायता से यह परियोजना बेहतर जल प्रबंधन, बाढ़, सूखा प्रबंधन में सहायक है।

  6. राजीव गाँधी जल संचय योजना: इस योजना के अंतर्गत जल संरक्षण के विभिन्न निर्माण कार्य और सुधार कार्य किए जाते हैं।

  7. मुख्यमंत्री राजनीर योजना: शहरी क्षेत्रों में घरेलू जल खपत में सहायता के लिए चालू की गई योजना।


राजस्थान के प्रमुख बांध और तालाब

राजस्थान में विभिन्न बांध और तालाब जैसे घड़सीसर तालाब (जैसलमेर), रानी जी की बावड़ी (बूंदी), बीसलपुर बांध (टोंक) आदि जल संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।


राजस्थान के प्रमुख बांधों की सूची:

  1. अभयपुरा बांध - बूंदी
  2. अकलेरा बांध - बारां
  3. अलनिया बांध - कोटा
  4. आमली खेड़ा बांध - प्रतापगढ़
  5. अंगोर बांध - सिरोही
  6. अन्वासा बांध - भीलवाड़ा
  7. अरवर बांध - भीलवाड़ा
  8. अटवारा बांध - भीलवाड़ा
  9. बाबरा बांध - पाली
  10. बड़गांव बांध - उदयपुर
  11. बागोलिया बांध - उदयपुर
  12. बजरंगगढ़ बांध - प्रतापगढ़
  13. बनकिया बांध - चित्तौड़गढ़
  14. बांडी संधारा बांध - जालौर
  15. बाकली बांध - जालौर
  16. बारदपुरा बांध - भीलवाड़ा
  17. बंद बरेठा बांध - भरतपुर
  18. बारी मानसरोवर बांध - चित्तौड़गढ़
  19. बरखेरी बांध - चित्तौड़गढ़
  20. बस्सी बांध - चित्तौड़गढ़
  21. बासुंदनी बांध - अजमेर
  22. बेथिली बांध - बारां
  23. भगोरा बांध - बांसवाड़ा
  24. भगवतगढ़ बांध - सवाई माधोपुर
  25. भमरी टांडी बांध - बांसवाड़ा
  26. भंवर सेमला बांध - प्रतापगढ़
  27. भाटिया बांध - बांसवाड़ा
  28. भीमलत बांध - बूंदी
  29. भीमसागर बांध - झालावाड़
  30. भोपाल सागर बांध - चित्तौड़गढ़
  31. भूला बांध - सिरोही
  32. विलास बांध - बारां
  33. बीसलपुर बांध - टोंक
  34. बिथान बांध - जालौर
  35. बीया पाडा बांध - बांसवाड़ा
  36. बोरडा बांध - चित्तौड़गढ़
  37. बोरडा बांध - बांसवाड़ा
  38. बोरिया बांध - प्रतापगढ़
  39. बुचारा बांध - जयपुर

जल संरक्षण में बांधों का महत्व

  • सिंचाई: राजस्थान में खेती के लिए पानी का एक मुख्य स्रोत बांध हैं।
  • बिजली उत्पादन: कई बड़े बांध बिजली उत्पादन के लिए भी प्रयोग में लाए जाते हैं।
  • पेयजल: कुछ बांधों का जल पीने के पानी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, जिससे ग्रामीण और शहरी इलाकों में जल आपूर्ति की जा सके।

यह बांध न केवल राजस्थान की जल सुरक्षा में सहायक हैं, बल्कि पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन गए हैं जल संरक्षण हमारे भविष्य को सुरक्षित रखने का एकमात्र उपाय है। इसे परंपरागत और आधुनिक विधियों के माध्यम से बढ़ावा दिया जा सकता है। जल संसाधनों का उचित प्रबंधन हमारे समाज और पर्यावरण के लिए आवश्यक है। राजस्थान में जल संरक्षण की प्राचीन परंपराओं का सम्मान करते हुए नए और आधुनिक तरीकों को अपनाना अनिवार्य हो गया है।

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